एसिड हमले के शिकार लोगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा कदम उठाया है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि जिन लोगों को एसिड पिला दिया जाता है, उन्हें दिव्यांग का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा है? साथ ही, कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट से एसिड अटैक मुकदमों का ब्यौरा मांगा है. चीफ जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि इन मामलों को लगातार सुन कर तेजी से निपटाया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम एसिड अटैक पीड़िता शाहीन मलिक की याचिका पर उठाया है. वकील सीजा नायर के जरिए दाखिल याचिका में कोर्ट को बताया गया है कि जिन लोगों के चेहरे या शरीर पर एसिड डाला जाता है, उन्हें पर्सन्स विद डिसेबिलिटी एक्ट, 2016 के तहत दिव्यांग का दर्जा मिलता है, लेकिन जिन्हें एसिड पिला दिया गया है, उन्हें ऐसा कोई दर्जा नहीं दिया जाता है. इस तरह के पीड़ितों की आहार नली समेत अंदरूनी अंग जल जाते हैं. वह बहुत कष्ट में जीवन बिताते हैं
कोर्ट के सामने यह सवाल रखा गया कि जब भारतीय न्याय संहिता यानी बीएनएस के तहत एसिड फेंकने या एसिड पिलाने को एक समान दंडनीय अपराध माना गया है, तब एसिड पिलाए जाने के चलते शारीरिक नुकसान झेल रहे लोगों को दिव्यांग का दर्जा क्यों नहीं दिया जाता है? इस पर कोर्ट ने तुरंत केंद्र सरकार से जवाब मांग लिया. कोर्ट में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह मांग उचित है. इस पर विचार किया जाएगा.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता शाहीन मलिक ने थोड़ी देर खुद भी बेंच को संबोधित किया. उन्होंने बताया कि उन पर 2009 में एसिड डाला गया था. घटना हरियाणा के पानीपत में हुई थी. उनकी याचिका पर 2014 में केस दिल्ली की रोहिणी कोर्ट में ट्रांसफर किया गया, लेकिन अब तक मुकदमा पूरा नहीं हुआ है.
याचिकाकर्ता की बात सुन कर जज चौंक गए. चीफ जस्टिस ने कहा, '16 साल के बाद भी देश की राजधानी में ऐसा गंभीर मुकदमा पूरा नहीं हो पाया है. यह पूरी न्यायिक व्यवस्था के साथ मजाक है. आप आवेदन दीजिए. हम मामले की रोजाना सुनवाई कर इसे निपटाने का आदेश देंगे.' इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाई कोर्ट से जानकारी मांगी कि उनके राज्य में एसिड हमले के शिकार लोगों के कितने मुकदमे लंबित हैं. कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामलों को विशेष अदालत बनाकर लगातार सुना जाना चाहिए. मामले की अगली सुनवाई 4 सप्ताह बाद होगी.