नई दिल्लीः देश में आज लगभग हर काम के लिए आधार कार्ड मांगा जाता है. अब तक करीब 115 करोड़ आधार कार्ड बन चुके हैं. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले इसका विरोध करने वाले नरेंद्र मोदी आखिर प्रधानमंत्री बनने के बाद आधार के सबसे बड़े मुरीद कैसे हो गये. इस का दिलचस्प खुलासा किया है वरिष्ठ पत्रकार शंकर अय्यर ने अपनी नई किताब -आधार A biometric history of indias 12 digital revolution में.


2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने आधार को लेकर टवीट किया था जिसमें लिखा था कि 'आधार पर मैं जिस टीम और यहां तक कि प्रधानमंत्री से मिला वो सुरक्षा से जुड़े मेरे सवालों के जवाब नहीं दे सके'.


उस समय तक देश भर में करीब 57 करोड़ आधार कार्ड बन चुके थे. अरबों रुपये इस योजना पर खर्च किए जा चुके थे. मनमोहन सिंह सरकार आधार को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर से जोड़ रही थी ताकि सब्सिडी जरुरतमंद को ही मिले और लीकेज खत्म हो सके. आखिर देश की सौ करोड़ से ज्यादा की जनता का आधार कार्ड बनाना कोई आसान काम नहीं था.

हालांकि हैरानी वाली बात ये है कि मौजूदा पीएम मोदी आधार को लेकर लगातार अपनी अपनी शंकाएं जाहिर कर रहे थे. उन्होंनें लेखक शंकर अय्यर से भी इस बारे में जिक्र किया था कि आधार का काम कितना मुश्किल था. ये बात सिर्फ मोदी ही नहीं कह रहे थे. बीजेपी के अन्य नेता भी सुर में सुर मिला रहे थे. सभी आधार का विरोध कर रहे थे. यहां तक कि ये तय था कि अगर बीजेपी सत्ता में आई तो आधार का अंत हो जाएगा.


शंकर अय्यर ने बताया कि पीएम मोदी ने उनसे कहा था कि मैंने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक में भी प्रधानमंत्री से कहा कि आधार को लेकर मेरे सवालों (सुरक्षा से जुड़े) का वो अध्य्यन करें. लेकिन उन्होंने एक भी सुझाव नहीं माना क्योंकि वो नरेन्द्र मोदी के सुझाव थे. मैंने कहा था कि अगर उन सवालों के जवाब नहीं मिले तो योजना चल नहीं पाएगी.


2014 लोकसभा चुनावों के नतीजों ने बदल दी तस्वीर
2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे आए जिसमें बीजेपी को बंपर जीत मिली. नरेन्द्र मोदी ने 26 मई को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. तीन दिन बाद ही 29 मई को नये गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने संकेत दिए कि नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर अभियान और आधार योजना को मिला कर एक कर दिया जाएगा. उधर इन खबरों को देख सुन कर नंदन नीलेकणि परेशान थे. नंदन नीलेकणि ने 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गांधी के कहने पर इंफोसिस की नौकरी छोड़ी थी और आधार बनाने का काम संभाला था. वो जानते थे कि कितनी शुरुआती कठिनाइयों को पार करते हुए देश के सभी नागरिकों को एक पहचान देने का सपना साकार हुआ है. वो जानते थे कि आधार कैसे आगे चलकर सरकार के करोड़ों अरबों रुपयों की सब्सिडी की बचत कर सकता है. लेकिन वो झिझक भी रहे थे. आखिरकार नंदन को मनमोहन सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल था और वो कांग्रेस के टिकट से लोकसभा चुनाव लड़े थे जहां उन्हें बीजेपी के अनंत कुमार ने हराया था.

किताब में नंदन नीलेकणि की 26 जुलाई 2011 को मोदी से मुलाकात का भी जिक्र है. उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और तब उन्होंने नंदन नीलेकणि से सुऱक्षा से जुड़े सवाल पूछे थे और एक वर्कशाप लगाने को कहा था. शंकर अय्यर ने अपनी किताब में लिखा है कि एक मई 2012 को गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी आधार को लेकर आश्वस्त हो गये थे लेकिन दो साल बाद ही मोदी आधार में खामियां देखने लगे थे.




