कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव में पार्टी के दो योद्धा मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर हैं. सोशल मीडिया पर मशहूर थरूर और लंबा राजनीतिक अनुभव रखने वाले बुजुर्ग नेता खड़गे की हार- जीत को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं. आखिर सब जानना चाहते हैं कि इन दोनों की कामयाबी के लिए कौन-कौन से फैक्टर जवाबदेह होंगे.


माना जा रहा है गांधी परिवार की तरफ से खड़गे सोनिया और राहुल गांधी के तो थरूर प्रियंका गांधी के उम्मदीवार के तौर पर देखे जा रहे हैं. ये भी कहा जा रहा है कि थरूर की कामयाबी कांग्रेस को पुनर्जीवित करेगी, लेकिन उनकी इस कामयाबी पर मुहर लगने की कम ही उम्मीद है.


उधर दूसरी तरफ खड़गे 2024 लोकसभा चुनाव तक 82 साल के हो जाएंगे और वो राहुल के लिए चुनौती नहीं साबित होंगे. इस वजह से उनकी जीत तय मानी जा रही है. राजनीतिक अनुभव के हिसाब से  देखा जाए तो भी खड़गे थरूर से आगे ही दिखाई पड़ते हैं. इन दोनों नेताओं में एक बात ही खास है कि दोनों नेता दक्षिण भारत से आते हैं. 


शशि थरूर का राजनीतिक कद


मौजूदा वक्त में 66 साल  के शशि थरूर तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सांसद हैं. साल 2009 में वो यहां से चुने गए थे. खड़गे की तरह ही वह भी छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं. थरूर को अंतरराष्ट्रीय मामलों का जानकार माना जाता है. भारत सरकार ने साल 2006 थरूर का नाम संयुक्त राष्ट्र महासचिव के पद के लिए रखा था. उन्होंने 29 साल तक यूएन में अपनी सेवाएं दी. इस वक्त वो कांग्रेस के बगावती गुट जी 23 समूह में भी शामिल हैं.


इसके साथ ही थरूर के देश की राजनीति में अनुभव की बात की जाए तो उनके नाम 3 बार कांग्रेस के सांसद रहने की उपलब्धि हैं. साल 2009 में तिरुवनंतपुरम से 15 वीं लोकसभा ये चुने जाने के बाद भी वो दो बार सांसद बने हैं.


साल 2009 में उन्होंने यहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पी. रामचंद्रन नायर को 1,00000 वोटों के अंतर से हराया था. इसके बाद साल 2014 में 16 वीं लोकसभा वो तिरुवनंतपुरम फिर सांसद बने.तब थरूर ने भारतीय जनता पार्टी के ओ. राजगोपाल को लगभग 15,700 वोटों से हराया था.


इसके बाद साल 2019 के 17 वीं लोकसभा चुनावों में भी शशि थरूर ने बीजेपी-एनडीए के उम्मीदवार कुम्मनम राजशेखरन को एक लाख वोटों से मात दी. मनमोहन सिंह सरकार में थरूर साल 2009 में विदेश मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री का पद भी संभाल चुके हैं. 


इसके अलावा साल 2012 थरूर को केंद्रीय राज्य मंत्री, मानव संसाधन विकास के तौर पर फिर से कैबिनेट में शामिल किया गया. इन सबके बाद भी थरूर के संगठन चलाने के अनुभव की बात की जाए तो वो उनके पास नहीं है. इस मामले में खड़गे उन पर भारी पड़ सकते हैं. 


राजनीति में लंबी पारी वाले खड़गे


कांग्रेस में 5 दशक से अधिक का वक्त गुजार चुके मल्लिकार्जुन खड़गे ने छात्र जीवन में ही राजनीति में कदम रख दिया था. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा उन्हें कर्नाटक की राजनीति का ही नहीं बल्कि केंद्रीय राजनीति का भी अच्छा खासा अनुभव हैं. केंद्रीय मंत्री रहने के साथ ही वह लोकसभा और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. इस वक्त में 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) राज्यसभा में कांग्रेस के नेता विपक्ष के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं.


