नई दिल्ली: भारतीय बाजार के टेलीकॉम चक्रव्यूह में फंसी वोडाफोन के लिए आखिरकार एक अच्छी खबर सामने आई है. 6 साल से ज़्यादा की लंबी लड़ाई के बाद यूके की टेलीकॉम दिग्गज वोडाफोन ने भारत सरकार के खिलाफ लगभग 20,000 करोड़ रुपये के रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स विवाद में जीत हासिल की है. वोडाफोन के लिए जाहिर तौर पर ये बड़ी ऊर्जा देने वाली खबर है. हेग स्तिथ परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने वोडाफोन के पक्ष में फैसला सुनाया है. ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा है कि भारत सरकार ने वोडाफोन के ऊपर जो टैक्स देनदारी निकाली है, वो भारत और नीदरलैंड के बीच हुए निवेश समझौते के खिलाफ है. अपने आदेश में ट्रिब्यूनल ने कहा है कि भारत सरकार अब वोडाफोन से टैक्स की रकम नहीं लेगी. इसके अलावा भारत सरकार को वोडाफोन को 54.7 लाख डॉलर (लगभग 40 करोड़ रुपये) लीगल खर्च के तौर पर भी चुकाने होंगे.


क्या था विवाद?
दरअसल, ये पूरा विवाद शुरू हुआ था 2007 में. आपको शायद याद होगी "हच" टेलीकॉम कंपनी जिसका पूरा नाम था Hutchison Whampoa. वोडाफोन ने अपनी नीदरलैंड की एक सहायक कंपनी के जरिये भारतीय टेलीकॉम बाजार में एंट्री की. इस एंट्री के लिए वोडाफोन ने हच को खरीद लिया. बस यहीं से टैक्स विवाद की शुरुआत होती है. वोडाफोन का कहना था कि उनकी कंपनी नीदरलैंड की है और हच हांगकांग की. दोनों कंपनियां जब बाहर की हैं, तो फिर भारत सरकार इस खरीद पर टैक्स नहीं वसूल सकती. मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में गया. सुप्रीम कोर्ट में भी वोडाफोन जीत गयी. इसके बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स अमेंडमेंट यानी पुरानी तारीख से टैक्स नियम में बदलाव कर दिया. इसके बाद सरकार ने फिर वोडाफोन से टैक्स मांगा. इसके बाद अप्रैल 2014 में वोडाफोन ने अंतराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया. 6 साल से ज़्यादा समय तक चली कानूनी लड़ाई के बाद अब फैसला वोडाफोन के पक्ष में आया है.


कितनी रकम थी टैक्स की?
UPA-2 सरकार ने वोडाफोन और hutchison सौदे पर 11,000 करोड़ रुपये की टैक्स देनदारी निकाली थी. वोडाफोन ने hutchison की हिस्सेदारी 11 अरब डॉलर में खरीदी थी. उस समय पर जो 11,000 करोड़ रुपये की देनदारी निकली थी, वो अब तक ब्याज और पेनल्टी जोड़कर 20,000 करोड़ रुपये पर आ पहुंची थी. अब इसी 20,000 करोड़ रुपये की टैक्स देनदारी के मामले से वोडाफोन को निजात मिल गयी है.


सरकार को झटका
जानकार मानते हैं की वोडाफोन की जीत सिर्फ वोडाफोन की जीत नहीं है. ये भारत सरकार के लिए खतरे की घंटी भी हो सकती है. भारत सरकार रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स मामलों और कॉन्ट्रैक्ट कैंसलेशन के लगभग 12 मामलों में अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल में मुकदमेबाजी में उलझी हुई है. अगर वोडाफोन का ये मामला नज़ीर बनता है तो भारत सरकार को करोड़ों रुपये इन कंपनियों को हर्जाने के रूप में देने पड़ सकते हैं.


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