Historical Scepter Sengol: नई संसद के उद्घाटन के अवसर पर जहां ऐतिहासिक राजदंड सेंगोल आकर्षण का केंद्र बना रहा, वहीं समारोह में तमिलनाडु के 19 अधीनम (मठ) के पुजारियों की उपस्थिति ने सुर्खियां बटोरीं. इस मामले से वाकिफ लोगों ने कहा कि एक विशेष विमान में अधीनम प्रमुखों और ओडुवारों (तमिल गायकों) को लाने वाले केंद्र ने पिछले तीन दिनों से उनके दैनिक अनुष्ठानों की व्यवस्था भी सुनिश्चित की थी. साथ ही, उन्हें आने वाले दिनों में समर्थन का आश्वासन भी दिया था.


19 अधीनम प्रमुखों (धर्मपुरम, मदुरै, थिरुववदथुराई, कुंद्राकुडी, पेरूर और वेलाकुरिची) में से छह को विशेष रूप से रविवार को पीएम नरेंद्र मोदी को सेंगोल पेश करने के लिए कहा गया था, जोकि गणपति होमम और तमिल मंत्रों और तमिल भजनों के पाठ से भरा हुआ था. धार्मिकता और स्वशासन के प्रतीक सेंगोल को तब खुद पीएम मोदी ने नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास रखा था.


पीएम मोदी को सेंगोल भेंट करने के सम्मान के लिए चुने गए छह में से चार अधिनम, उन 19 शैव मठों में से आठ थे, जिनके बारे में माना जाता है कि उनका अस्तित्व कम से कम 400 साल पुराना है या प्राचीन भारत में उनकी जड़ें हैं.


वकील ने कही ये बातें
धर्मपुरम मठ से जुड़े वरिष्ठ वकील एम कार्तिकेयन ने कहा कि समर्थन की कमी के कारण कई प्राचीन अधिनम गायब हो गए हैं. यही वजह है कि पीएम का हमें बुलाना और सम्मानित करना, हमारे अनुयायियों को उत्साहित करने वाला है और यहां तक ​​कि हमारी धार्मिक गतिविधियों को भी बढ़ा रहा है. उन्होंने कहा कि धार्मिक गतिविधियों, अनुयायियों और मंदिरों की संख्या जो एक निश्चित अधीनम ने धार्मिक संदर्भ में अपनी स्थिति तय की है.


एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि केंद्र ने यह स्पष्ट किया कि न केवल सबसे पुराने और सबसे लोकप्रिय अधीनम को, बल्कि बाकी को भी महत्व दिया जाता है. प्रत्येक मठ प्रतिनिधिमंडल को न केवल अलग कार और बड़े कमरे दिए गए, बल्कि सहायता के लिए सात लोगों को लाने की भी अनुमति दी गई. क्योंकि इनमें से कुछ पोंटिफ बूढ़े हैं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए मदद की जरूरत है. वहीं, कुछ संतों के अनुसार, सेंगोल का स्थानांतरण एक प्रकार से नया इतिहास दर्ज किया है.


मुख्य पुजारी ने कही ये बात
वेलाकुरिची अधीनम के मुख्य पुजारी सत्यज्ञान महादेव ने कहा कि 1947 में यह सिर्फ एक अधिनम था जिसने पीएम नेहरू को सेंगोल दिया था, लेकिन अब छह हैं जिन्होंने सम्मान किया. यह शैव परंपराओं को लोगों तक ले जाने के हमारे प्रयासों की एक बड़ी मान्यता है. बता दें कि अधीनम अनिवार्य रूप से शिव की पूजा करने वाले मठ हैं, जहां तमिल रीति-रिवाजों के साथ पूजा की जाती है.


इनको मिला आमंत्रण
पोंटिफ तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों से आए थे और तीन मठों (थिरुववदुथुराई, धर्मपुरम और मदुरै) को सबसे पुराने लोगों में से एक के रूप में देखा जाता है। पहले दो को भी सबसे धनी लोगों में गिना जाता है, जिनके बड़ी संख्या में अनुयायी हैं. जबकि दिल्ली में आए 19 मठों में से कई का नेतृत्व शैव पिल्लई प्रमुख कर रहे हैं जो अगड़ी जाति के समुदायों से आते हैं. इसके अलावा, पलानी बोगर समाधि जैसे कई ओबीसी मठ प्रमुखों को भी आमंत्रित किया गया था.


शैव परंपराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास
यह स्पष्ट है कि केंद्र और बीजेपी की कोशिश तमिलनाडु की शैव परंपराओं को पुनर्जीवित करने की भी है, जो भारतीय दार्शनिक शंकराचार्य से भी पहले की थी. जिन्हें भारत की मठवासी परंपराओं के लिए एक प्रकार का ढांचा देने के लिए जाना जाता है और आसपास केंद्रित ताकतों का मुकाबला करना है. डीएमके और पेरियारिस्ट तर्कसंगतता, नास्तिकता और राजनीति पर जोर देते हैं जो ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण को चुनौती देता है.


