Uttarakhand UCC: उत्तराखंड सरकार जल्द ही यूसीसी समिति की सिफारिशों के आधार पर समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पर चर्चा और पारित करने के लिए राज्य विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाएगी. सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय समिति जल्द ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी.


इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विधेयक का व्यापक ध्यान विवाह पंजीकरण, तलाक, संपत्ति अधिकार, अंतर-राज्य संपत्ति अधिकार, रखरखाव, बच्चों की हिरासत जैसे व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता पर है. समिति की सिफ़ारिश में कहा गया है कि महिलाओं के लिए विवाह योग्य आयु 18 साल बरकरार रखी जानी चाहिए और इसे बढ़ाकर 21 साल करने का सुझाव नहीं दिया गया है. हालांकि सबसे ज्यादा चर्चा इसी को लेकर हो रही है कि महिलाओं की उम्र 18 साल से 21 साल कर दिया जाए.


किस पार्टी का क्या है स्टैंड?


साल 2020 में स्वतंत्रता दिवस के संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार भारत में महिलाओं की शादी के लिए सही उम्र पर फिर से विचार करेगी और इसे निर्धारित भी करेगी. इसके बाद जया जेटली की अध्यक्षता वाली केंद्र की टास्क फोर्स की ओर से दिसंबर 2020 में नीति आयोग को सौंपी गई सिफारिशों के आधार पर, केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने दिसंबर 2021 में लोकसभा में बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक पेश किया. जिसमें महिलाओं के लिए शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र 18 से 21 साल करने की मांग की गई.


सत्तारूढ़ बीजेपी ने तर्क दिया कि यह विधेयक लैंगिक समानता और न्याय के लिए महत्वपूर्ण है साथ ही धर्मनिरपेक्ष भी. विधेयक को ''जल्दबाजी में लाए जाने'' का विरोध करते हुए कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने मांग की कि इसे स्थायी समिति के पास भेजा जाना चाहिए। विपक्षी सदस्यों ने यह भी आरोप लगाया कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और इससे व्यक्तिगत कानूनों पर असर पड़ेगा.


क्या कहना है कांग्रेस का?


कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, 'हम सरकार को सुझाव देना चाहते हैं कि अगर आप जल्दबाजी में कुछ भी करेंगे तो आपसे गलतियां होने की संभावना है. पूरे भारत में इस मुद्दे पर काफी बहस छिड़ी हुई है और इस सरकार ने न तो राज्यों से परामर्श किया है और न ही हितधारकों से बात की है. हम मांग करते हैं कि इस विधेयक को तुरंत स्थायी समिति के पास भेजा जाए.”


असदुद्दीन ओवैसी ने क्या कहा?


एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. उन्होंने कहा, “यह एक प्रतिगामी संशोधन है. यह अनुच्छेद 19 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है. 18 साल की लड़की प्रधानमंत्री चुन सकती है, लिव-इन रिलेशनशिप में रह सकती है, पॉक्सो एक्ट के तहत यौन संबंध बना सकती है, लेकिन सरकार उन्हें शादी के अधिकार से वंचित कर रही है. आपने 18 साल के युवाओं के लिए क्या किया है? भारत में महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी सोमालिया से कम है. सर, 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के फंड का 89 प्रतिशत अन्य विविध प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया था.'


अन्य विपक्षी दलों ने क्या कहा?


इसके अलावा इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के ईटी मोहम्मद बशीर ने कहा कि विधेयक "असंवैधानिक" है और अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है. उन्होंने कहा, "यह इस देश में व्यक्तिगत कानून और मौलिक अधिकारों पर हमला है." एनसीपी की सुप्रिया सुले ने कहा कि सरकार आक्रामक तरीके से विधेयक ला रही है और विपक्ष से किसी से सलाह नहीं ली जा रही है. इसी तरह का विचार व्यक्त करते हुए डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा कि विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श किया जाना चाहिए.


स्मतृति ईरानी ने दिया जवाब


सभी आलोचनाओं का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, “पुरुषों और महिलाओं को विवाह में प्रवेश करने के समान अधिकार प्रदान करने में हमें 75 साल की देरी हो गई है. 19वीं सदी में महिलाओं के लिए विवाह की उम्र 10 वर्ष थी. 1940 तक इसे बढ़ाकर 12-14 वर्ष कर दिया गया. 1978 में, 15 वर्ष की आयु तक पहुंचने वाली महिलाओं की शादी कर दी गई. इस विधेयक के माध्यम से पहली बार पुरुष और महिलाएं समानता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए अपनी शादी का फैसला कर सकते हैं.'


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