UP Assembly Election 2022: बात शुरू होती है 1963 की तारीख 3 जून से. गाजीपुर जिले के यूसुफनगर में सुभानुल्लाह अंसारी और बेगम राबिया के घर एक लड़का पैदा हुआ. दादा मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम के दौर में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के अध्यक्ष और जामिया मिलिया इस्लामिया के चांसलर रह चुके थे. विदेश से पढ़ाई की थी. उनकी डॉक्टरेट ऑफ मेडिसिन और डॉक्टरेट ऑफ सर्जरी जैसी डिग्री दीवार पर लटकी थीं. आजादी की लड़ाई में वह कांग्रेस थे और महात्मा गांधी भी मुलाकात के लिए आते रहते थे.


बचपन में शायद परिवारवालों ने यही सोचा होगा कि पोता भी दादा की तरह दुनियाभर में नाम कमाएगा. लेकिन किसे पता था कि वो लड़का यूपी में एक दिन पूर्वांचल के बड़े डॉन ब्रजेश सिंह को ललकारेगा और फिर उसकी जगह लेकर उत्तर प्रदेश का डॉन बन जाएगा. बात हो रही है मऊ से 5 बार के विधायक मुख्तार अंसारी की, जिनका नाम आज भी पूर्वांचल में लोगों को खौफजदा करने के लिए काफी है. 


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ऐसे शुरू हुई कहानी


1970 के दशक में देश तेजी से बदल रहा था. नई-नई फैक्टरियां लगाई जा रही थीं. नए-नए कॉलेज बन रहे थे. और बड़े-बड़े सरकारी ठेके बंट रहे थे. यूपी सरकार ने पिछड़े पूर्वांचल इलाके को विकास के पंख लगाने के इरादे से प्रोजेक्ट्स मंजूर किए. लेकिन किसी को इल्म नहीं था कि इन प्रोजेक्ट्स के कॉन्ट्रैक्ट्स को लेने के लिए सूबे में माफिया गैंग जन्म ले लेंगे और यूपी की धरती 'लाल' हो जाएगी.


मुख्तार को जुर्म की दुनिया में अपने नाखून पैने करने का मौका मखनु सिंह के गैंग में मिला. साल 1980 में इस गैंग की साहिब सिंह के गैंग से गाजीपुर के सैदपुर में एक जमीन के प्लॉट को लेकर बवाल हुआ और फिर तो हिंसा और कत्लेआम का ऐसा दौर चला कि लोग सिहर उठे. 


साहिब सिंह के गैंग में वाराणसी का एक लड़का था, जिसका नाम था ब्रजेश सिंह. वही ब्रजेश सिंह जिससे मुख्तार अंसारी का 36 का आंकड़ा था. साल 1990 में ब्रजेश सिंह ने अपना गैंग बना लिया और गाजीपुर के कॉन्ट्रैक्ट वर्क माफिया को अपने कंट्रोल में ले लिया. 


कोयला, रेलवे कंस्ट्रक्शन, माइनिंग, शराब और पब्लिक वर्क जैसे 100 करोड़ के कॉन्ट्रैक्ट के काम को लेकर अंसारी और ब्रजेश सिंह गैंग के बीच कई बार खूनी खेल चला. ये गैंग वसूली रैकेट, किडनैपिंग और गुंडा टैक्स तक वसूलते थे. 


अंसारी के नाम से कांपते थे लोग


90 का दशक आते-आते मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में जुर्म की दुनिया का बड़ा नाम बन चुका था. वाराणसी, गाजीपुर, जौनपुर और मऊ में तो उसके नाम से ही लोग कांपते थे. 


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ब्रजेश सिंह से टक्कर लेने के लिए मुख्तार ने रुख किया राजनीति का. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति के जरिए उसने सियासत के गुर सीखे और 1996 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट से जीतकर विधायक बन गए. इसके बाद तो सीधे मुख्तार ने ब्रजेश सिंह के वर्चस्व को चुनौती देना शुरू कर दिया. पूर्वांचल में यही दो मुख्य गैंग बन गए. 


कहा जाता है कि साल 2002 में ब्रजेश सिंह ने घात लगाकर अंसारी के काफिले पर हमला किया, जिसके बाद दोनों तरफ से ताबड़तोड़ गोलियां चलीं और मुख्तार के तीन आदमी मारे गए.  इस शूटआउट में ब्रजेश सिंह भी बुरी तरह घायल हो गया और उसे मृत मान लिया गया. इसके बाद तो पूरे पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी का डंका बजने लगा. 


हालांकि बाद में ब्रजेश सिंह जिंदा मिले और दुश्मनी का सिलसिला भी बदस्तूर जारी रहा. ब्रजेश सिंह अब समझ चुके थे कि अगर मुख्तार से टक्कर लेनी है तो ताकत के साथ-साथ कूटनीति भी चलनी होगी. 


ब्रजेश ने दिया बीजेपी के कृष्णानंद राय को सपोर्ट


मुख्तार की काट तलाश रहे ब्रजेश सिंह ने चुनावी कैंपेन में बीजेपी के कृष्णानंद राय को सपोर्ट दिया. राय ने मुख्तार अंसारी के भाई और पांच बार के विधायक अफजल अंसारी को 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव की मोहम्मदाबाद सीट से शिकस्त दे दी. मुख्तार ने बाद में यह आरोप भी लगाया था कि राय ने अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर ब्रजेश सिंह के गैंग को तमाम कॉन्ट्रैक्ट्स दिलवा दिए थे और दोनों ने उन्हें मारने का प्लान भी बनाया था. 


