तमिलनाडु में राज्यपाल और स्टालिन सरकार के बीच विधानसभा से शुरू हुआ विवाद अब सड़कों पर आ गया है. विधानसभा के अभिभाषण को अधूरा छोड़ बाहर निकले राज्यपाल आरएन रवि ने खुद को तमिझगम का राज्यपाल बताया है.


राज्यपाल ने कहा है कि द्रविड़नाडु के नाम पर यहां लोकल पार्टियां लोगों के साथ धोखा कर रही है. लोगों को पूरे भारत से अलग करने की साजिश रची जा रही है. राज्यपाल ने एक आमंत्रण पत्र से स्टेट सिंबल (राज्य चिह्न) को भी हटा दिया.





(Source- PTI)


राज्यपाल के इस कदम के बाद सत्ताधारी दल के कार्यकर्ता हंगामा कर रहे हैं. कई जगहों पर राज्यपाल के गेटआउट के पोस्टर लगाए गए हैं. द्रविड़ पार्टियों का कहना है कि यह संविधान के साथ खिलवाड़ है और हमें उकसाया जा रहा है. 


आइए इस स्टोरी में हम विस्तार से जानते हैं कि क्या कोई गवर्नर किसी राज्य का नाम बदल सकता है?...


विवाद क्यों, 4 वजह...



  • तमिलनाडु में एक कार्यक्रम में राज्यपाल ने कहा कि राज्य के नाम बदलने पर विचार किया जाए. तमिलनाडु की वजह तमिझगम किया जाए.

  • राज्य सरकार के अभिभाषण को पढ़ने के दौरान द्रविड़ शासन मॉडल और कानून व्यवस्था को लेकर जो बाते लिखी गई थीं, राज्यपाल ने उसे नहीं पढ़ा.

  • विधानसभा में विवाद के बाद राज्यपाल ने पोंगल का आमंत्रण पत्र छपवाया, जिसमें उन्होंने खुद को तमिझगम का राज्यपाल बताया. 

  • तमिलनाडु सरकार से विवाद के बीच राज्यपाल ने कहा कि राज्य के अधिकारियों को केंद्र की बातें सुननी चाहिए, ना कि राज्य सरकार की. 


कौन हैं तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि?
रविंद्र नारायण रवि केरल काडर के आईपीएस अधिकारी रह चुके हैं. केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के दौरान उन्होंने केंद्रीय जांच एजेंसी में भी काम किया है. रवि भारत के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं.





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अगस्त 2019 में उन्हें नगालैंड का राज्यपाल बनाया गया था. दिसंबर 2019 में उन्हें मेघालय का प्रभार भी दिया गया था. सितंबर 2021 में रवि को बनवारीलाल पुरोहित की जगह तमिलनाडु का राज्यपाल बनाया गया. 


2 बयान, जिससे आग और सुलग सकती है
आरएन रवि, तमिलनाडु राज्यपाल- द्रविड़ पार्टियों ने पिछले 50 सालों से लोगों को धोखा दिया है. पूरे भारत में जो मान्यता है, उसे तमिलनाडु अस्वीकार करता है. यह देश के लिए ठीक नहीं है.


टीआर बालू, डीएमके सांसद- आरएन रवि ने गवर्नर हाउस को भाजपा कार्यालय बना दिया गया है. सरकार के खर्चे पर भाजपा का एजेंडा लागू करने नहीं दिया जाएगा.


पहले समझिए राज्यों का नामाकरण कैसे होता है...
1. केंद्र के पास शक्ति- संविधान की आर्टिकल-3 में राज्यों के नामाकरण के बारे में विस्तार से बताया गया है. केंद्र सरकार किसी भी राज्यों की सीमा और नाम में परिवर्तन कर सकती है.


इसके लिए सबसे पहले उसे संसद के दोनों सदनों में बिल पास करना होगा. बिल पास होने के बाद उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति विशेषज्ञों की सलाह लेने के बाद उसपर मुहर लगाते हैं. मुहर लगते ही राज्य का ऑफिसियल गैजेट निकाला जाता है. 


2. राज्य के पास शक्ति- राज्यों के नाम में बदलाव की सिफारिश संबंधित राज्य भी कर सकता है. इसके लिए राज्य सरकार पहले विधानसभा में बिल पास करती है. उस बिल को फिर केंद्र के पास भेजती है. 