इसी कशमकश के बीच झूल रहे नंदन नीलेकणि जून महीने के आखिरी हफ्ते के तपते हुए दिन काट रहे थे. तब उन्हें आधार प्रोजेक्ट से जुड़े आईएएस अधिकारी रामसेवक शर्मा ने और फिर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री मोदी से मिलने की सलाह दी थी. 28 जून 2014 को नंदन नीलेकणि दिल्ली में अपना सरकारी बंगला खाली कर बंग्लुरू जाने की तैय़ारी कर रहे थे. उन्होंने पीएमओ में फोन लगाया और एक जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी से मिलने का समय मांगा. उन्हें दोपहर में आने को कहा गया. उनकी पीएम मोदी के साथ 30 मिनट की मुलाकात ने सब कुछ बदल दिया. नंदन ने पीएम को कैसे आधार के लाभ गिनाए, कैसे सुरक्षा और पहचान से जुड़ी चिंताएं दूर की, कैसे मोदी को बताया कि UIDAI बिल संसद में पास करना कितना जरुरी है? इस सबका जिक्र शंकर अय्यर की किताब में है.


नंदन एक जुलाई 2014, मंगलवार को मोदी से मिले थे. इसके दो दिन बाद ही गुरुवार तीन जुलाई को गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर और आधार को एक करने वाली बैठक बुलाई थी. उसमें आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद और योजना मंत्री राव इंद्रजीत सिंह से चर्चा होनी थी. और दो दिन बाद यानि शनिवार 5 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी ने आधार को मंजूर दे दी. प्रधानमंत्री ने आधार को मरने से बचा लिया, नया जीवन दे दिया.

लेखक शंकर अय्यर ने अपनी किताब प्रधानमंत्री मोदी को भेंट की है. शंकर बताते हैं कि उन्होंने पीएम से पूछा था कि तब उन्होंने आधार का विरोध क्यों किया था. तब मोदी ने कहा था कि एक समान पहचान पत्र की जरुरत तो वाजपेयी जी के समय से महसूस की जा रही थी. तब मंत्रिय़ों के एक समूह ने इस पर काम करना भी शुरु कर दिया था. लेकिन उसके बाद यूपीए वन ने इस पर कुछ नहीं किया. यूपीए टू में इसे अमल में लाया गया लेकिन मोदी इससे संतुष्ट नहीं थे.

शंकर अय्यर के मुताबिक मोदी ने उनसे कहा था कि हमें आधार से कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन उसमें बहुत सारी खामियां थी. हमने सिर्फ विरोध के लिए उसका विरोध नही किया. मैं इस तरह की राजनीति में विश्वास नहीं करता हूं. यूपीए सरकार के पास परिकल्पना और अनुपालन की घोर कमी थी. मुझे पता था कि आधार में अपार संभावनाएं हैं लेकिन आधार को संसद का वैधानिक समर्थन नहीं था. नागरिक सेवा से उसे जोड़ने का भी खाका सामने नहीं था.


शंकर के मुताबिक पीएम मोदी ने उनसे कहा कि हमने गृह मंत्रालय की तरफ से उठाए गये सुरक्षा के मुद्दे को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के मुद्दे से अलग किया. हमने तकनीकी और कानूनी पहलुओं के निवारण के लिए कमेटी का गठन किया. हमने आधार के कैनवास को गति दी. यही वजह है कि कुछ ही समय में आधार के कारण हम लीकेज रोककर 50 करोड़ की बचत करने में कामयाब रहे.


आज भले ही देश में 100 करोड़ लोगों से ज्यादा के आधार कार्ड बन चुके हैं लेकिन 2-3 मुददों पर चिंता बनी हुई है.




  • देश में हर साल 90 लाख लोग मरते हैं. इनके मरने के साथ ही इनका आधार नंबर भी हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और मरने की जानकारी आधार प्रोजेक्ट चलाने वालों को मिल जाए. ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है.

  • गांवों में फिंगर प्रिंट की पहचान मशीन नहीं कर पाती है. कुछ जगह तो चालीस फीसदी तक लोग ऐसे में राशन आदि लेने से वंचित रह जाते हैं.

  • आधार की जानकारी लीक हो रही है. हाल ही में क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धोनी के आधार की जानकारी भी लीक हो गयी थी. ऐसे में आधार के जरिए आपकी पहचान कितनी सुरक्षित है इसको लेकर सवाल उठ रहे हैं.


वैसे किताब में कुछ दिलचस्प जानकारी भी दी गयी है. इसमें बताया गया है कि आधार का नामकरण राजस्थान के उदयपुर जिले के एक आदिवासी गांव के नैय्या राम के एक वाक्य से हुआ था. आधार प्रोजेक्ट से जुड़े एक सदस्य नमन पुगलिया को नैय्या राम ने कहा था कि पहचान ही जीवन का आधार है. यहीं से नमन पुगलिया ने आधार शब्द निकाला. उस समय प्रगति नंबर, मेरा नंबर, उन्नति नंबर, विशिष्ट नंबर आदि पर माथापच्ची हो रही थी. हालांकि आधार शब्द मिलने के बाद सारी शंकाओं पर विराम लग गया और लोगों के लिए यूआईडीएआई ने आधार के जरिए एक देश एक पहचान वाला आधार नंबर जारी करने का काम किया.