अलग-अलग राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रोक की मांग पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. कोर्ट ने राज्यों से 4 सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है. 6 सप्ताह बाद मामले की सुनवाई होगी. जिन 10 राज्यों से जवाब दाखिल करने को कहा गया है, वह हैं- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक और झारखंड.

सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस, जमीयत उलेमा ए हिंद, रूप रेखा वर्मा समेत कई याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि इन कानूनों के जरिए स्वेच्छा से शादी करने वाले वयस्क लोगों को निशाना बनाया जा रहा है. कानूनों का इस्तेमाल अल्पसंख्यक उत्पीड़न में हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कुछ राज्यों के मामले में पहले ही नोटिस जारी कर रखा था. अब कुछ और राज्यों के कानून को लेकर हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया है.

चीफ जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने मामला रखते हुए वरिष्ठ वकील सी यू सिंह ने उत्तर प्रदेश के कानून का जिक्र किया. उन्होंने कहा, 'यूपी ने न्यूनतम 20 साल की सजा का प्रावधान किया है. इसके साथ ही जमानत की शर्तों को PMLA की तरह कठिन कर दिया है. अब आरोपी को खुद यह साबित करना होगा कि उसने कोई अपराध नहीं किया है. ऐसे में जमानत मिलना बेहद मुश्किल हो जाता है. कोई भी व्यक्ति इस कानून के तहत शिकायत कर सकता है. इसी वजह से त्योहारों आदि के दौरान भीड़ अंतर-धार्मिक जोड़ों को पकड़ने लगी है.'

सी यू सिंह ने हाल ही में राजस्थान में भी कड़ा कानून बनने की बात कही. इसके बाद इंदिरा जयसिंह, वृंदा ग्रोवर और संजय हेगड़े जैसे वकीलों ने भी अलग-अलग राज्यों में अवैध धर्मांतरण की रोकथाम के नाम पर उत्पीड़न का आरोप लगाया. कोर्ट ने कहा कि वह तत्काल रोक का आदेश नहीं देगा. पहले राज्यों का जवाब दाखिल हो. इसके बाद विचार होगा.

इन याचिकाओं के साथ ही कोर्ट में वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका भी लगी थी. इस याचिका में देश भर में अवैध धर्मांतरण के खिलाफ कठोर कानून बनाने की मांग की गई है. कोर्ट ने इस याचिका को बाकी याचिकाओं से अलग करने का आदेश दिया. जजों ने कहा कि इस पर अलग से सुनवाई होगी.