नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में दर्ज होने वाले राजद्रोह के मुकदमों पर पुलिस को आगाह किया है. कोर्ट ने कहा है कि इस तरह का मुकदमा दर्ज करते समय पुलिस को आईपीसी की धारा 124 ए में दिए गए दायरे और 60 साल पहले केदारनाथ सिंह मामले में मामले आए फैसले को ध्यान में रखना चाहिए. कोर्ट ने यह टिप्पणी वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के ऊपर शिमला में दर्ज राजद्रोह की एफआईआर रद्द करते हुए की है.


विनोद दुआ पर जून 2020 में हिमाचल प्रदेश के एक बीजेपी नेता ने एफआईआर करवाई थी. दुआ का कहना था कि उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल पर बिना तैयारी के लॉकडाउन लगाने की आलोचना करते हुए एक कार्यक्रम किया था. इसलिए, उन्हें परेशान किया जा रहा है. मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी. आज एफआईआर रद्द करने का फैसला दिया.


सुप्रीम कोर्ट ने विनोद दुआ की मांग को ठुकरा दिया


जस्टिस यु यु ललित और विनीत सरन की बेंच ने 1962 में 'केदारनाथ सिंह बनाम बिहार' मामले में आए फैसले का हवाला दिया है. उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों पर बिना ठोस कारण के आईपीसी 124A (राजद्रोह) का मुकदमा दर्ज करने को गलत बताया था. कोर्ट ने कहा था कि जब किसी के वक्तव्य से लोग विद्रोह या हिंसा करने लगें, तभी बयान को राजद्रोह की श्रेणी में माना जाना चाहिए. आज कोर्ट ने कहा कि पत्रकार अपने काम के दौरान जो टिप्पणी करते हैं, उन्हें केदारनाथ फैसले के तहत संरक्षण हासिल है.


दुआ ने यह मांग भी की थी कि 10 साल से अधिक काम कर चुके पत्रकारों के ऊपर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने से पहले एक उच्चस्तरीय कमिटी से मंजूरी ली जानी चाहिए. हर राज्य में ऐसी कमिटी बने. उसका नेतृत्व हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस या उनकी तरफ से नामित कोई जज करे. सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को ठुकरा दिया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसी कोई व्यवस्था बनाना विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है.


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