सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों के बारे में जानकारी मांगी है जिनका नाम बिहार SIR की फाइनल लिस्ट में नहीं आ पाया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) से कहा है कि क्या वह दूसरे ग्रह के प्राणियों के लिए केस लड़ रहा है, जो खुद कोर्ट नहीं आ सकते हैं. कोर्ट ने ऐसा तब कहा जब ADR के वकील प्रशांत भूषण ने दावा किया कि SIR में लाखों लोगों के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए और उन्हें अपील का मौका नहीं दिया गया.
जस्टिस सूर्य कांत और जोयमाल्या बागची की बेंच ने कहा, ‘कम से कम 100-200 लोग तो ऐसा कहें कि वह अपील करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें चुनाव आयोग से उनका नाम हटाने से जुड़ा कोई आदेश नहीं मिला.’ कोर्ट ने भूषण से कहा, ‘वह किसी एक निर्वाचन क्षेत्र से ऐसे 50-60 लोगों के नाम सामने लाएं. वह गुरुवार (9 अक्टूबर, 2025) को दोपहर 3.45 बजे ADR की तरफ से दी गई लिस्ट को देखेगा. इस दौरान उसे अपनी संक्षिप्त दलीलें रखने का मौका भी दिया जाएगा.’
कोर्ट ने चुनाव आयोग को भी दिया निर्देश
कोर्ट ने चुनाव आयोग से भी कहा है कि वह दूसरे व्यक्तियों के आवेदन पर लिस्ट से हटाए गए 3 लाख 66 हजार लोगों के बारे में जानकारी दे. गुरुवार (9 अक्टूबर) को संक्षिप्त सुनवाई के बाद मामला अगले सप्ताह मंगलवार (14 अक्टूबर, 2025) को विस्तार से सुना जाएगा.
उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग 30 सितंबर, 2025 को ही बिहार की अंतिम मतदाता सूची जारी कर चुका है. इसमें लगभग 7.42 करोड़ मतदाताओं के नाम हैं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जनवरी 2025 में जो लिस्ट जारी हुई थी, उसमें 7.89 करोड़ नाम थे. यह समझ नहीं आ रहा है कि वह 47 लाख लोग कौन हैं, जिन्हें लिस्ट से बाहर किया गया है.
याचिकाकर्तओं ने चुनाव आयोग से की विस्तृत जानकारी देने की मांग
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा है कि 1 अगस्त को जारी SIR ड्राफ्ट लिस्ट में 7.24 करोड़ नाम थे. यह जनवरी में जारी लिस्ट से 65 लाख कम था. ड्राफ्ट लिस्ट के बाद फाइनल लिस्ट बनाने से पहले 3.66 लाख वोटर के नाम कटे और लगभग 21 लाख नए वोटर के नाम जुड़े. जब तक चुनाव आयोग पारदर्शिता से जानकारी नहीं देगा, यह पता नहीं चलेगा कि कौन से लोग लिस्ट में जगह नहीं पा सके हैं.
चुनाव आयोग के वकीलों ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों का दिया जवाब
चुनाव आयोग के लिए पेश वरिष्ठ वकीलों राकेश द्विवेदी और मनिंदर सिंह ने इन दलीलों का कड़ा विरोध किया. द्विवेदी ने कहा कि कोई भी वास्तविक व्यक्ति चुनाव आयोग के सामने या कोर्ट में नहीं आ रहा है. सिर्फ दिल्ली में बैठे एनजीओ शोर मचा रहे हैं. बिहार में चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी है. आयोग को चुनाव का बंदोबस्त करना है. याचिकाकर्ता बिना किसी ठोस आधार के आरोप लगा रहे हैं. इसलिए, उनकी कोई भी बात सुनने से पहले कोर्ट उनसे लिखित हलफनामा ले.