सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (24 सितंबर, 2025) को हिमाचल प्रदेश समेत पूरे हिमालयी क्षेत्र पर मंडरा रहे गंभीर अस्तित्व खतरे पर चिंता जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिमाचल प्रदेश समेत पूरा हिमालयी क्षेत्र गंभीर अस्तित्व संकट का सामना कर रहा है. इस संकट का कारण प्रकृति नहीं, मानवीय गतिविधियां है. कोर्ट ने इस संबंध में हिमाचल प्रदेश की सरकार से कई सवाल पूछते हुए विस्तृत जवाब मांगा है.

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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने हिमाचल प्रदेश सरकार से 28 अप्रैल, 2026 तक हलफनामा दाखिल करने को कहा है. जजों ने कहा कि अगर राज्य सरकार का जवाब अधूरा या अस्पष्ट हुआ, तो वह सख्त निर्देश जारी करेंगे. इसमें निर्माण और खनन पर रोक जैसी कार्रवाई भी शामिल हो सकती है.

आखिर क्या है पूरा मामला?

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हिमाचल प्रदेश के एक हरित क्षेत्र में होटल के निर्माण पर रोक को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में पर्यावरण के नुकसान पर स्वतः संज्ञान लिया था. तब कोर्ट ने कहा था कि बेलगाम निर्माण एक दिन हिमाचल प्रदेश को नक्शे से गायब कर देगा. अब कोर्ट ने हिमाचल सरकार से इन बातों पर जवाब मांगा है :-

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार से इन सवालों के मांगे जवाब

  • क्या भूकंप के खतरे, भूस्खलन संभावित क्षेत्र और ईको-सेंसिटिव जोन को ध्यान में रखकर इलाकों को बांटा गया है?
  • क्या राज्य की अपनी जलवायु परिवर्तन नीति है? क्या ग्लेशियर के पिघलने और भविष्य की आशंकाओं पर अध्ययन हुआ है?
  • पिछले 20 सालों में कितने वन क्षेत्र को दूसरे उपयोगों के लिए दिया गया? किन प्रजातियों के पेड़ काटे गए और उनकी अनुमति किसने दी?
  • कटाई से हुए नुकसान की भरपाई के लिए कितने पेड़ लगाए गए? उनमें कितने जीवित बचे? वन निधि का उपयोग कैसे हुआ?
  • राज्य में कितनी चार-लेन सड़कें बनीं हैं और कितनी बनने वाली हैं? उन सड़कों के किनारे कितनी बार भूस्खलन हुआ? इससे बचने के क्या उपाय किए गए?
  • हिमाचल प्रदेश में कितनी जलविद्युत परियोजनाएं चल रही हैं? उनके पर्यावरण प्रभाव का आकलन और निगरानी कैसे हो रही है?
  • खनन पट्टों की स्थिति क्या है? विस्फोटकों और मशीनों के उपयोग पर क्या नियम हैं?
  • होटल, होमस्टे और बहुमंजिला इमारतों को अनुमति देने की प्रक्रिया क्या है? टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट के तहत कितनी बार कार्रवाई हुई या मुकदमे दर्ज हुए?

एक अन्य मामले में भी SC ने हिमाचल सरकार से मांगा है जवाब

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली बेंच ने भी हिमाचल प्रदेश में बाढ़ के पानी में लकड़ी के लट्ठों के बहने पर टिप्पणी की थी. उस बेंच ने कहा था कि यह राज्य में बड़े पैमाने पर अवैध पेड़ कटाई का संकेत है. हालांकि, वह मामला इस मामले से अलग है. उस मामले में भी राज्य सरकार को जवाब दाखिल करना है.

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