UP Elections 2022: उत्तर प्रदेश के चुनावी घमासान में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के गठबंधन में रस्साकशी की खबरों ने एक नया ट्विस्ट दे दिया है. 23 दिसंबर को सपा प्रमुख अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की हुई साझा रैली के बाद से जयंत चुनावी रण से गायब हैं, जिससे ये सवाल उठने शुरू हो गए कि क्या सीटों के बंटवारे को लेकर अखिलेश और जयंत एक साथ नहीं आ रहे? सवाल ये है कि क्या गठबंधन में सबकुछ ठीक है? इस नए ट्विस्ट से समाजवादी पार्टी को फायदा होगा या नुकसान?


23 दिसंबर को अलीगढ़ में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की रैली से पश्चिमी यूपी में बीजेपी को अखिलेश से कड़ी टक्कर मिलने के संकेत मिले. इसके बाद उम्मीद थी कि अब अखिलेश और जयंत की ये जोड़ी आए दिन नजर आएगी, लेकिन 23 दिसंबर के बाद जयंत चौधरी गायब हो गए, जिसके बाद पता चला कि सीटों के बंटवारे को लेकर गठबंधन में गांठ पड़ रही है.


कहां फंसा है पेच?



  • माना जा रहा था कि अखिलेश जयंत को 36-40 सीट देंगे.

  • अखिलेश ने सिर्फ एक दर्जन से कुछ ज्यादा सीट की सहमति दी है.

  • 28 से ज्यादा सीट के लिए अखिलेश अभी तैयार नहीं हैं.


हंलाकि गठबंधन में मनमुटाव की खबरें आते ही अखिलेश ऐक्टिव मोड में आए और दरार भरनी शुरू की, जिसके बाद जयंत चौधरी की ओर से ये कहा गय़ा है कि 10 जनवरी को आगरा की रैली में सब कुछ ठीक होने का संदेश देंगे. दरअसल एसपी और आरएलडी गठबंधन में सीट के साथ साथ रस्साकशी वर्चस्व की भी है.




(अखिलेश के साथ जयंत चौधरी)

क्या चाहते हैं अखिलेश?



  • अखिलेश पश्चिमी यूपी में SP का वर्चस्व बनाना चाहते हैं.

  • कांग्रेस के दो जाट चेहरे हरेंद्र मलिक और पंकज मलिक SPमें जोड़े गए हैं.

  • हरेंद्र और पंकज पहले RLD से जुड़ने वाले थे.

  • दोनों की सीट पर RLD दावा कर रही है.


पश्चिमी यूपी में सपा को फायदा या नुकसान?


अगर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल में सबकुछ सही रहता है तो यहां सपा गठबंधन बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकता है. एबीपी न्यूज़ सी वोटर के ताजा सर्वे में पश्चिमी यूपी की 136 सीटों में से 40 फीसदी वोट बीजेपी गठबंधन के पक्ष में जाता दिख रही है, जबकि सपा गठबंधन को 33 फीसदी वोट मिल सकते हैं. वहीं, बीएसपी को 15 फीसदी, कांग्रेस को कुल सात फीसदी और अन्य को पांच फीसदी वोट मिलने की संभावना है. 




(जयंत चौधरी के साथ अखिलेश यादव)

SP-RLD गठबंधन के मायने क्‍या हैं


कृषि कानूनों को लेकर बीजेपी पहले ही जाटों को नाराज कर चुकी है. ऐसे में सपा-रालोद गठबंधन बीजेपी से जाटों की इसी नाराजगी का फायदा उठा सकता है. हालांकि ये कानून वापस लेकर बीजेपी ने चुनाव में नया दांव खेला है, लेकिन चुनावी विशेषज्ञ मानते हैं कि अब बीजेपी के लिए बहुत देर हो चुकी है. दूसरा पहलू ये भी है कि पश्चिमी यूपी में यादव वोट मुस्लिम और जाट वोटों के मुकाबले बेहद कम हैं. जाटों में रालोद की पैठ पहले से ही है, जिसका फायदा अखिलेश को मिलना लाजमी है.


जाहिर है कि अगर रालोद और समाजवादी पार्टी के बीच सीटों पर बात नहीं बनी तो पश्चिमी यूपी में अखिलेश को मुंह की खानी पड़ सकती है. जयंत चौधरी के साथ रहना और उनकी मांगों को मानना अखिलेश की बड़ी मजबूरी है. गठबंधन में टूट से बीजेपी को ही फायदा होगा. ऐसे में दोनों पार्टियां नहीं चाहेंगी कि ये सुनहरा मौका हाथ से छूटने दिया जाए.


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