नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में मानसून की बारिश ने कहर बरपा दिया. महज़ कुछ घंटो की बारिश राहत के बजाए दिल्ली वालों पर आफत बन कर टूट पड़ी. दिल्ली में मानसून देरी से आया और आते ही लोगों पर कहर बन कर टूट पड़ा. प्रकृति की सौगात लचीली व्यवस्था के चलते दिल्ली के लोगों के लिए श्राप बन गई. दिल्ली में रविवार को हुई बारिश ने दिल्ली की रफ़्तार थाम दी. देश के पार्लियामेंट से महज़ कुछ ही दूरी पर स्थित मिंटो रोड पर जलजमाव से एक व्यक्ति की मौत हो गई. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजधानी में हुई महज़ कुछ देर छुटपुट बारिश ने स्मार्ट सिटी के दावों की पोल खोल दी. हर साल लगातार बारिश के बाद दिल्ली की सड़कों पर जलजमाव की स्थिति बन जाती है लेकिन उसके बाद भी आज तक इसका हल नहीं निकला है.


जहां दिल्ली वाले इस बात से अच्छे से अवगत हैं कि कहां पर जलजमाव की समस्या आती है. वहीं प्रशासन ने इस समस्या को देख कर भी अनदेखा किया हुआ है. हर साल ही मिंटो रोड के अंडर पास पर पानी भर जाता है. दिल्ली का आईटीओ इलाका जहां पर दिल्ली पुलिस का हेड क्वार्टर भी स्थित है उसका हाल भी जल जमाव से बेहाल ही नज़र आया. ये सभी इलाक़े दिल्ली के प्रमुख इलाक़ों में शामिल है. बीते दिनों हुई बारिश से अन्ना नगर की 10 झुग्गियां पानी में बह गयीं.


केजरीवाल सरकार ने जलजमाव में डूब कर जान गंवाने वाले ऑटो ड्राइवर के परिवार को 10 लाख का मुआवजा देने की घोषणा की है. अगर सही समय पर क़दम उठाकर लचीली प्रणाली बनाई गई होती तो शायद उस ड्राइवर को अपनी जान गंवानी ना पड़ती.


दिल्ली में हर साल होने वाली इस समस्या के मुख्य तीन कारण हैं...


1- लचीली डेंसिटी प्लानिंग


डेंसिटी प्लानिंग का मतलब है कि कितने एरिया में कितने लोग रहते हैं. हर शहर की जनगणना के अनुसार उसमें कितने लोग रहतें हैं इसका हिसाब किया जाता है. जिसके बाद उसका इंफ्रास्ट्रक्चर उसी अनुसार तैयार किया जाता है. टाउन प्लानर एक्सपर्ट ऋषि देव का मानना है "अंग्रेजों के जमाने का स्टैंडर्ड है जिसे हम फॉलो कर रहे हैं और उसके हिसाब से हम पॉपुलेशन निकालतें हैं. लोड्स कैलकुलेट करके इंफ्रास्ट्रक्चर डिज़ाइन करतें हैं जो कि एक्चुअल लोड से 50-100 गुना कम है. इसका कारण है कि चाहे वो ट्रैफिक हो, वाटर सप्लाई हो या सीवेज हो या फैसिलिटीज हो जिस लोड पर ये डेंसिटी डिज़ाइन होती है. वो अनरियल है इसलिए इंफ्रास्ट्रक्चर पर बोझ पड़ता है.


2- मिक्स्ड डिस्पोज़ल ऑफ़ रेन वाटर एंड सीवेज


जो विकसित देश हैं जहां प्रॉपर प्लानिंग होती है, वहां रेन वाटर को और सीवेज को अलग-अलग डिस्पोज किया जाता है. हमारे जो बड़े शहर हैं वहां कहीं कहीं पर तो शुरुआत में दोनों चीजों को अलग-अलग डिस्पोज़ किया जाता है लेकिन आगे जाके वो एक में मिल जाते हैं. एक्सपर्ट का मानना है ये प्रिंसपली ग़लत है क्यूंकि पानी, सीवर और स्टॉर्म वाटर के डिस्पोज़ल का तरीक़ा अलग अलग है. रेन वाटर जब सीवर में मिलता है तो सड़कों पर पानी भर जाता है. नदी में ये पानी मिल जाता है तो कुछ समय में नदी का पानी ऊपर आना शुरू हो जाता है. इस वजह से रिवर डेप्थ कम होती है जिससे पानी का वॉल्यूम बढ़कर फैलने लगता है. जिस वजह से बरसात में बाढ़ जैसी स्थति बन जाती है. और बारिश के बाद वो खुद से ही सूख जाती है. ये मैक्रो रीज़न है जब सीवर और रेन वाटर मिलता है तो बाढ़ जैसी स्थति पैदा होती है.


3- मिस मैनेजमेंट ऑफ़ रिवर इको सिस्टम


जब नदी के आसपास अवैध कब्ज़ा करके निर्माण कार्य या खेती किसानी होती है तो पानी के बहाव पर असर पड़ता है और फिर उसके निकास को नियंत्रित करना मुश्किल है. इसलिए ज़्यादातर निचले इलाक़ों में पानी आ जाता है. इस तरह दिल्ली के यमुना के पास स्थित इलाखों में अवैध निर्माण से बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है.