देश भर के प्राचीन हिंदू मंदिरों की भूमि को माफियाओं के अतिक्रमण से बचाने की मांग सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना किया है. कोर्ट ने कहा है कि हर मंदिर का मामला अलग है. उसे राज्य के हाई कोर्ट में ही रखा जाना चाहिए. हाई कोर्ट हर मामले को तथ्यों के आधार पर परखेगा. मामले में पूरे देश में लागू होने वाले दिशानिर्देश देना अव्यवहारिक होगा.

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गौतम आनंद नाम के याचिकाकर्ता ने मंदिर भूमि को अतिक्रमण से बचाने और पुराने स्वरूप में दोबारा स्थापित करने के लिए एक केंद्रीय समिति गठित करने की मांग की गई थी. मामला चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच में सुनवाई के लिए लगा. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि RTI के जरिए कई राज्यों से सूचना मिली है. पता चला है कि बड़ी संख्या में मंदिर भूमि पर कब्जे और अवैध उपयोग के मामले हैं.

याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में हाई कोर्ट के आदेश के बाद वहां की सरकार ने सभी 20 जिलों को मंदिर भूमि की पहचान कर रही है. इसी तरह की कार्रवाई दूसरे राज्यों में भी होनी चाहिए, लेकिन जजों ने इस मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

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कोर्ट ने कहा कि देश भर में मंदिरों का प्रबंधन अलग-अलग ट्रस्ट या बोर्ड करते हैं. कई जगह जिला कलेक्टर मंदिर के मैनेजमेंट को संभालते हैं. ऐसे में कोई देशव्यापी निर्देश देना व्यावहारिक नहीं होगा. अगर किसी जगह पर अतिक्रमण या कुप्रबंधन की समस्या है, तो याचिकाकर्ता स्थानीय प्राधिकरण या संबंधित हाई कोर्ट के सामने मामला उठाए. याचिका का निपटारा करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर किसी विशेष मामले में जरूरत हो तो याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट आ सकता है.

 

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