नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के चुनाव में इस बार आर्थिक विकास व बेरोजगारी बड़े मुद्दे बनकर उभरे है. पिछले एक दशक में राज्य की बदहाली के लिये मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार को कटघरे में खड़ी करने वाली बीजेपी को यह मुद्दा इसलिए भी रास आ रहा है क्योंकि इससे ममता एक तरह से बैकफुट पर नजर आती दिख रही हैं. पांच साल पहले हुए चुनाव के वक़्त ममता की तृणमूल कांग्रेस ने पांच लाख नये रोजगार देने का वादा किया था लेकिन हुआ इसके उलट. पिछले कुछ सालों में दो लाख सरकारी नौकरियां ही खत्म कर दी गईं जिसके चलते बंगाली नौजवान बेहद निराश हैं.
उनकी इस नाराजगी को ही बीजेपी ममता के खिलाफ एक औजार के रूप में इस्तेमाल कर रही है. दरअसल, पिछले दो चुनाव के नतीजे बताते हैं कि युवाओं के बड़े तबके ने वाम दलों से छिटककर तृणमूल का साथ दिया और इनके दम पर ही ममता सरकार बनाने में कामयाब हुई.
करीब 10 करोड़ की आबादी वाले राज्य में 18 से 35 वर्ष की उम्र वाले युवाओं की संख्या 50 फीसदी के आसपास है. कह सकते हैं कि सत्ता की चाबी इसी युवा पीढ़ी के पास है. यही वजह है कि सभी दलों ने अपने चुनावी घोषणा या संकल्प पत्र में इस पर ज्यादा फोकस दिया है.
युवाओं का बड़ा तबका तृणमूल का मजबूत वोट बैंक माना जाता है, लिहाज़ा ममता की पूरी कोशिश है कि यह उससे छिटककर किसी और का साथ न दे सके.जबकि बीजेपी ने तृणमूल के इस गढ़ में सेंध लगाने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है.
साल 2016 में हुए विधानसभा के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का वोट प्रतिशत 45 फीसदी के आस पास था जबकि भारतीय जनता पार्टी को 41प्रतिशत वोट मिले थे. राजनीतिक प्रेक्षकों के मुताबिक तृणमूल और वाम दलों को युवाओं के अच्छे खासे वोट मिले थे. तृणमूल के आधे से ज्यादा वोट तो युवाओं के ही थे.
यही देखते हुए इस बार तृणमूल कांग्रेस ने 74 मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिया है और उनके स्थान पर युवाओं को चुनावी मैदान में उतारा है. राजनीतिक दलों की अगर बात की जाए तो युवाओं को चुनाव में सीटें देने की नीति सिर्फ वाम दलों के पास ही है जो कहती है कि 60 प्रतिशत टिकट 40 साल या उस से कम उम्र वालों को दिए जाएं.
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को राज्य में 18 सीटें मिलने की बड़ी वजह भी युवा पीढ़ी ही बनी क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की नीतियों से युवा वर्ग प्रभावित हुआ.
बीजेपी के बड़े नेता अपनी हर सभा में ममता को इस पर भी घेर रहे हैं कि सकल घरेलू उत्पाद में पश्चिम बंगाल का योगदान 30 प्रतिशत से गिर कर 3 प्रतिशत पर आ गया है. जबकि स्वतंत्रता से पहले पश्चिम बंगाल देश के जीडीपी में 30 प्रतिशत का योगदान करता था. पार्टी का यह भी आरोप है कि पश्चिम बंगाल में सर्विस सेक्टर की विकास दर भी सिर्फ 5.8 प्रतिशत ही है.
जहां तक नौकरियों के लिए पलायन की बात आती है, तो ये भी सही है कि इन मानकों पर पूरे देश में पश्चिम बंगाल चौथे स्थान पर आता है. हालांकि ये आंकड़े पुराने हैं जो साल 2011 की जनगणना पर ही आधारित हैं.
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