नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी माना है. भूषण के खिलाफ यह मामला उनके 2 विवादित ट्वीट से जुड़ा है. एक ट्वीट में उन्होंने पिछले 4 चीफ जस्टिस पर लोकतंत्र को तबाह करने में भूमिका निभाने का आरोप लगाया था. दूसरे ट्वीट में उन्होंने बाइक पर बैठे मौजूदा चीफ जस्टिस की तस्वीर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.


वकील प्रशांत भूषण ने देश के सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े के खिलाफ ट्वीट किया था, जिस पर स्वत: संज्ञान लेकर कोर्ट ने ये कार्यवाही की है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण पर न्यायालय की अवमानना को लेकर दिए गए फैसले का स्वागत करते हुए देश के प्रबुद्ध नागरिकों, पूर्व न्यायाधीशों, साहित्यकारों, रिटायर्ड अधिकारियों की तरफ से खुला पत्र लिखा गया है, पत्र में लिखा है कि न्यायालय पर कई दबाव समूह न्यायिक प्रक्रिया की आलोचना कर रहे हैं जो अस्वीकार्य है.


पत्र में कही गई है ये बात


हम देश के संबद्ध नागरिक ऐसे लोगों के समूह द्वारा इस तरह के बयानों से गहराई से चिंतित हैं जो गलत तरीके से खुद को पूरी तरह से नागरिक समाज या सिविल सोसाइटी का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं. और हर अवसर पर भारतीय लोकतांत्रिक संस्थाओं जैसे संसद चुनाव आयोग और अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय पर प्रहार करने का कोई भी मौका नहीं चूकते हैं.


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हमने इस संबंध में 30 जुलाई को भारत के माननीय राष्ट्रपति को एक याचिका प्रस्तुत की थी. संविधान और लोकतंत्र के एकमात्र संरक्षक होने का दवा करने वाले छिपे हुए राजनीतिक एजेंडे वाले कुछ समूह को लोकतांत्रिक संस्थाओं को बदनाम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. विशेष रूप से भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मामले में यह बहुत आवश्यक है.


सर्वोच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ अधिवक्ता के लिए न्यायालय की अवमानना एक ऐसी चीज है जिसे किसी भी दबाव समूह द्वारा उचित नहीं ठहराया जा सकता संविधानिक पेशेवर और नैतिक दायित्व के साथ कानूनी पेशा एक गंभीर व्यवसाय है और इसका अनादर ठीक नहीं है. पत्र में यह प्रबुद्ध नागरिक आगे लिखते हैं सर्वोच्च न्यायालय के दिए गए फैसले की सीजेएआर और अन्य दबाव समूह द्वारा निंदा करना और न्याय वितरण प्रक्रिया की आलोचना करना अस्वीकार्य है. हम देश के संबद्ध नागरिक सिविल सोसाइटी की आड़ में झूठी सक्रियता का विरोध करते हैं.


पत्र में 113 लोगों के हस्ताक्षर हैं


सर्वोच्च न्यायालय के ऐसे निर्णय के जवाब में कई नकारात्मक रूप से लेख प्रकाशित किए गए हैं. जिसमें आरोप लगाया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय एक लोकतांत्रिक देश में न्याय वितरण प्रणाली की प्रक्रिया की आलोचना कर रहा है. न्यायिक जवाबदेही और सुधार के लिए अभियान ने 15 अगस्त 2020 को एक बयान जारी किया है जिसमें इस फैसले की निंदा करना और सर्वोच्च न्यायालय और प्रत्येक न्यायाधीश से इस फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कहा गया है, इस खुले पत्र पर पूर्व न्यायाधीश पूर्व आईपीएस ऑफिसर साहित्यकार लेखक शिक्षाविद सहित 113 लोगों के हस्ताक्षर हैं.