Covid-19 Third Wave: सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना की तीसरी लहर को लेकर चिंता व्यक्त की है. कोर्ट ने कहा कि जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए कि तीसरी लहर आने की आशंका नहीं है. जजों का कहना था कि भारत में लोग बहुत जल्दी लापरवाही बरतने लगते हैं. ऐसे में इस तरह के बयानों से नुकसान हो सकता है. कोर्ट ने इस संदर्भ में खासतौर पर एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया के एक वक्तव्य का उल्लेख किया. गुलेरिया ने कोरोना की तीसरी लहर की आशंका न होने की बात कही थी.


सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और एएस बोपन्ना की बेंच में कोरोना से मरने वाले लोगों को मुआवजा देने पर सुनवाई चल रही थी. इस दौरान बेंच के अध्यक्ष जस्टिस शाह ने 50 हजार रुपये मुआवजा तय करने के नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के निर्णय की सराहना की. उन्होंने कहा कि राज्यों के आपदा प्रबंधन कोष से बहुत सारे काम किए जा रहे हैं. भविष्य में कोरोना की वजह से और किस तरह का खर्च करना पड़ेगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता है. इसके बावजूद लाखों लोगों को मुआवजा देने का फैसला सराहनीय है.


जस्टिस शाह ने कहा, "यह नहीं कहा जा सकता है कि कोरोना की तीसरी लहर आएगी या नहीं? अगर आएगी तो वह कितनी तीव्र होगी." केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को संबोधित करते हुए जज ने कहा, "हमने डॉक्टर गुलेरिया का एक बयान देखा है. वह कह रहे हैं कि तीसरी लहर आने की आशंका नहीं है." इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि भारत में इस समय कोरोना कुछ इलाकों तक सीमित रह गया है. लेकिन हमें हर तरह की स्थिति के लिए तैयार रहना होगा. दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जहां इस समय कोविड की चौथी लहर चल रही है.


जज ने सॉलिसीटर जनरल की बात का समर्थन करते हुए कहा, "हम भी यही कहना चाह रहे हैं. इस तरह का बयान नहीं दिया जाना चाहिए. ऐसे बयान देने वाले लोग हमारे देश की जनता को नहीं जानते. हमारे यहां लोग बहुत जल्दी लापरवाही बरतने लगते हैं. कोरोना को लेकर बयान सावधानी से दिए जाने चाहिए."


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