यूक्रेन से चल रहे युद्ध के बीच खबर है कि रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव जल्द भारत के दौरे पर जाने वाले हैं. हालांकि, अभी तक तारीख का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन माना जा रहा है कि इसी हफ्ते रूसी विदेश मंत्री दिल्ली आ सकते हैं.


रूस के विदेश मंत्री लावरोव का भारत दौरा इसलिए अहम है क्योंकि भारत उन चुनिंदा बड़े देशों में शामिल है, जो यूक्रेन-रूस के बीच चल रहे युद्ध में पूरी तरह‌ तटस्थ हैं. भारत ना यूक्रेन का समर्थन कर रहा है और ना ही रूस का. भारत चाहता है कि दोनों देशों के बीच जल्द से जल्द शांति कायम हो और यूक्रेन में हो रहे जान-माल के नुकसान को रोका जा सके.


भारत ने अपनाया तटस्थ रुख


ऐसे समय में जब अमेरिका और यूरोप सहित अधिकतर पश्चिमी देश रूस के विरोध में खड़े हैं और रूस‌ पर प्रतिबंध लगा रहे हैं, भारत ने रूस का खुल कर विरोध नहीं  किया है. चीन, यूएई और सऊदी अरब जैसे देशों की तरह ही भारत संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ सभी प्रस्तावों पर हुई वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहा. ऐसे में रूस की कोशिश है कि भारत से संबंधों को अधिक मजबूत किया जा सके.


भारत-रूस की दोस्त बहुत पुरानी


भारत भी रूस के खिलाफ इसलिए नहीं जाना चाहता क्योंकि दोनों ही देशों की दोस्ती बेहद पुरानी और मुश्किल हालातों में भी खरी उतरी है. 1971 के पाकिस्तान युद्ध में रूस ने अमेरिकी जंगी बेड़े को भारत के खिलाफ कार्रवाई करने से रोक दिया था. आज भारत के 50 प्रतिशत हथियार और सैन्य साजो सामान रूस से ही आयात होते हैं. एके-203 असॉल्ट राइफल से लेकर टी-90 टैंक, मी-17 हेलीकॉप्टर मिग और सुखोई फाइटर जेट से लेकर एस-400 डिफेंस सिस्टम तक सब भारत रूस से ही खरीदता आया है. भारत का रूस के साथ करीब 9 बिलियन डॉलर का व्यापार भी होता है. ऐसे में भारत किसी भी कीमत पर रूस को नाराज नहीं कर सकता था.


यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस को भारत की ज्यादा जरूरत


लेकिन यूक्रेन से युद्ध के दौरान रूस को भारत की ज्यादा जरूरत है. इसका बड़ा कारण ये है कि रूस आज पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ गया है. उसके खिलाफ अमेरिका सहित सभी बड़े देशों ने पाबंदियां लगा दी हैं. चीन जरूर रूस के साथ खड़ा दिखाई पड़ता है लेकिन चीन के भी अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ संबंध इतने अच्छे नहीं हैं.


भारत के रूस और पश्चिमी देशों से अच्छे रिश्ते


भारत आज दुनिया के उन चुनिंदा बड़े देशों में शामिल है जो रूस के साथ भी मजबूत संबंध रखता है और अमेरिका सहित बाकी पश्चिमी देशों से भी. यहां तक की यूक्रेन से भी भारत के अच्छे संबंध हैं. युद्ध के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन चुनिंदा राष्ट्राध्यक्षों में शामिल हैं, जो रूस के राष्ट्रपति पुतिन से भी फोन पर बात करते हैं और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से भी. भारत के कहने पर दोनों ही देशों यानी रूस और यूक्रेन ने कुछ समय के लिए युद्धविराम की घोषणा तक की थी ताकि भारतीय छात्रों को सुरक्षित वॉर-जोन से निकाला जा सके.


अपनी यात्रा के दौरान लावरोव भारत से समर्थन की अपेक्षा तो रखते ही हैं ‌साथ ही डॉलर की बजाए दोनों देशों के बीच व्यापार के लिए रूसी करेंसी रूबल में करने की पेशकश भी कर सकते हैं. माना जा रहा है कि भारत भी इस पर विचार कर सकता है.


सब खिलाफ होंगे तो बातचीत कौन करेगा?


भारत भी साफ कर चुका है कि रूस के साथ संबंध इसलिए भी बनाए रखना जरूरी है ताकि युद्ध रोकने के लिए रूस से बातचीत की जा सके. अगर सभी देश रूस के खिलाफ खड़े हो जाएंगे तो रूस से बातचीत कौन करेगा. वैसे भी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है.


कोरोना काल के बाद और युद्ध से ठीक पहले पुतिन ने अगर किसी देश की यात्रा की थी तो वो भारत ही था. हालांकि, वे मात्र छह घंटे के लिए ही भारत में आए थे लेकिन ये रूस का भारत के प्रति झुकाव साफ दिखाता है. ऐसे में ये अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आने वाले दिनों में भारत दोनों देश यानी रूस और यूक्रेन के बीच शांतिदूत की भूमिका भी निभा सकता है.


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