Bhabanipur By-poll: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के भवानीपुर उप-चुनाव 30 सितंबर को ही निर्धारित समय के अनुसार होने की मंगलवार को अनुमति दी. कोर्ट ने उप-चुनाव को प्राथमिकता के आधार पर कराने के चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. अदालत ने सायन बनर्जी नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में यह आदेश पारित किया. याचिकाकर्ता ने पश्चिम बंगाल के भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव को प्राथमिकता देने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विधायक के रूप में चुनाव लड़ेंगी.


वरिष्ठ सरकारी वकील ललित मोहन महता ने बताया "आज इस मामले में कुछ फैसला सुनाया गया है, यह स्पष्ट फैसला नहीं है, सिर्फ चुनाव होगा और एक मुख्य सचिव पर कुछ टिप्पणी है जिसका खुलासा नहीं किया गया था. क्या टिप्पणियां हैं और विशेष रूप से इसके संबंध में मेरा निवेदन है कि हम राज्य हैं हमारे विद्वान महाधिवक्ता और राज्य की रक्षा करने वाले सरकारी याचिकाकर्ता लेकिन राज्य की ओर से प्रस्तुत नहीं किया गया था? याचिकाकर्ता और राज्य चुनाव आयोग के विद्वान अधिवक्ता को सुनने के बाद ही आदेश पारित किया गया है और अगली बात यह है कि सीधे लागत और सार्वजनिक व्यय पर 17 को सुनवाई होगी. अंतिम फैसला नहीं सुनाया गया है."


हालांकि, अदालत ने "संवैधानिक आवश्यकता को देखते हुए" भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव कराने में आपातकाल का हवाला देते हुए चुनाव आयोग को लिखे उनके पत्र के लिए मुख्य सचिव के आचरण पर कड़ी टिप्पणी की. अदालत ने सयान बनर्जी नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में यह आदेश पारित किया. याचिकाकर्ता ने पश्चिम बंगाल के भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव को प्राथमिकता देने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उम्मीदवारों में शामिल हैं.


सायन बनर्जी ने बताया- "भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी राज्य प्रेस नोट के पैरा छह और सात, मुख्य सचिव ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा और भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव कराने के लिए कहा, क्योंकि टीएमसी उम्मीदवार और बंगाल के सीएम भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए प्रखर हैं और मुख्य सचिव ने कहा कि यदि ममता बनर्जी उस निर्वाचन क्षेत्र से नहीं जीतती हैं, तो वहां संवैधानिक संकट हो जाएगा. हमने इन दो पैराग्राफों को कोर्ट में चुनौती दी है. यह फैसला हमारे लिए एक जीत है क्योंकि यह अदालत से एक स्पष्ट संदेश है कि बंगाल का पूरा ब्यूरो प्रेस अब राजनीतिक जांच के दायरे में है और बंगाल के नौकरशाहों ने अब अपने कार्यों का निर्वहन संविधान के अनुसार नहीं बल्कि राजनीतिक दल के हित में किया,."  


सायन ने चीफ सेक्रेटरी को पद छोड़ने की मांग करते हुए कहा कि "हमारी जीत सुबह-सुबह ही हो गई, क्योंकि चुनाव की सिर्फ एक तारीख घोषित हुई थी. अंतिम दिन अदालत ने यह मुद्दा उठाया कि अगर चुनाव एक निर्वाचन क्षेत्र में नहीं हुआ तो संवैधानिक संकट होगा तो बाकी 4 का क्या होगा? चुनाव आयोग जल्द से जल्द 4 निर्वाचन क्षेत्रों की तारीख घोषित करे. यह स्पष्ट जीत है. मुख्य सचिव को कुछ समय के लिए इस्तीफा दे देना चाहिए, वह पूरी तरह से राजनीतिक हित में काम कर रहे हैं. वह संवैधानिक कार्य के अनुसार काम नहीं कर रहा है. ममता किस सीट से लड़ेंगी, ममता बनर्जी अगर नहीं जीतीं तो राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा. क्या राज्य का कोई मुख्य सचिव चुनाव आयोग को ऐसा पत्र लिख सकता है?"


यह ध्यान दिया जा सकता है कि अदालत ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव एचके द्विवेदी के चुनाव आयोग के पत्र पर भी आपत्ति व्यक्त की थी, जिसमें कहा गया था कि अगर भवानीपुर में चुनाव तुरंत नहीं हुए तो राज्य में 'संवैधानिक संकट' होगा. मुख्य सचिव के पत्र का उल्लेख करते हुए, चुनाव आयोग ने अदालत को सूचित किया था कि उसने भवानीपुर में चुनाव कराने का फैसला क्यों किया.


पोल पैनल की प्रतिक्रिया तब आई जब कलकत्ता हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए तर्कों के मद्देनजर उसके द्वारा जारी अधिसूचना की सामग्री के बारे में एक याचिका दायर करने के लिए कहा था. अदालत ने चुनाव आयोग से यह बताने को कहा था कि आयोग ने ऐसा क्यों सोचा कि अगर भवानीपुर में उपचुनाव नहीं हुआ तो इससे संवैधानिक संकट पैदा हो जाएगा. गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम चुनाव में बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी से हार गई थीं. अपनी हार के बावजूद, वह बंगाल की मुख्यमंत्री बनी रहीं. हालांकि, बनर्जी को पद पर बने रहने के लिए अक्टूबर तक विधायक के रूप में निर्वाचित होना होगा.


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