Judge Transfer: ज्ञानवापी मामले में वाराणसी के जिला जज का ट्रांसफर कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने इसका आदेश देते हुए कहा कि मामले की जटिलता को देखते हुए इसे अधिक अनुभवी जज को भेजा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मामले से जुड़े सभी वाद और आवेदन पर अब जिला जज ही सुनवाई करेंगे. 3 जजों की बेंच ने जिला जज से कहा है कि वह मुस्लिम पक्ष के उस आवेदन को प्राथमिकता से सुनें, जिसमें हिंदू पक्ष के वाद को सुनवाई के अयोग्य कहा गया है.


जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, सूर्य कांत और पीएस नरसिम्हा की बेंच ने परिसर में यथस्थिति का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि 17 मई को जो अंतरिम आदेश दिया गया था, वह अभी लागू रहेगा. इसके तहत शिवलिंग वाली जगह सुरक्षित रखी जाएगी. यानी वहां वज़ू नहीं होगा. परिसर में पहले की तरह नमाज़ पढ़ी जाती रहेगी. कोर्ट ने प्रशासन से कहा है कि वह वज़ू के लिए उचित इंतजाम करे. जुलाई के तीसरे हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई होगी.


अंतरिम आदेश प्रभावी रहेगा


सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि वाद को सुनवाई के अयोग्य बताने वाले आवेदन पर जिला जज के आदेश के 8 हफ्ते तक 17 मई का अंतरिम आदेश प्रभावी रहेगा. ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि आदेश से प्रभावित पक्ष को अपील के लिए ज़रूरी समय मिल सके.


कोर्ट में भिड़ गए मुस्लिम पक्ष और हिंदू पक्ष के वकील


सुनवाई के दौरान 2-3 बार अंजुमन इंतजामिया मस्ज़िद के वकील हुजेफा अहमदी की हिंदू पक्ष के लिए पेश वरिष्ठ वकील सी एस वैद्यनाथन और यूपी सरकार के लिए पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से हल्की झड़प हुई. वैद्यनाथन की मांग थी कि सबसे पहले ज़िला जज को सर्वे कमीशन की रिपोर्ट पर सुनवाई करनी चाहिए. वहीं तुषार मेहता ने वज़ू को लेकर अहमदी पर गलतबयानी का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने वज़ू के लिए ज़रूरी प्रबंध किया है.


कोर्ट की अहम टिप्पणी


मुस्लिम पक्ष के वकील ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि एक्ट की धारा 3 के तहत किसी धार्मिक जगह का चरित्र नहीं बदला जा सकता. इस पर बेंच के अध्यक्ष जस्टिस चंद्रचूड़ ने उन्हें टोकते हुए कहा कि किसी जगह के धार्मिक चरित्र का पता लगाने का प्रयास धारा 3 का उल्लंघन नहीं है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर किसी पारसी पूजा स्थल में ईसाई धार्मिक प्रतीक क्रॉस रखा हो और मामला कोर्ट में आ जाए, तो जज उस जगह के धार्मिक स्टेटस की जांच कर सकते हैं.


जजों ने यह भी साफ किया कि मामला ज़िला जज को भेजने का अर्थ यह नहीं है कि वह अब तक मामले को सुन रहे सीनियर डिवीजन सिविल जज के काम पर कोई नकारात्मक टिप्पणी कर रहे हैं. मामले के जटिल कानूनी सवालों को देखते हुए ज़िला जज के पास इसे भेजा जा रहा है क्योंकि उन्हें सिविल मामलों में 25 से 30 साल का अनुभव होता है.


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