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ताकत के साथ-साथ जातिगत समीकरणों का सहारा


एक तरफ मऊ-गाजीपुर इलाके के चुनावों में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए अंसारी मुस्लिम वोटबैंक का सहारा लेते थे वहीं उनके विरोधी हिंदू वोटों को मजबूत करने की कोशिश करने लगे. इससे इलाके में उस वक्त अपराध, राजनीति और धर्म का ऐसा तेजाब बना, जिससे कई बार सांप्रदायिक हिंसा भड़की. ऐसे ही एक दंगे में मुख्तार को हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि बाद में कोर्ट ने उन्हें इस मामले में बरी कर दिया. 




...वो घटना, जिसने सबको हिला दिया


इसके बाद यूपी की राजनीति में वो घटना हुई, जिससे हर कोई हैरान रह गया. मुख्तार जेल में कैद थे और 7 लोगों समेत कृष्णानंद राय को हमलवारों ने गोलियों से भूनकर मार डाला. 6 एके-47 राइफल्स से 400 गोलियां चलीं. शवों के पास से 67 गोलियां बरामद हुई थीं. सियासी गलियारों में खलबली मच गई. पुलिस तहकीकात में जुटी.  एक गवाह शशिकांत राय ने कृष्णानंद राय के काफिले पर हमला करने वाले दो हमलावरों की पहचान की. ये दोनों अंसारी और बजरंगी शूटर्स गैंग के थे. हालांकि 2006 में शशिकांत की संदिग्ध हालत में मौत हो गई. 


कृष्णानंद राय की मौत के बाद गाजीपुर-मऊ इलाके से ब्रजेश सिंह भाग निकला और 2008 में ओडिशा से पकड़ा गया.  साल 2008 में अंसारी को मर्डर केस में एक गवाह धर्मेंद्र सिंह पर हमला करने का आदेश देने के लिए मुकदमा दर्ज किया. हालांकि पीड़ित ने एफिडेविट जमा कर अंसारी के खिलाफ कार्रवाई बंद करने का अनुरोध किया. 2017 में अंसारी को मर्डर केस से बरी कर दिया गया. 


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जेल से मुख्तार ने लड़ा था चुनाव 


मुख्तार और उसके भाई अफजल ने साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी का दामन थामा. उस वक्त मायावती ने मुख्तार को 'गरीबों का मसीहा' तक कहा था. साल 2009 का लोकसभा चुनाव मुख्तार ने वाराणसी से लड़ा था, वो भी जेल में रहते हुए. लेकिन बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी से मुख्तार को शिकस्त नसीब हुई.


साल 2009 में मुख्तार और दो अन्य लोगों का नाम कपिल देव सिंह के मर्डर केस की चार्जशीट में था. पुलिस ने जांच में पाया था कि उसने अगस्त 2009 में कॉन्ट्रैक्टर अजय प्रकाश सिंह को जान से मारने का हुक्म दिया था. इसके अलावा राम सिंह मौर्य के मर्डर केस में भी अंसारी का नाम आया था. मौर्य मन्नत सिंह के मर्डर केस में गवाह था, जिसे अंसारी गैंग ने कथित तौर पर साल 2009 में मार दिया था.


साल 2010 में बीएसपी ने दोनों अंसारी बंधुओं को पार्टी से निकाल दिया. जिस गाजीपुर की जेल में मुख्तार कैद था, वहां जब रेड पड़ी तो पाया गया कि मुख्तार जेल में लग्जरी लाइफ जी रहा था. उसके सेल में एयर कूलर, खाना बनाने के उपकरण पाए गए थे. इसके बाद उसे मथुरा जेल में ट्रांसफर कर दिया गया. 


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बनाई खुद की पार्टी


बीएसपी से निकाले जाने के बाद तीनों अंसारी बंधुओं (मुख्तार, अफजल और सिब्कातिल्लाह) ने अपनी खुद की पार्टी कौमी एकता दल बनाई. इससे पहले मुख्तार ने हिंदू मुस्लिम एकता पार्टी बनाई थी, जिसका कौमी एकता दल में विलय हो गया. साल 2012 में संगठित अपराध का संगठन का सदस्य होने को लेकर मुख्तार पर 'मकोका' लगाया गया. साल 2014 का लोकसभा चुनाव मुख्तार ने पीएम मोदी के खिलाफ वाराणसी से लड़ा लेकिन पराजय झेलनी पड़ी. 


साल 2016 को मुख्तार ने 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले दोबारा बसपा का दामन थामा. साल 2017 में कौमी एकता दल का बसपा में विलय हो गया. मुख्तार अंसारी ने बतौर बसपा उम्मीदवार मऊ विधानसभा सीट से जीत हासिल की. अंसारी ने उस वक्त की बीजेपी सहयोगी रही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के महेंद्र राजभर को मात दी थी. फिलहाल मुख्तार उत्तर प्रदेश की एक जेल में कैद है.