लखनऊ: कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 4 अक्टूबर से 6 अक्टूबर तक अमेठी के तीन दिनों का दौरा कर लौटे हैं. अब 10 अक्टूबर को अमेठी में बीजेपी के बड़े नेताओं का जमावड़ा होगा. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के यह आने की खबर से ही सियासी माहौल गरम हो चुका है. इस दौरान सीएम योगी आदित्यनाथ भी साथ रहेंगें. वहीं सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी अक्सर अमेठी आती रहती हैं. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 13 सालों से अमेठी से लोकसभा सांसद हैं.

जैसे जैसे लोकसभा चुनाव करीब आ रहा है, अमेठी में राजनीतिक सरगर्मियां तेज होने लगी हैं लेकिन इस बार मामला बिल्कुल अलग है. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और यूपी में अखिलेश यादव की. अब तो दोनों जगहों पर बीजेपी की सरकार है.

स्मृति ईरानी लगातार राहुल गांधी पर अमेठी की अनदेखी करने के आरोप लगाती रहती हैं. दिल्ली से लेकर अमेठी तक इस बात को लेकर कांग्रेस और बीजेपी में नोंक-झोंक होती रही है. हालांकि ये भी सच है कि मोदी राज में भी अमेठी में कुछ खास नहीं हुआ है.

स्मृति ईरानी अब कुछ कर दिखाने की जुगत में हैं. अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के इस दौरे में कई प्रोजेक्ट को शुरू करने की तैयारी है. इसके तहत सेंट्रल स्कूल, एफएम रेडियो सेंटर, कृषि विज्ञान केंद्र, चार आईटीआई, महिला हॉस्पिटल समेत कई बिल्डिंग का शिलान्यास होगा. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी यहां 'विकास' का माहौल बनाना चाहती है. कांग्रेस के विधायक रहे जंग बहादुर सिंह उसी दिन बीजेपी में शामिल हो जाएंगे. कांग्रेस के कई और लोकल नेताओं पर डेरे डाले जा रहे हैं.

ये सारा ऑपरेशन खुद स्मृति ईरानी देखती हैं. कांग्रेस सांसद संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह को वही पार्टी में लेकर आई थीं. अमेठी की बड़ी रानी गरिमा अब यहां से विधायक बन गई हैं. बीजेपी ये दिखाना चाहती है कि राहुल गांधी के गढ़ में ही कांग्रेस के नेताओं में भगदड़ मची है.

2014 का लोकसभा चुनाव बड़ा दिलचस्प हो गया था. राहुल गांधी के मुकाबले में स्मृति ईरानी बीजेपी से उम्मीदवार थीं. पीएम नरेन्द्र मोदी ने खुद अमेठी में चुनावी सभा की. एक वक्त तो ऐसा लगा कि शायद राहुल गांधी अपने ही क्षेत्र में फंस गए हैं. तब बहन प्रियंका गांधी ने इनके लिए धुआंधार प्रचार किया. वोटिंग के दिन खुद राहुल गांधी को अमेठी का दौरा करना पड़ा, तब जाकर वो एक लाख से अधिक वोटों से जीत पाए. वहीं कांग्रेस के समर्थन में समाजवादी पार्टी चुनाव ही नहीं लड़ी. वैसे इससे पहले राहुल गांधी तीन लाख वोटों के अंतर से जीतते थे. माना जा रहा है कि स्मृति ईरानी एक बार फिर से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ सकती हैं.

दूसरी ओर राहुल गांधी के मैनेजर भी अपने अभियान में जुट गए हैं. कांग्रेस की तरफ से लोगों को यह समझाया जा रहा है कि जिन परियोजनाओं का शिलान्यास होने वाला है वो सब तो यूपीए सरकार ने ही तय कर दिया था. इसके लिए व्हाट्सएप ग्रूप बना कर लोगों को मैसेज भेजे जा रहे हैं. बताया जा रहा है कि सेंट्रल स्कूल से लेकर बाइपास चौड़ा करने का फैसला तो राहुल गांधी की देन है. वैसे राहुल गांधी बनाम स्मृति ईरानी के इस मुक़ाबले पर पूरे देश की नजर रहेगी.