UP Assembly Election 2022: अलीगढ़ एक ऐसा जिला है जिसने हमेशा आंदोलन के जरिए पुरे देश को हिला रखा हैं. लेकिन क्या इस बार भी इस ज़िले ने आवाज उठा कर अपनी पहचान बनाई या फिर बीजेपी ने जो पिछली बार सात सीटों पर बढ़त और जीत हासिल की थी उससे बरक़रार रख पाएगी. गोपाल दास नीरज की ही अंदाज़ में 'एक मजहब ऐसा बनाया जाये जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाये'. चलिए जानते हैं यहां के वोटरों से क्या सोचती हैं यहां की जनता.


अलीगढ़ में पहुंची हमारी टीम ने वहां के अलग अलग शाखाओं के छात्रों ले बातचीत की. उन्होंने इस चुनाव में क्या कुछ बदल रहा है के सवाल पर कहा कि चुनाव में हमारे मुद्दे वही है जो पूरे यूपी के अंदर चल रहें हैं और वो है बेरोज़गारी और मुस्लिम का मुद्दा. उसके अलावा जिस हिसाब से पिछले पांच सालों में क़त्ल और काटलो गारत देखा है, चाहे वो सीएए एनआरसी से देखा हमने या नजीब का मसला देखा या जिन्नाह प्रॉडक्ट्स देखा. हमने बहुत सी ऐसी चीज़ें देखीं हैं जिसपर छात्रों के ऊपर एक अत्याचार किया गया और यह अत्याचार योजनाओं के ज़रिए किया गया क्योंकि हम छात्रों को इतनी कभी मार ना पड़ी जितनी पिछले पांच साल में पड़ी है. 


उनसे पूछा गया कि क्या सिर्फ़ नाम के आधार पर ही जीत और हार होगी या धर्म के आधार पर ही होगी? जवाब में छात्रों ने कहा कि नहीं यूपी चुनाव को तो बाबा बनाम मौलाना कर ही दिया गया है लेकिन ऐसा होने वाला नहीं है. यूपी चुनाव में जो हमलोगो मुद्दे हैं वो काफी अलग है. जैसे के सीएए एनआरसी और उसके बाद जो 20 तारीख़ को छात्र को यहां पर मारा गया, और एक अभी सरकार ने अपना घोषणापत्र भी जारी किया है, जो पहले सरकार रह चुकी है, उन्होंने उसमें कभी भी मुसलमानों का ज़िक्र नहीं किया है यानी जो 25 लाख देने की बात हो रही है, उसमें जो तक़रीबन मॉब लिंचिंगस में मारे जाने वालों की तादात 350 है और उसके बाद सीएए एनआरसी में मारे जाने वालों की तादात 36 है. इन लोगों को मुआवज़ा कौन देगा? 


मुसलमानों को दिए जाए 25-25 लाख रुपए 


उन्होंने कहा चुनावी वादों में ये क्यों नहीं कहा जाता कि मुसलमानों को 25-25 लाख रुपए दिए जाएंगे जो सीएए एनआरसी विरोध में पुलिस की गोलियों से मारे गए हैं. क्या सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं बनती है? सिर्फ़ इनको धर्म की राजनीति करनी है. वो कहते क्या है की अगर मेरी सरकार होती तो मैं एक साल में बाबरी मस्जिद की जगह मंदिर बनवा देता? ये राजनीति चलेगी? और उसके बाद अपने आप को कहते हैं की हम धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार हैं. 


BJP के अलावा अलीगढ़ की जनता को अखिलेश यादव पसंद है या फिर असदुद्दीन ओवैसी. इसके जवाह में लोगों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानो की भारी आबादी है, 20 प्रतिशत आबादी केवल मुसलमान है. जैन, चौधरी, जाटों की 4 प्रतिशत की आबादी है. राजभर भी केवल 4 प्रतिशत ही हैं. उससे अखिलेश यादव जी, 24 सीटें दे दे रहें हैं और हर समाज का जो उत्तर प्रदेश में एक नेता है और उनका प्रतिनिधित्व है यहां. अखिलेश यादव, यादव समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं इसीलिए असदुद्दीन ओवैसी AIMIM मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे है. धर्मनिरपेक्षता है, जमुरियत है, तब तक आप की हिस्सेदारी नहीं होगी सियासत में, फ़ैसले नहीं होंगे. जिस तरीक़े से पिछली हुकूमतों को हमने देखा, अखिलेश यादव ने 2012 में 18 प्रितिशत के आरक्षण का वादा किया, जो कि पूरा नहीं हुआ और वहीं राजभर 4 प्रतिशत समाज के लोगों को 24 सीटें दे दे रहें हैं. जो 10 सीटें एमआईएम को देने के लिए तैयार नहीं है तो उत्तर प्रदेश का मुसलमान एमआईएम के साथ है और मज़बूती से साथ जो है प्रदेश की चुनाव में एमआईएम को वोट करेगा और वोट प्रतिशत बढ़ेंगे.


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