नई दिल्ली: अयोध्या पर फैसला आने के बाद बहुत से लोगों के जेहन में काशी और मथुरा को लेकर सवाल घूम रहे हैं. लेकिन यहां यह जानना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इन जगहों को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है.


कोर्ट के फैसले से साफ हो गया है कि काशी और मथुरा की मौजूदा स्थिति आगे भी बनी रहेगी और इनमें बदलाव नहीं होगा. हिंदूवादी संगठनों का एक तबका ये दावा करता रहा है कि वाराणसी और मथुरा में भी मंदिरों को तोड़ कर मस्जिदों को बनाया गया.


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सप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर 1045 पेज का दो फैसला सुनाया उसमें प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट का जिक्र करते हुए स्पष्ट कर दिया कि काशी और मथुरा की वर्तमान स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है. प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 11 जुलाई 1991 को लागू हुआ था.


चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच ने कहा कि ये कानून (प्लेसेज ऑ वर्शिप एक्ट) सविधान के मूल्यों को मजबूत करता है.


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1991 में जब केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी तब इस एक्ट को लागू किया गया था. दरअसल सरकार चाहती थी कि जो स्थिति आज अयोध्या को लेकर है वैसी स्थिति काशी, मथुरा या कहीं और नहीं होनी चाहिए.


इस एक्ट के मुताबिक आजादी से दिन यानि 15 अगस्त 1947 को धार्मिक स्थलों की जैसी स्थिति थी वैसी स्थिति को बरकरार रखा जाएगा. सीधे शब्दों में कहें तो अगर किसी धार्मिक स्थल को तोड़ कर दूसरा धार्मिक स्थल बनाया गया है तो वर्तमान स्थिति में परिवर्तन नहीं किया जाएगा.


प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले बने धार्मिक स्थलों को लेकर कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं होगा. हालांकि अयोध्या मामले को इससे बाहर रखा गया था.