Heat Wave In Delhi: दिल्ली में अप्रैल के महीने ने पिछले 72 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. जहां पारा अधिकतम 46 डिग्री सेल्सियस के पास पहुंच गया. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)के अनुसार पहले से ही भीषण लू का सामना कर रही दिल्ली में पारा आने वाले कुछ दिनों में 46 डिग्री सेल्सियस को पार कर सकता है. ऐसे में सवाल ये है कि दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में हो रही भीषण गर्मी में संघर्ष कर रहे लोगों के लिए समाधान क्या है?


आपको बता दें कि अमेरिका के कई बड़े शहरों में शुमार लॉस एंजिल्स (Los Angeles) की सैन फर्नांडो घाटी (San Fernando Valley) में सन वैली की खाली सड़कों को हाल ही में 'कूलसील' नामक मिश्रण के साथ पेंट किया गया. इस पेंट की मदद से गर्मी को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. दरअसल कूल कोट या कूल सील सफेद रंग के होने के कारण सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा को प्रतिबिंबित करते हैं और हवा के तापमान को कम करते हैं.


लॉस एंजिल्स के अलावा विश्व के कई और शहर भी तापमान को नियंत्रित कर ठंडा होने की कोशिश कर रहे है. लॉस एंजिल्स में गर्मी से लड़ने के लिए कूल कोट का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके जरिए ये दावा है कि 10-15 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में कमी लाई जा सकती है.


अहमदाबाद में भी लोग आजमा रहे हैं कूल कोट के फायदे 


गुजरात के अहमदाबाद में आज का अधिकतम तापमान 44 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है. मई की शुरुआत में इस फिलहाल इस तापमान के कम होने का कोई अनुमान नहीं है. लिहाज़ा अहमदाबादी अपनी छतों पर कूल कोट का लेपन कर गर्मी से राहत पाने की कोशिश कर रहे हैं. 


कूल कोट पर क्या है पर्यावरणविदों की राय ?


लॉस एंजिल्स में गर्मी से लड़ने के लिए कूल कोट का इस्तेमाल कर 10-15 डिग्री तक तापमान में कमी लाई जा सकती है, क्या इस दावे में कोई सत्यता है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए एबीपी न्यूज ने बायोडायवर्सिटी एक्सपर्ट फैयाज खुदसर से मुलाकात की. खुदसार कहते हैं कि यह सिंपल फिजिक्स है, जब सफेद कलर होता है तो रिफ्लेक्शन बढ़ जाता है. सूरज की रोशनी का (Sun reflection Index) SFI होता ही है.


लॉस एंजिल्स की तुलना जब हम भारतवर्ष से करते हैं तो गौर ये करना चाहिए कि उन्होंने अपने सभी नेचुरल रिसोर्स को खत्म कर दिया. अब आर्टिफिशियल चीजों की शुरुआत की है जिसका असर बहुत कम होता है. दिल्ली में अप्रैल में 50 से 100 साल के गर्मी के रिकॉर्ड टूट गए. ये आंकड़ा कह रहा है कि हमसे गलती हो रही है. वेजिटेशन के मामले में गलती हो रही है. नेचुरल चीजों से टेंपरेचर को कैसे घटाएंगे. देश में कूल कोट पिछले कई सालों से इस्तेमाल होता रहा है. भारत में ग्रीन कवर की बहुत जरूरत है. हम सिर्फ पेंट के साथ ही नहीं चल सकते हैं.


अहमदाबाद की छतों पर कूल कोट का इस्तेमाल किया जा रहा है, क्या यह तकनीकी तापमान को नियंत्रित करने में सक्षम है? 


इसके जवाब में बायोडिवर्सिटी एक्सपर्ट कहते हैं कि एस्बेस्टस में जो लोग रह रहे हैं वो मार्जिनलाइज्ड लोग हैं. एस्बेस्टस के ऊपर घास ,पत्ते रखे जाते थे जिसका असर तापमान पर होता था. पेंट के ऊपर से जब बारिश गुजरेगी और वो केमिकल जमीन में जाकर मिलेगा तो इस जमीन की माइक्रोबियल एक्टिविटी पर इसका क्या असर होगा यह शोध का विषय है. अब भी ग्रीन कवर, वेजीटेशन बैरियर, वेजिटेरियन बफर बेहतर समाधान है. 


पर्यावरण में आ रहे प्रतिकूल बदलावों के मद्देनजर इस पर जल्द से जल्द ध्यान देने की जरूरत है. कूलकोट को लेकर जारी अविष्कार को विश्व में कितना स्वीकार किया जाएगा या इसकी सफलता बढ़ती हुई भीषण गर्मी को क्षण भर के लिए नियंत्रित करने में कामयाब होगी या यह सिर्फ प्रयोग मात्र बनकर रह जाएगा ये आने वाले समय में साफ हो जाएगा.


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