दिल्ली हाईकोर्ट ने बीते मंगलवार यानी 19 अक्टूबर को दिल्ली दंगा मामले में आरोपी उमर खालिद की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया. हाईकोर्ट ने अर्जी खारिज करते हुए कहा कि उन पर लगाया गया आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं और इन पर UAPA कानून होगा.


दरअसल दो साल से जेल में बंद उमर खालिद ने निचली अदालत के 24 मार्च के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें नियमित जमानत देने के उसके अर्जी को खारिज कर दिया गया था. 


जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने कहा कि उमर खालिद का नाम साजिश की शुरुआत से लेकर दंगों तक आया है. वह जेएनयू के मुस्लिम छात्रों की ओर से बनाए गए व्हाट्सएप ग्रुप का भी सदस्य रहा है. 52 पन्नों के फैसले में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के इस निष्कर्ष को बरकरार रखा कि खालिद के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं. उन्होंने कहा कि खालिद ने जंतर मंतर, जंगपुरा, सीलमपुर आदि जगहों पर मीटिंग में हिस्सा लिया था.


पीठ ने कहा कि खालिद ने अपने भाषणों में जिन फ्रेज का इस्तेमाल किया है वह बहुत ही ज्यादा क्रांतिकारी है और इसका वहां मौजूद लोगों पर गहरा असर पड़ सकता है. 


'इंकलाब', 'क्रांतिकारी' जैसे शब्द अपराध नहीं


वहीं दूसरी तरफ खालिद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील त्रिदीप पेस ने कोर्ट को 'इंकलाबली सलाम' और 'क्रांतिकारी इस्तकबाल' का मतलब समझाते हुए कहा था कि इन शब्दों का इस्तेमाल सभी का अभिवादन करने के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा कि इन शब्दों का इस्तेमाल उन लोगों के खिलाफ किया गया था जो एक भेदभावपूर्ण कानून के खिलाफ खड़े थे और इसका विरोध कर रहे थे.  पेस ने कहा कि 'इंकलाब', 'क्रांतिकारी' या क्रांति जैसे शब्दों के प्रयोग को किसी भी तरह से अपराध नहीं कहा जा सकता है. 


कोर्ट ने भी किया पंडित नेहरू की बात का जिक्र


कोर्ट ने फ्रांसीसी क्रांति के अगुआ 'मैक्सिमिलियन रोबेस्पियर' का उल्लेख करते हुए कहा कि अपीलकर्ता ने अपने भाषण में फ्रांसीसी क्रांति के अगुआ मैक्सिमिलियन रोबेस्पियर का उल्लेख किया था, तो उसे यह भी पता होना चाहिए था कि हमारे स्वतंत्रता सेनानी और पहले प्रधानमंत्री के लिए क्रांति का क्या मतलब था. तथ्य यह है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि आजादी के बाद लोकतंत्र ने क्रांति को गैर-जरूरी बना दिया है और इसका मतलब रक्तहीन बदलाव के बिल्कुल उलट है. 


हाईकोर्ट ने आगे कहा कि  जब हम "क्रांति" अभिव्यक्ति का इस्तेमाल करते हैं, तो यह जरूरी नहीं है कि यह रक्तहीन ही हो. क्रांति हमेशा रक्तहीन नहीं होती है, यही कारण है कि इस टर्म को 'रक्तहीन क्रांति' कहते हैं.   


कोर्ट ने कहा यह नियोजित प्रोटेस्ट राजनीतिक संस्कृति या लोकतंत्र में "सामान्य प्रोटेस्ट नहीं" था, बल्कि एक अधिक विनाशकारी और हानिकारक परिणाम के लिए था. यह साबित हो चुका है कि उमर खालिद और शरजील इमाम दोनों ही एक व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्य हैं.


इसके अलावा विभिन्न गवाहों का बयान भी है कि पीएफआई के कार्यालय में आयोजित एक बैठक सहित कई बैठकों में इन दोनों की मौजूदगी थी. यह कोर्ट यूएपीए के तहत जमानत के स्तर पर गवाहों के बयानों की सत्यता का परीक्षण नहीं कर सकती. " 


2020 में खालिद को किया गया था अरेस्ट


उमर खालिद को साल 2020 के फरवरी महीने में नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों को लेकर दिल्ली पुलिस ने सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया था. शरजील इमाम और कुछ अन्य लोगों के साथ ही दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद को मुख्य आरोपी बताते हुए यूएपीए और आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था.


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