कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों की संख्या बढ़ाने में पश्चिम बंगाल का चुनाव प्रचार भी क्या बड़ा कसूरवार साबित हुआ है? यह सवाल इसलिये उठा है कि पिछले महज एक महीने में बंगाल में कोरोना के मामलों में डेढ़ हजार फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.यह आंकड़ा चौंकाने के साथ ही बेहद डराने वाला भी है.लिहाजा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बताना चाहिये कि आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है क्योंकि वहां अब तक सबसे अधिक रैलियाँ व रोड शो बीजेपी के नेताओं के ही हुए हैं. इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता है कि अपनी रैलियों में बेतहाशा भीड़ जुटाने में बीजेपी ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दलों को काफी पीछे छोड़ दिया है.


ऐसी सभी रैलियों व सार्वजनिक समारोह में लोगों ने कोरोना नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाईं और पार्टियों के स्थानीय से लेकर बड़े नेता तक ये तमाशा चुपचाप देखते रहे.हालांकि यह पता लगा पाना बेहद मुश्किल है कि कौन-सी राजनीतिक जन सभा कोरोना संक्रमण का विस्फ़ोट साबित हुई लेकिन पांच जिलों में कोरोना ने सर्वाधिक कहर बरपाया है और विशेषज्ञों के मुताबिक राजनीतिक आयोजन ही इसके लिए दोषी हैं.


हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो एक कदम और आगे बढ़कर प्रधानमंत्री पर हमलावर हो गईं हैं. उन्होंने बुधवार को आरोप लगाया कि देश में कोविड-19 की दूसरी लहर और इसका प्रबंधन ‘‘मोदी-निर्मित त्रासदी’’ है. एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘कोरोना की दूसरी लहर बहुत तेज है. मैं इसे मोदी निर्मित त्रासदी कहूंगी. ना तो इंजेक्शन उपलब्ध हैं और ना ही ऑक्सीजन. टीके और दवाइयां बाहर भेजी जा रही हैं जबकि देश में इनकी कमी है.’’


बंगाल में छह चरणों का चुनाव हो चुका है और बाकी चरणों के प्रचार के लिए 23 अप्रैल को मालदा में प्रधानमंत्री मोदी की रैली होनी है.बताया गया है कि इसमें सिर्फ पांच सौ लोग ही शामिल होंगे. जाहिर है कि चुनाव प्रचार की रैलियों की वजह से कोरोना के बढ़ते मामलों पर चौतरफा आलोचना के बाद ही चुनाव आयोग ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर यह आम सहमति बनाई थी कि अब इनमें सीमित लोग ही इकठ्ठे होंगे. यह चुनाव आयोग की उस हालत को बयां करने जैसा ही है कि "सब कुछ लुटाकर होश में आये भी तो क्या होश में आये.


पिछले महीने से ही जैसे-जैसे बंगाल में चुनाव-प्रचार अपने उफान पर आता गया,उसी रफ्तार से कोरोना के मामले बढ़ते चले गए.महामारी से जुड़े विशेषज्ञ तमाम मीडिया चैनलों की डिबेट में आकर आगाह करते रहे कि रैलियों में ये भीड़ रोकिये, वरना संक्रमण का भयावह रुप सामने होगा.तो भला यह कैसे हो सकता था कि देश के प्रधानमंत्री इस हक़ीक़त से अनजान रहे हों? कितना अच्छा होता कि तभी प्रधानमंत्री खुद आगे होकर यह एलान करके एक नज़ीर पेश करते कि "मेरी किसी भी सभा-रैली में पांच-छह सौ से ज्यादा लोग नहीं होंगे."इसका असर ये होता कि उनकी पार्टी के बाकी नेता तो इसका पालन करते ही, साथ ही अन्य राजनीतिक दलों को भी इसी रास्ते पर चलने के लिए मजबूर होना पड़ता.तब शायद बंगाल समेत अन्य पड़ोसी राज्यों की ऐसी 'कोरोना तस्वीर' न होती,जो आज है.


उल्लेखनीय है कि बंगाल में 11 मार्च को कोरोना संक्रमण के मामले घटकर 3110 रह गए थे.उसके बाद से अब लगातार इनमें बढ़त देखने को मिल रही है. 20 मार्च के बाद से राज्य में सक्रिय कोरोना मामलों की संख्या 53 हजार से ज्यादा हो चुकी है और यह लगातार बढ़ रही है. देखा जाए तो यह आंकड़े 1500 प्रतिशत से भी ज्यादा हैं.