Azadi Ka Amrit Mahotsav: इस बार देश आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) मना रहा है और 15 अगस्त (Independence Day) के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) फिर एक बार दिल्ली (Delhi) के लालकिले (Red Fort) से झंडा फहराएंगे. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आजादी के बाद से ही लालकिले पर झंडा फहराने की परंपरा रही है और इसी किले की प्रचीर से प्रधानमंत्री हमेशा से संबोधन देते आए हैं. इस परंपरा के साथ ही सभी के मन में एक सवाल जरूर कौंधता होगा कि आखिर लालकिले पर ही तिरंगा क्यों फहराया जाता है और आजादी के जश्न के लिए आखिर लालकिले को ही क्यों चुना गया. आइए आज इसी पर चर्चा करते हैं.


दरअसल इसकी कोई सटीक वजह या फिर कोई लिखित दस्तावेज तो नहीं है लेकिन ऐसे कई कारण रहे हैं जिसकी वजह से लालकिले पर तिरंगा फहराने की एक परंपरा बन गई. लालकिले पर झंडा क्यों फहराया जाता है ये समझने से पहले लालकिले के बारे में जान लेना जरूरी है क्योंकि जब तक इसके महत्व के बारे में नहीं जान लेंगे तब तक आपके सवाल का जवाब भी नहीं मिल पाएगा. लालकिले का निर्माण किसने करवाया ये तो हमने बचपन में ही पढ़ा था कि शाहजहां ने कराया और तब से ही लालकिला सत्ता के केंद्र के तौर पर स्थापित रहा है.


सत्ता का केंद्र रहा लालकिला


साल 1639 से 1649 के दौरान मुगल बादशाह शाहजहां ने दिल्ली में लाल किले का निर्माण कराया था. दिल्ली के केद्र में युमना किनारे बना ये किला शुरू से ही सत्ता का केंद्र रहा है. आक्रमणकारियों ने जब दिल्ली पर हमले किए तो उनके निशाने पर मुख्य तौर पर लाल किला ही रहा है. 17वीं शताब्दी हो या फिर 18वीं शताब्दी में मराठाओं के हमले रहे हों इन सभी का केंद्र लालकिला ही था. यही स्थिति 19वीं सदी में रही. साल 1857 में पहले स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र भी एक तरह से लालकिला ही रहा.


सुभाष चंद्र बोस ने दिया दिल्ली चलो का नारा


महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने साल 1940 में बहादुर शाह जफर की समाधि पर रंगून जाकर श्रद्धांजलि दी और दिल्ली चलो का नारा भी दिया. इस नारे को दिया जाना देश की राजधानी पर जाकर अपनी ताकत दिखाने जैसा था. दिल्ली की सत्ता का केंद्र भी उस वक्त लाल किला ही हुआ करता था.


जब पहली बार लालकिले से फहराया तिरंगा


आखिर में जब साल 1947 में देश आजाद हुआ तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Neharu) ने लाल किले पर तिरंगा फहराया और इसी की प्रचीर से देश को संबोधित किया. इसे एक बार फिर से लाल किले (Red Fort) को सत्ता के केंद्र के रूप में स्थापित करने के तौर पर देखा गया. राजनीति में प्रतीकों का बड़ा महत्व होता है. यही वजह रही कि जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री के तौर पर यहां झंडा फहराया. इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shashtri) हों या फिर इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) या अब नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) यही परंपरा चलती आ रही है.


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