West Bengal Panchayat Election: पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में एक बार फिर कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा, जहां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और विभिन्न विपक्षी दल आगामी पंचायत चुनाव जीतने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. विधानसभा चुनाव में सीएम ममता बनर्जी को अपने प्रतिद्वंद्वी सुभेंदु अधिकारी से करीबी मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा था. 


नंदीग्राम पहली बार सुर्खियों में तब आया जब ममता बनर्जी ने 2007 में तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार के भूमि अधिग्रहण नियम के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था, और बाद में जब उनके पूर्व वफादार शुभेंदु अधिकारी ने उनको 2021 के विधानसभा चुनाव में चुनौती दी थी. सत्तारूढ़ टीएमसी जहां नंदीग्राम में अपनी खोई हुई जमीन तलाश रही है, वहीं विपक्षी बीजेपी निर्दलीय उम्मीदवारों के भरोसे है, जिनमें से कई टीएमसी में रह चुके हैं.


क्या पंचायत चुनाव में बीजेपी को सबक सिखाएगा नंदीग्राम?
पूर्व मेदिनीपुर जिला परिषद के उपाध्यक्ष शेख सुफियान ने कहा, हमारे लिए, चुनौती नंदीग्राम में खोई हुई जमीन वापस पाने की है, क्योंकि यह हमारे लिए कोई अन्य जगह नहीं है, बल्कि उन सभी के लिए एक राजनीतिक तीर्थयात्रा है जो ममता बनर्जी की विचारधारा में विश्वास करते हैं. बीजेपी ने अनैतिक तरीके से विधानसभा क्षेत्र जीता था. लेकिन, नंदीग्राम इस बार बीजेपी को सबक सिखाएगा. 


भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन में हिस्सा ले चुके सुफियान इस बार टिकट से वंचित रह गए. उन्होंने स्वीकार किया कि टिकट से वंचित किये गये कई उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि कुछ क्षेत्रों में ऐसे उम्मीदवार परेशानी साबित हो सकते हैं, लेकिन वे चुनाव में निर्णायक वजह नहीं बनेंगे. नंदीग्राम पूर्व मेदिनीपुर जिला परिषद के अंतर्गत आता है. साल 2008 से यहां पर टीएमसी का कब्जा रहा है, जब उसने पहली बार इस जिले में वाम मोर्चे को पटखनी दी थी. इस क्षेत्र में अल्पसंख्यकों की अच्छी खासी आबादी है.


नंदीग्राम को लेकर क्या है टीएमसी की रणनीति?
पार्टी ने  2013 और 2018 के ग्रामीण चुनावों में भारी अंतर से जीत हासिल की, जबकि आखिरी चुनाव मुख्य रूप से निर्विरोध रहा. हालांकि, 2021 में टीएमसी से निकलकर बीजेपी में शामिल हुए शुभेंदु अधिकारी से मिली हार अब भी सत्तारूढ़ पार्टी के लिए टीस की तरह है. नंदीग्राम के ब्लॉक एक और दो में क्रमशः लगभग 40 और 17 प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी है और टीएमसी ने 80 प्रतिशत सीट पर नये चेहरे उतारने का फैसला किया है, जिसका पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने विरोध किया है. इस फैसले के कारण पार्टी के कई नेता निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे पार्टी में दरारें उजागर होंगी.


वहीं, बीजेपी को उम्मीद है कि इस तरह की बगावत से वोटों के विभाजित होने से उसे मदद मिलेगी. जिला परिषद सदस्य नसीमा खातून ने शिकायत करते हुए कहा कि पार्टी (टीएमसी) के लिए नंदीग्राम में खोई हुई जमीन वापस पाने की चुनौती है, लेकिन इस पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय नेतृत्व ने पुराने लोगों को दरकिनार कर दिया और नये लोगों पर विश्वास दिखाया, जिनमें से ज्यादातर बीजेपी से थे. टिकट कटने के बाद खातून इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं.


पार्टी सूत्रों के अनुसार, ग्राम सभाओं में भ्रष्टाचार और उसके नेताओं और पदाधिकारियों के कामकाज की रिपोर्ट के बाद नए चेहरे उतारने का निर्णय लिया गया. निर्दलीय चुनाव लड़ रहे एक टीएमसी नेता ने कहा, ‘‘क्या पार्टी सोचती है कि उसने जो उम्मीदवार खड़े किए हैं वे सभी संत हैं और हम सभी चोर हैं? जिन लोगों को टिकट दिया गया उनमें से अधिकांश बीजेपी के भ्रष्ट एजेंट हैं. पार्टी को अपने आजमाए हुए और परखे हुए कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने का खामियाजा भुगतना पड़ेगा.’’ 


नंदीग्राम की घटना को लेकर क्या बोली बीजेपी?
बीजेपी की पूर्व मेदिनीपुर जिला समिति के सदस्य अभिजीत मैती ने कहा कि पार्टी को इस क्षेत्र में 2021 के विधानसभा चुनावों के नतीजों को फिर से दोहराने का भरोसा है, जब उसने लगभग 1,900 वोटों के मामूली अंतर से सीट जीती थीं. उन्होंने कहा, ‘‘इस बार पंचायत चुनाव में टीएमसी की हार होगी. हम नंदीग्राम को दोबारा हासिल करने की उनकी चुनौती के लिए तैयार हैं. उन्हें पिछले 15 सालों में हुए भ्रष्टाचार के लिए जवाब देना होगा.’’


बीजेपी का 2016 के बाद से यहां लगातार जनाधार बढ़ा है. पार्टी 2016 में तमलुक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में 1.96 लाख से अधिक वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर रही थी. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में, बीजेपी ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली, उसके उम्मीदवार को 5.34 लाख से अधिक वोट मिले. इसके बाद 2021 के विधानसभा चुनावों में नंदीग्राम और जिले के छह अन्य विधानसभा क्षेत्रों में उसकी जीत हुई.


नंदीग्राम के आंदोलन के दौरान ममता बनर्जी के भरोसेमंद रहे अधिकारी दिसंबर 2020 में बीजेपी में शामिल हो गए और 2021 में विधानसभा चुनाव में उन्होंने बनर्जी को हराया.


वेस्ट बंगाल चुनाव में क्या है माकपा की स्थिति?
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) भी इस बार पूरा जोर लगा रही है, जहां 10 साल में पार्टी पहली बार लगभग 70 प्रतिशत ग्राम परिषद सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने में सक्षम हुई है. नंदीग्राम में माकपा नेता इब्दुल हुसैन ने कहा, ‘‘हम चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करेंगे. हम टीएमसी के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं. अगर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुए, तो टीएमसी पूरी तरह सत्ता से बाहर हो जाएगी.’’


Maharashtra: न शरद पवार के साथ न अजित पवार के साथ? NCP के वो विधायक जिनका रुख अब तक साफ नहीं