Tamil Nadu Government: तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाई कोर्ट को बताया कि राज्य की 89 फीसदी आबादी पहले से ही शिक्षा और सरकारी नौकरी के लिए 69 फीसदी आरक्षण का पात्र है. सरकार ने कोर्ट को कहा कि इस वजह से राज्य को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कैटेगरी के तहत अन्य लोगों के लिए एडिशनल 10 फीसदी आरक्षण लागू करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.


जनहित याचिका पर सरकार का जवाब


तिरुनेलवेली जिले के अंपेरिया नांबी नरसिम्हा गोपालन की ओर से साल 2020 में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सराकर की ओर से यह दलील दी गई. वादी पक्ष की ओर से राज्य सरकार को राज्य के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में एडमिशन के लिए 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस कोटा लागू करने के निर्देश देने की मांग की गई थी.


द हिंदु की रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु सरकार ने अपने जवाब में कोर्ट से कहा, "14 अक्टूबर, 1982 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी निर्देशों का पालन करते हुए 1983 में राज्य में जातियों और समुदायों की 100 फीसदी घर-घर जाकर गणना की गई थी. अब तक पिछड़े वर्गों, अति पिछड़े वर्गों और डिनोटिफाइड समुदायों को आरक्षण देने के लिए उसी डाटा का उपयोग किया जा रहा था."


'कुल आबादी का लगभग 89 फीसदी आरक्षण डिजर्व करती'


साल 1983 में गठित दूसरे तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग आयोग (जिसे अंबाशंकर आयोग के नाम से जाना जाता है) की ओर से दो साल में जमा किए गए आंकड़ों से पता चला कि राज्य में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों का अनुपात कुल अनुपात 68 फीसदी था, जिसमें अति पिछड़े वर्ग और डिनोटिफाइड समुदाय शामिल हैं. 


तमिलनाडु सरकार ने कहा, "साल 2011 के जनगणना में तमिनलाडु में अनुसूचित जाति 20 फीसदी और अनुसूचित जनजाति  1.1 फीसदी थीं. इस वजह से कुल आबादी का लगभग 89 फीसदी शिक्षा और सरकारी नौकरी में आरक्षण से संबंधित मौजूदा प्रावधानों के तहत कवर किया गया था और केवल 11 फीसदी को इसका लाभ नहीं मिला."


तमिलनाडु सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि 14 जनवरी 2019 से 103वें संशोधन के माध्यम से संविधान में शामिल किए गए अनुच्छेद 15(6) और 16(6) केवल केंद्र और राज्यों को 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण देने का अधिकार देता है.


राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में यह भी बताया कि 103वें संवैधानिक संशोधन को चुनौती दी गई है और यह मामला सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच में लंबित है.


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