नई दिल्ली: व्यभिचार यानी एडल्ट्री को अपराध करार देने वाली आईपीसी की धारा 497 पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आज फैसला सुनाएगी. याचिकाकर्ता ने इस कानून को असंवैधानिक करार देने की मांग की है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की थी.


क्या है मामला
केरल के जोसफ शाइन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर IPC 497 को संविधान के लिहाज से गलत बताया है. याचिकाकर्ता के मुताबिक व्यभिचार के लिए 5 साल तक की सज़ा देने वाला ये कानून समानता के मौलिक अधिकार का हनन करता है. कोर्ट ने पहले मामले को संविधान पीठ में भेजते हुए ये कहा था कि आपराधिक कानून लिंग के आधार और भेदभाव नहीं करते. इसलिए, इस कानून की समीक्षा जरूरी है.


इससे पहले 1954, 2004 और 2008 में आए फैसलों में सुप्रीम कोर्ट आईपीसी की धारा 497 में बदलाव की मांग को ठुकरा चुका है. यह फैसले 3 और 4 जजों की बेंच के थे. इसलिए नई याचिका को 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया.


क्या है मौजूदा एडल्ट्री कानून?
एडल्ट्री कानून के तहत विवाहित महिला से संबंध बनाने वाले मर्द पर मुकदमा चलता है. औरत पर न मुकदमा चलता है, न उसे सजा मिलती है.


ये कानून पति को पत्नी से संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ मुकदमा करने का अधिकार देता है. लेकिन अगर पति किसी पराई महिला से संबंध बनाए तो पत्नी को शिकायत का अधिकार ये कानून नहीं देता.


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धारा 497 कहती है कि पति की इजाज़त के बिना उसकी पत्नी से किसी गैर मर्द का संबंध बनाना अपराध है. ये एक तरह से पत्नी को पति की संपत्ति करार देने जैसा है.


याचिकाकर्ता जोसफ शाइन की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया है कि 150 साल पुराना यह कानून मौजूदा दौर में बेमतलब है. ये उस समय का कानून है जब महिलाओं की स्थिति बहुत कमजोर थी. इसलिए, व्यभिचार यानी एडल्ट्री के मामलों में उन्हें पीड़ित का दर्जा दे दिया गया.


सरकार ने याचिका का विरोध किया
सरकार ने कोर्ट से इस याचिका को खारिज करने की मांग की. कहा कि विवाह जैसी संस्था को बचाने के लिए ये धारा ज़रूरी है. सरकार ने बताया है कि IPC 497 में जरूरी बदलाव पर वो खुद विचार कर रही है. फिलहाल, मामला लॉ कमीशन के पास है. इसलिए, सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल न दे.


'सिर्फ पुरुष को सज़ा क्यों?'
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने सुनवाई के दौरान कहा था, "भारत में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है. भारत में इस पवित्र बंधन के खिलाफ जाने वाले के लिए दंड का प्रावधान समाज को सामान्य लगता है. लेकिन हमें देखना होगा कि अगर महिला और पुरुष दोनों ने मिलकर कुछ किया हो, तो सिर्फ पुरुष को सज़ा देना क्या सही है."


'औरत संपत्ति नहीं'
बेंच की सदस्य जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा था, "ये कानून पति की इजाजत से गैर मर्द से शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत देता है. ऐसे मामलों में मुकदमा नहीं बनता. ऐसा लगता है जैसे पत्नी को पति की संपत्ति की तरह देखा जा रहा है."


पत्नी को शिकायत का अधिकार नहीं
बेंच के सदस्य जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा था, "अगर शादीशुदा पुरूष किसी अविवाहित लड़की से संबंध बनाए तो क्या होगा? इससे भी तो शादी का पवित्र बंधन प्रभावित होता है. लेकिन कानून पत्नी को इजाज़त नहीं देता कि वो पति के खिलाफ मुकदमा कर सके और अविवाहित लड़की का पति नहीं होता जो शिकायत दर्ज करे. यानी पुरुष मुकदमे से बच जाएगा.''