इसलिए उच्च जाति के मठों को इस आयोजन का हिस्सा बनाया गया था और ध्यान पूरी तरह से अन्य समूहों द्वारा चलाए जा रहे शैव मठों पर था. अपने सहयोगियों और मठ के अधिकारियों के साथ आए अधीनम प्रमुखों व कनिष्ठ पादरियों को एक विशेष विमान से राष्ट्रीय राजधानी लाया गया. इसको लेकर संस्कृति मंत्रालय ने विशेष रूप से दो लोगों को नियुक्त किया, जिनमें से एक को तमिल भाषा की जानकारी थी.


खाने का विशेष ध्यान
हवाई जहाज का खाना और राजधानी के एक बड़े होटल में तीन दिनों तक रहना पूरी तरह से सात्विक था. शाकाहारी भोजन में प्याज, लहसुन या कुछ मसालों का कोई संकेत नहीं है, उनके आहार प्रतिबंधों और समय पर विशेष ध्यान दिया जाता है. एक विशेष कैटरर की व्यवस्था थी, जो प्रत्येक अधीनम के प्रधान अधिकारी से अलग-अलग सलाह करके भोजन तैयार करता था.


हर चीज का ख्याल रखा
कार्तिकेयन ने कहा कि उदाहरण के लिए, धर्मपुरम अधीनम में, एक पूजा होती है जो सदियों से चली आ रही लिंगम के सूर्यास्त से पहले होती है. उन्होंने सुनिश्चित किया कि हम शाम 4 बजे से पहले उतरें ताकि अनुष्ठान प्रभावित न हों. यहां के संत जो भोजन करते हैं, उसे एक निश्चित तरीके से तैयार करना पड़ता है. हमें खुशी है कि हर चीज का ख्याल रखा गया. हालांकि, आलोचकों ने इस कदम के साथ समस्याओं की ओर इशारा किया है.


लेखक ने कही ये बात
द्रविड़ लेखक थिरुनावुक्करासर ने कहा कि विकसित समाज का प्रयास उन प्रतीकों को अस्वीकार करना था जो अतीत में किसी भी प्रकार के उत्पीड़न को दर्शाते हैं। लेखक ने कहा कि वर्णाश्रम धर्म (जाति) से इंच दर इंच लड़ाई लड़ी जानी चाहिए. परंपराएं कि जातिगत भेदभाव और विशिष्टता के मठ को लोकतंत्र में महिमामंडित नहीं किया जा सकता है. लेकिन अधीनम प्रमुखों के पास केंद्र के कदम की केवल प्रशंसा है.


दिल्ली के मंदिरों में दर्शन
दिल्ली में बिताए तीन दिनों में वापस जाने से पहले उन्हें राष्ट्रीय राजधानी के ऐतिहासिक मंदिरों में भी ले जाया गया. बैठक में भाग लेने वालों के अनुसार, संतों के लिए अपने भाषण में पीएम मोदी ने तमिल गौरव और प्राचीन तमिल सभ्यता की महिमा के बारे में विस्तार से बात की. जिसमें यह भी बताया कि कैसे दक्षिण के लोग धर्म के मामलों में मदद करने के लिए वाराणसी जैसे शहरों में आते हैं. इस बैठक में तमिलनाडु के केंद्रीय मंत्री, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और राज्य मंत्री एल मुरुगुन भी उपस्थित थे.


अराजनैतिक था कार्यक्रम
पीएम मोदी के साथ बैठक में संतों ने अपनी समस्याओं को नहीं उठाया. प्रतिभागियों ने कहा कि यह कार्यक्रम अराजनैतिक था. हालांकि, पीएम मोदी ने सेंगोल को चलने वाली छड़ी में कम करने वालों को फटकार लगाई. उन्होंने कहा कि सेंगोल को एक संग्रहालय से बाहर ले जाने के लिए एक सेवक (कार्यकर्ता) का सहारा लिया.


देश के लिए सर्वश्रेष्ठ सेंगोल
धर्मपुरम अधीनम प्रमुख मसिलमणि देसिका ज्ञान संपंत परमाचार्य स्वामी ने कहा पीएम मोदी के माध्यम से स्थापित सेंगोल सभी के लिए न्याय का प्रतीक है और देश के लिए सर्वश्रेष्ठ है. बता दें कि धर्मपुरम और मदुरै दोनों ने हाल के दिनों में अपनी परंपराओं और कामकाज में कथित हस्तक्षेप को लेकर डीएमके सरकार के साथ भाग-दौड़ की है. लेकिन, अधिकारियों ने कहा कि उन मतभेदों को अब सुलझा लिया गया है.


ये भी पढ़ें- Vande Bharat Express: पूर्वोत्तर राज्यों को मिली पहली वंदे भारत, पीएम मोदी बोले- अतीत की नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए...