नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर में हिरासत में लिए गए रोहिंग्याओं को म्यामांर वापस भेजने के केस में सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाएगा. इसी साल मार्च में जम्मू कश्मीर प्रशासन ने अवैध रुप से रह रहे 168 रोहिंग्या को हिरासत में लिया था.  केंद्र सरकार हिरासत में लिए गए सभी रोहिंग्या को वापस म्यांमार भेज रही थी. लेकिन सरकार के फैसले के खिलाफ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी.


रोहिंग्या को भारत में शरणार्थियों का दर्जा दिया जाए- प्रशांत भूषण


प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि हिरासत में लिए गए रोहिंग्या को छोड़ा जाए और उन्हें भारत में शरणार्थियों का दर्जा दिया जाए. प्रशांत ने दलील दी की इस बात का कोई सबूत नहीं है कि रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए खतरा है. भूषण ने अफ्रीकी देश गांबिया का उदाहरण देकर अंतरर्राष्ट्रीय समझौतों का हवाला दिया.


भारत को दुनिया का कैपिटल रिफ्यूजी नहीं बनाया जा सकता- सरकार


भारत सरकार ने रोहिंग्या के पक्ष में दायर की गई याचिका का विरोध किया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा भारत को दुनिया का कैपिटल रिफ्यूजी नहीं बनाया जा सकता. भारत सरकार ने अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हित के आधार पर कई अंतर्रराष्ट्रीय समझौतों से दूरी रखी है. सुप्रीम कोर्ट 26 मार्च को ही अर्जी पर सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित रख चुकी है.


तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच को बताया था कि भारत सरकार की म्यांमार सरकार से बातचीत जारी है. म्यांमार सरकार की पुष्टि के बाद ही इन लोगों को वापस भेजा जाएगा. इस पर प्रशांत भूषण का कहना था कि म्यांमार में मिलिट्री सरकार है. उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. हालांकि, जज इस दलील से सहमत नहीं नजर आए थे. उन्होंने कहा था कि भारत का सुप्रीम कोर्ट किसी दूसरे देश की सरकार को अवैध नहीं घोषित कर सकता.


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