केंद्र सिफारिश पर विचार-विमर्श कर राष्ट्रपति के पास भेज देती है. राष्ट्रपति के मुहर लगते ही राज्य का नाम बदल सकता है. 


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ऐसा कर चुकी हैं. पश्चिम बंगाल का नाम बांग्ला करके उन्होंने केंद्र को सिफारिश भेजी थी. 


क्या राज्यपाल नाम बदल सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक संविधान में यह प्रावधान है कि राज्यपाल को बहुमत वाली सरकार में मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना चाहिए. विशेष परिस्थितियों में राज्यपाल को कुछ विवेकाधिकार हासिल हैं. राज्यपाल केंद्रीय या समवर्ती सूची से संबंधित किसी भी विषय को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज सकते हैं. 


विवाद में किसका पलड़ा भारी, 3 प्वॉइंट्स...
1. विधानसभा से राज्यपाल का अभिभाषण संशोधित होगा- तमिलनाडु सरकार ने विधानसभा से कहा कि राज्यपाल के अभिभाषण को संशोधित किया जाए. संविधानविद फैजान मुस्तफा के मुताबिक राज्य सरकार अगर राज्यपाल के अभिभाषण का बचाव करने से इनकार करती है, तो इसे सदन के प्रति अविश्वास माना जाता है. ऐसी स्थिति में राज्य सरकार को सदन में विश्वासमत हासिल करना होता है.


मुस्तफा आगे बताते हैं कि सदन शुरू होने के बाद अभिभाषण का प्रचलन ब्रिटिश जमाने से ही है. इसे राज्य सरकार के कामकाज का प्रस्ताव माना जाता है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने विधायकों को राज्यपाल मुद्दे पर टिप्पणी नहीं करने का निर्देश जारी किया है. 


विश्वासमत हासिल करने की नौबत भी आई तो स्टालिन सरकार को ज्यादा परेशानी नहीं होगी, क्योंकि 234 सदस्यों वाली तमिलनाडु विधानसभा में स्टालिन गठबंधन के पास 159 सीटें हैं. 


2. राज्य और केंद्र में टकराव बढ़ेगा- पूरे विवाद के बीच राज्यपाल ने एक बयान में सिविल सेवा के अधिकारियों के केंद्र के प्रति वफादार रहने के लिए कहा है. इस पर विराग गुप्ता कहते हैं- ऐसा बयान देना गलत है, क्योंकि अधिकारियों को संविधान के अनुसार चलना चाहिए. 


राज्यपाल के लगातार विवादित बयान की वजह से माना जा रहा है कि राज्य और केंद्र सरकार के बीच टकराव बढ़ेगा. नवंबर में ही सत्ताधारी डीएमके ने राज्यपाल को हटाने के लिए केंद्र को लिखा था. हाल ही तमिझगम विवाद के बाद तमिलनाडु के कई हिस्सों में गेट आउट रवि के पोस्टर लगाए गए. 


राज्यपाल को लेकर केंद्र और कई राज्यों के बीच पहले से ही टकराव चल रहा है. इनमें पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र भी शामिल हैं. 


3. द्रविड़नाडु की लड़ाई तेज होगी- तमिलनाडु में अभी जो विवाद शुरू हुआ है, वो द्रविड़ आंदोलन से जुड़ा है. 1944 में ईवी रामास्वामी उर्फ पेरियार ने अलग द्रविड़नाडु की मांग की थी. बाद में यह झंडा अन्नादुरई, एमजी रामचंद्रन और एम करुणानीधि ने थामा. 


तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री एमके स्टालिन करुणानीधि के बेटे हैं. हालिया विवाद के बाद माना जा रहा है कि तमिलनाडु में फिर द्रविड़ आंदोलन तेज होगा. द्रविड़ आंदोलन की वजह से ही पिछले 55 सालों से तमिलनाडु में लोकल द्रविड़ पार्टियों की सरकार है.


तमिलनाडु में आबादी की बात करें तो करीब 85% आबादी हिंदू है. हालांकि, द्रविड़ खुद को हिंदू नहीं मानते हैं और ब्राह्मणवाद का विरोध करते रहे हैं. राज्य की 234 में से 170 से ज्यादा सीटों पर द्रविड़ वोटर्स प्रभावी हैं. 


तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें भी हैं. ऐसे में द्रविड़ पार्टियां केंद्र में भी दखल रखती है. 1998 में जयललिता ने समर्थन वापस लेकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरा चुकी है.