वैश्विक संकट कोरोना महामारी से छुटकारा पाने के लिए दुनिया बेचैन है. अब तक कोरोना का कोई भी कारगर इलाज सामने नहीं आया है. इसलिए वैक्सीन ही इस महामारी से तत्काल बचने का एकमात्र तरीका है. लेकिन दुनिया को जितनी वैक्सीन की जरूरत है, उस हिसाब से वैक्सीन का उत्पादन हो नहीं पा रहा है. इसका सीधा कारण है कि वैक्सीन बनाने की तकनीक हर देशों को नहीं है. इसके अलावा जिन कंपनियों के पास यह तकनीकी है, वह इस प्रोडक्ट का पेटेंट करा लेती है जिससे कोई भी अन्य कंपनियां वैसी वैक्सीन नहीं बना सकती. चूंकि जिन कंपनियों ने इसका पेटेंट हासिल कर लिया, उनके पास जरूरत के हिसाब से उत्पादन की क्षमता नहीं है. यही कारण है कि डिमांड के मुकाबले सप्लाई बहुत कम है और दुनिया भर में वैक्सीनेशन अभियान की रफ्तार कम है.


क्या है पेटेंट कानून
दरअसल पेटेंट एक अंतरराष्ट्रीय कानून है. इस कानून के तहत अगर कोई कंपनी सबसे पहले कोई यूनिक प्रोडक्ट बनाती है और वह चाहती है कि इस प्रोडक्ट की तकनीक अन्य किसी कंपनी के पास नहीं हो, तो वह WTO में इसके पेटेंट के लिए आवेदन करती है.


WTO की जांच में यदि यह साबित हो जाता है कि प्रोडक्ट इससे पहले कहीं नहीं बना और इसकी तकनीकी यूनिक है तो उस कंपनी को पेटेंट का अधिकार दे देता है. इसका सीधा मतलब यह हुआ है कि अभी सिर्फ वो ही कंपनियां वैक्सीन बना सकती हैं, जो लंबे वक्त से इस तरह की वैक्सीन या दवाई बनाती आ रही हैं,


इनके अलावा  कोई और कंपनी इसमें हाथ आजमा नहीं सकती हैं. यही कारण है कि दुनिया में इस वक्त चिन्हित कंपनियों के हाथ में ही वैक्सीन का प्रोडक्शन है. लेकिन अगर ये हट जाता है तो कोई भी फार्मा कंपनी वैक्सीन का निर्माण कर सकती हैं, सिर्फ उन्हें वैक्सीन के फॉर्मूले और जरूरी टेक्नोलॉजी, पावर की जरूरत होगी.   


भारत की पेटेंट फ्री मांग का अमेरिका ने किया समर्थन
कोरोना महामारी को देखते हुए भारत ने हाल ही में पेटेंट जैसे मुश्किल कानून को खत्म करने की मांग की थी ताकि वैक्सीन को कई कंपनियां बना सके और हर किसी को जल्द से जल्द वैक्सीन लग सके. अमेरिका ने भारत के इस प्रस्ताव का समर्थन किया है. अगर WTO में यह प्रस्ताव पास हो जाता है तो दुनिया भर में वैक्सीन बनाना आसान हो जाएगा. बड़ी कंपनियां छोटी-छोटी कंपनियों को वैक्सीन बनाने की तकनीक देकर तेजी से वैक्सीन बना सकती है.