भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक कर्तव्यों का पालन सुनिश्चित करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता ने कहा था कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश के बावजूद आज तक केंद्र और राज्यों ने काम नहीं किया है. उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने मौलिक कर्तव्यों की जानकारी लोगों तक पहुंचाने और उन्हें जागरुक करने को लेकर क्या कदम उठाए हैं?


क्या हैं मौलिक कर्तव्य?


संविधान में 1976 में 42वें संशोधन के ज़रिए जोड़े गए मौलिक कर्तव्य नागरिकों से आदर्श आचरण की अपेक्षा करते हैं. इनका उल्लेख भाग IV-A और अनुच्छेद 51A में है. यह कर्तव्य 11 प्रकार के हैं. इनमें नागरिकों से अपेक्षा की गई है कि वह संविधान का पालन करें, संवैधानिक संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करें. स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों से प्रेरणा लें. देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाला काम न करें. वैज्ञानिक सोच अपनाएं और उसे प्रोत्साहन दें. प्रकृति की रक्षा करें. सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुंचाएं. बच्चों की पढ़ाई को बढ़ावा दें.


याचिकाकर्ता की दलील


सुप्रीम कोर्ट के वकील दुर्गा दत्त ने मामले में याचिका दाखिल की है. उन्होंने कहा है कि बिना कर्तव्यों का पालन किए एक आदर्श राष्ट्र की कल्पना नहीं की सकती. 1998 में केंद्र सरकार की तरफ से बनाई गई जे एस वर्मा कमिटी ने मौलिक कर्तव्यों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कानूनी आधार तैयार करने की बात कही थी. कमिटी ने स्कूली बच्चों समेत आम नागरिकों को इन कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने और उनके पालन के लिए प्रोत्साहित करने की भी बात कही थी.


याचिका में बताया गया है कि 2003 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस वी एन खरे की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने इस बारे में आदेश दिया था. 'रंगनाथ मिश्रा बनाम भारत सरकार' मामले में दिए इस आदेश में कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से जे एस वर्मा कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर कदम उठाने के लिए कहा था. लेकिन अब तक इस दिशा में किसी ने कुछ नहीं किया है.


याचिकाकर्ता ने मांग की है कि चूंकि सरकारों ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट अपने किसी पूर्व चीफ जस्टिस या जज के नेतृत्व में एक हाई पावर्ड कमिटी बनाए. मौलिक कर्तव्यों के पालन के लिए कानून बनाने पर रिपोर्ट ले. संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत खुद को मिली विशेष शक्ति के तहत रिपोर्ट के आधार पर कानून लागू करने का आदेश दे.


आज क्या हुआ?


मामला जस्टिस संजय किशन कौल और एम एम सुंदरेश की बेंच में लगा. याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील और पूर्व सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार पेश हुए. उन्होंने जजों से कहा कि केंद्र और राज्य सुप्रीम कोर्ट के 2003 में आए फैसले का पालन नहीं कर रहे हैं. कोर्ट को यह पूछना चाहिए कि उन्होंने अब तक क्या कदम उठाए हैं. जजों ने इस पर सहमति जताते हुए केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी कर दिया.


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