कोलकाता: पिछले कुछ महीनों से अटकलें तेज हैं कि पश्चिम बंगाल की सियासत में सौरव गांगुली बीजेपी का मुख्य चेहरा बनने वाले हैं. हालांकि, सौरभ गांगुली ने कभी नहीं कहा कि वो राजनीति में शामिल होना चाहते हैं. लेकिन ये बात भी सच है कि उन्होंने ये भी कभी नहीं कहा कि वे राजनीति में शामिल नहीं होना चाहते हैं.


गांगुली के राजनीति में आने की संभावनाएं कितनी है ये जानने के लिए कुछ साल पीछे जाना होगा. साल 2013 के अंत और 2014 की शुरुआत में भी बंगाल में अटकलें तेज थीं कि सौरव गांगुली राजनीति में शामिल हो सकते है. तब सौरव कमेंटेटर और क्रिकेट एक्सपर्ट के तौर पर अपना काम कर रहे थे. बाद में क्रिकेट एडवाइजरी कमेटी में भी रहे. लेकिन गांगुली के बहुत करीबी लोग उस समय बार-बार कहते रहे कि 'दादा' राजनीति में नही आ रहे हैं, जो कि सच साबित हुई थी. लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव से पहले कोई इस बात को खंडन नहीं कर रहा.


साल 2019 के अक्टूबर महीने में गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष बने थे. अध्यक्ष बनने से पहले उन्होंने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. इसके कुछ दिनों बाद बीसीसीआई की एजीएम में सौरव बीसीसीआई के अध्यक्ष चुने गए. बृजेश पटेल अंतिम समय तक अध्यक्ष बनने की रेस में आगे चल रहे थे लेकिन रात 11 बजे मुम्बई के एक सात सितारा होटल में बीसीसीआई के अधिकारियों ने तय किया था कि बृजेश पटेल को आईपीएल चेयरमैन का पद दिया जाएगा और 'दादा' बीसीसीआई अध्यक्ष बनेंगे. माना जाता है कि अनुराग ठाकुर ने बड़े स्तर पर बात को आगे बढ़ाया था कि बीसीसीआई को सौरव की ज़रूरत क्यों हैं.


हालांकि, बीसीसीआई अध्यक्ष चुने जाने के अगले दिन एबीपी न्यूज़ को दिए गए खास इंटरव्यू में सौरव गांगुली ने कहा था, "कोई राजनीतिक दवाब में काम करने वाला नहीं हूं.'' साथ ही साथ उन्होंने अनुराग ठाकुर को धन्यवाद दिया था और साथ में कहा था, "अमित शाह को भी धन्यवाद अगर इसमे उनका भी कोई रोल रहा तो."


सीसीआई का अध्यक्ष बनने के बाद सौरव गांगुली के नेतृत्व में पिंक बॉल टेस्ट मैच पहली बार भारत में किया गया. ये मैच ईडन गार्डन्स में खेला गया था. इसके आगे जब ऐसा लग था कि कोरोना काल में आईपीएल नहीं होगा तो टूर्नामेंट का आयोजन दुबई में किया गया. इसके साथ ही टी-20 वर्ल्ड कप का आयोजन भारत में कराने के लिए भी बीसीसीआई ने क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया और आईसीसी को राजी करा लिया.


माना जाता है कि बीसीसीआई में इस कामों को अंजाम देने वाले कोई और नहीं बल्कि गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह हैं. वे पिछले एक साल में सौरव गांगुली के एक बहुत अच्छे जोड़ीदार बन गए हैं. दोनों ने मिलकर कोरोना काल की मुश्किल हालातों में भी बीसीसीआई का कोई भी काम रुकने नहीं दिया.


कल यानी रविवार को अचानक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़ से सौरव गांगुली मिलने के बाद अटकलें और भी तेज हो गयी हैं. हालांकि, गांगुली ने एबीबी न्यूज़ को कहा है कि राज्यपाल को ईडन गार्डन्स पर इनवाइट करने के लिए राजभवन गए थे.


राजनीति में आएंगे तो गांगुली को क्या कुछ छोड़ना पड़ेगा?


फिलहाल गांगुली के पास लगभग 30 से भी ज़्यादा ब्रांड हैं. विराट कोहली और धोनी के बाद इतने ब्रांड्स किसी भी क्रिकेटर या पूर्व क्रिकेटर के पास नहीं हैं. सालाना इस ब्रांड्स से सौरव गांगुली की कमाई लगभग 75 करोड़ रुपये की है. इसके अलावा एक अनुमान के मुताबिक सौरव 15 करोड़ रुपये सालाना अलग-अलग काम जैसे कि कॉर्पोरेट लेक्चर्स या फिर टीवी शो होस्ट करने के ज़रिए कमाते हैं. ऐसे में कुल मिलाकर गांगुली की कमाई करीब 90 करोड़ रुपये सालाना है. अगर वे बंगाल की राजनीति में बीजेपी का मुख्य चेहरा बनते हैं तो उन्हें 5 साल में 450 करोड़ रुपये की कमाई को छोड़कर यहां शामिल होना होगा.


हालांकि, जो लोग सौरव गांगुली को करीब से जानते हैं उनका मानना है कि बाहर वो इतने बड़े सेलिब्रिटी ज़रूर हैं लेकिन निजी जिंदगी में वो सरल ज़िंदगी जीते हैं. वे परिवार के साथ ही रहना पसंद करते हैं और समाज के लिए भी काम करना चाहते हैं. इसका उदाहरण कोरोना काल में भी देखा गया था, जब गरीब लोगों को 50 लाख रुपये का चावल बांटने के लिए 'दादा' भारत सेवाश्रम संघ पहुंचे थे.


कुल मिलाकर गांगुली ने जैसे कभी हां नहीं कहा वैसे ही कभी ना भी नहीं कहा है. जब तक वे राजनीति में आने को लेकर ना कहते रहेंगे, उनके हर मूव को स्कैन किया जाएगा. ऐसे ही वो जब राज्यपाल या राजनेताओं से मिलेंगे अटकलें तेज़ होती रहेंगी. बीजेपी के समर्थक खुश होते रहेंगे और टीएमसी का ब्लड प्रेशर बढ़ता रहेगा.


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