उन्हें ये पद साल 2021 में गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई के बाद आलाकमान की तरफ से दिया गया. वे काफी लंबे अरसे से कर्नाटक की राजनीति में सक्रिय हैं. गुलबर्गा के सरकारी कॉलेज में उन्हें छात्रसंघ महासचिव के पद जीतने के बाद खड़गे के कदम राजनीति के सफर में कभी नहीं रूके. भारतीय कांग्रेस से उनका रिश्ता साल 1969 में ही जुड़ गया था.


तब वो गुलबर्गा सिटी कांग्रेस कमेटी (Gulbarga City Congress Committee) के अध्यक्ष बनाए गए थे. इसके बाद साफ छवि के युवा दलित नेता खड़गे को दक्षिण राज्य कर्नाटक में चमकते देर नहीं लगी. साल 1972 में उन्होंने केवल 30 साल की उम्र में गुरमीतकल निर्वाचन क्षेत्र से कर्नाटक राज्य विधानसभा लड़ कर सक्रिय राजनीति का आगाज किया. इस चुनाव में उन्होंने शानदार जीत हासिल की. 


उनकी जीत का ये सफर लगातार 9 साल तक जारी रहा. 1972 के बाद उन्होंने साल 2009 तक (यानी 1978, 1983, 1985, 1989, 1994, 1999, 2004, 2008, 2009) विधानसभा चुनावों में लगातार जीत का परचम लहराया.


2009-2019 में खड़गे को गुलबर्गा के सांसद रहने के दौरान लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता बनने का मौका मिला. खड़गे ने 10 चुनावों (8 विधानसभा और 2 लोकसभा) में लगातार जीत हासिल की है.


साल 2014 की मोदी के प्रभावी असर के बाद भी वो कर्नाटक के गुलबर्ग से जीत हासिल करने में सफल रहे थे. वो कर्नाटक में विपक्ष के नेता ही नहीं रहे बल्कि कई मंत्रालय संभाल चुके हैं.


यूपीए- 2 सरकार में खड़गे मई 2009 से जून 2014 तक श्रम और रोजगार मंत्री रहे तो उन्होंने जून 2013 से मई 2014 तक  रेल मंत्रालय संभाला.  साल 2014 में पार्टी के हार के बाद वो लोकसभा में कांग्रेस के नेता रहे और अभी राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं.ये उनका लंबा राजनीतिक अनुभव और उनकी वफादारी ही रही जो साल 2019 में चुनाव हारने के बाद भी उन्हें पार्टी राज्यसभा में लेकर आई.


दरअसल लोकसभा चुनावों में साल 2019 में बीजेपी के उमेश जाघव से खड़गे को 95,452 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था. कर्नाटक से 12 जून 2020 को खड़गे राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए थे. इसके बाद पार्टी आलानकमान ने 12 फरवरी 2021 को उन्हें राज्यसभा में विपक्ष के नेता बनाया.


19 अक्टूबर का है बेसब्री से इंतजार


कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव साल 2000 में चुनाव के बाद साल 2022 में चुनाव हो रहा है. 22 साल बाद होने वाला ये चुनाव इसलिए भी अहम है, क्योंकि गांधी परिवार से इस बार इस पद के लिए कोई उम्मीदवार नहीं है. पार्टी आलाकमान के भरोसेमंद रहे मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) ने आखिरी वक्त में इस पद के लिए दावेदारी ठोक कर सबकों चौंका दिया था. उनकी दावेदारी पर पार्टी की सहमति भी दिखाई देने की बात की जा रही है.


इन सबके बाद भी एक बात जो खड़गे के बारे में सच है कि कर्नाटक को छोड़कर उनका देश के अन्य राज्यों में जनाधार नहीं है. उनके मुकाबले खड़े तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर अपने आजाद ख्यालों के लिए जाने जाते हैं.


उन पर कांग्रेस के जी-23  समूह का बगावती नेता का ठप्पा भी है. थरूर की संयुक्त राष्ट्र के पूर्व राजनयिक के तौर पर एक वैश्विक पहचान है तो बेस्ट सेलर्स किताबों के लेखक के तौर पर 83 लाख से अधिक फॉलोअर्स के साथ एक दमदार सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर भी हैं.


दोनों नेताओं की इन सब खासियतों में कौन किसकी हार-जीत के लिए जवाबदेह होगी ये तो 19 अक्टूबर को वोटों की गिनती और इसी दिन नतीजों के एलान के बाद ही साफ हो पाएगा.


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