कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पत्नी सिर्फ शादी के आधार पर एकतरफा पति के आधार कार्ड की जानकारी हासिल नहीं कर सकती. कोर्ट ने कहा कि शादी निजता के अधिकार पर असर नहीं डालती है. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा कि शादी किसी आधार धारक के निजता के अधिकार को प्रभावित नहीं कर सकती है और इसके लिए जो भी प्रक्रिया है उसका पालन किया जाना चाहिए.


जस्टिस एस सुनील दत्त यादव और विजयकुमार ए पाटिल की डिवीजन बेंच एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. हुबली की यह महिला अलग हो चुके अपने पति का आधार नंबर, फोन नंबर और एनरोलमेंट नंबर हासिल करना चाहती थी. याचिकाकर्ता ने कहा कि पति का एड्रेस नहीं हो पाने के कारण वह फैमिली कोर्ट की ओर से दिए गए आदेशों को लागू नहीं कर पा रही हैं. इसके लिए याचिकाकर्ता ने 25 फरवरी, 2021 को यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) से भी संपर्क किया था, लेकिन वहां उनकी अर्जी खारिज कर दी गई. यूआईडीएआई ने कहा कि इसके लिए आधार एक्ट के सेक्शन 33 के तहत हाईकोर्ट के आदेश समेत अन्य चीजों की जरूरत होगी.


UIDAI से भी किया संपर्क
बाद में मामला सिंगल बेंच के पास भेज दिया गया. सिंगल बेंच ने 8 फरवरी 2023 को यूआईडीएआई को पति को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया. साथ ही आरटीआई एक्ट के तहत महिला की याचिका पर दोबारा विचार करने के लिए भी कहा गया. महिला ने तर्क दिया कि शादी के बाद पति-पत्नी को एक-दूसरे से जुड़ी जानकारियां रख सकते हैं. 


कर्नाटक हाईकोर्ट ने क्या कहा?
डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि किसी भी खुलासे से पहले दूसरे व्यक्ति को भी अपनी बात रखने की अनुमति होनी चाहिए. बेंच ने कहा, 'शादी दो लोगों का रिश्ता है, जो किसी की निजता पर असर नहीं डालता है. यह व्यक्ति का निजी अधिकार है.' 


दंपति की शादी नवंबर, 2005 को हुई थी और उनकी एक बेटी भी है. शादी में दिक्कतें आने लगीं तो उन्होंने कानूनी प्रक्रिया का सहारा लिया. फैमिली कोर्ट ने पति को 10,000 रुपये का गुजारा भत्ता और बेटी के लिए अलग से 5,000 रुपये पत्नी को देने का आदेश दिया था.


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