सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (18 दिसंबर, 2025) को उज्जैन में महाकाल लोक परिसर के पार्किंग क्षेत्र की जगह बढ़ाने के लिए की गई भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. याचिका में कहा गया कि पार्किंग एरिया बढ़ाने के लिए तकिया मस्जिद की जमीन का अधिग्रहण किया गया है. 

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यह याचिका मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 11 जनवरी के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई थी, जिस पर जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने सवाल किया कि अधिग्रहण की कार्यवाही के बजाय फैसले को क्यों चुनौती दी गई है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता जमीन के मालिक नहीं हैं इसलिए उन्हें अधिग्रहण की कार्यवाही पर सवाल उठाने का हक नहीं है. कोर्ट ने कहा कि अधिग्रहण की अधिसूचनाओं को चुनौती नहीं दी गई, शिकायतें फैसले के खिलाफ की गई हैं, जबकि वैकल्पित वैधानिक समाधान मौजूद था. 

गुरुवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील हुफैजा अहमदी ने कहा कि भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू करने से पहले सामाजिक प्रभाव आकलन के अनिवार्य प्रावधान का इस मामले में पालन नहीं किया गया. बेंच ने उनकी दलील पर कहा, 'आप सिर्फ कब्जेदार हैं.' कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता जमीन का मालिक नहीं था.

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एडवोकेट हुफैजा अहमदी ने जवाब दिया कि याचिकाकर्ता को फिर भी अवैधता के आधार पर अधिग्रहण पर सवाल उठाने का हक है. उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 4 और 8 का हवाला देते हुए कहा कि अधिग्रहण के दौरान सामाजिक प्रभाव का आकलन करना अनिवार्य प्रावधान है. हालांकि, कोर्ट उनकी इन दलीलों से सहमत नहीं हुआ और उन्होंने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने वकील से पूछा कि वही सवाल अभी भी है कि अधिग्रहण की कार्यवाही को क्यों चुनौती नहीं दी गई और फैसले को चुनौती दी जा रही है. 

पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने आदेश में भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी थी. इस कार्यवाही में मस्जिद को हटा दिया गया था, जिस पर 7 नवंबर को एक और याचिका दाखिल कर मस्जिद के पुननिर्माण के लिए निर्देश देने का आग्रह किया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.

करीब 200 साल पहले स्थापित तकिया मस्जिद को जनवरी में संबंधित भूमि के अधिग्रहण के बाद हटा दिया गया था. अधिकारियों ने महाकाल लोक परिसर के पार्किंग स्थल का विस्तार करने के लिए भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू की थी.

 

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