नई दिल्ली: राजस्थान की एक 24 साल की बेटी इन दिनों खूब चर्चा में है और इसकी वजह है डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद महज़ 24 साल की उम्र में समाज की सेवा करने का फैसला. भरतपुर जिले के गरहाजन गांव की ये बेटी अब सरपंच बन चुकी है. उस बेटी का नाम है शहनाज. खास बात ये है कि वो बतौर एमबीबीएस डॉक्टर शहनाज़ देश की सबसे युवा सरपंच है. इस जीत का श्रेय अपनी मां, परिवार सहित पूरे मेवाती समुदाय को देना चाहती हैं. शहनाज़ कहती हैं कि उनकी प्राथमिकता गांव की बेटियों का विकास करना है, क्योंकि वही देश का कल हैं.


शहनाज़ कहती हैं कि गांव में लड़कियों की साक्षरता दर बहुत नीचे है जिसे बढ़ाना है और गांव को स्वच्छ बनाना उनका मकसद है. खास बात ये है कि इस गांव से शहनाज़ का सियासी रिश्ता खासा पुराना है. शहनाज़ से पहले उनके दादा हनीफ खान इसी गांव के प्रधान थे वहीं दादी भी दो बार गांव की प्रधान रही हैं. लेकिन बीते साल फर्जी सर्टिफिकेट मामले में उन्हें पद गंवाना पड़ा.


दोबारा चुनाव और शहनाज़ ने बाजी मार ली.
शहनाज़ दावा करती हैं कि इलाके के लोग यही चाहते थे कि उनके परिवार से ही कोई सरपंच बने और उनकी जीत इस दावे की पुष्टि करती हैं.

शहनाज़ ने ABP न्यूज़ से अपनी प्राथमिकता गिनाते हुए कहा, गांव की साफ-सफाई, साक्षरता बढ़ना और महिला सशक्तिकरण सबसे पहले है. गांव की गलियां अच्छी हो इसपर भी जोर होगा. आपको बता दें शहनाज़ की मां विधायक, नाना तीन राज्यों में मंत्री और पिता पंचायत समिति के प्रधान रह चुके हैं..

जब उनसे ये सवाल किया गया कि आखिर गांव के दूसरे बेटे-बेटियों को सरपंच बनने का क्या मौका नहीं मिलना चाहिए तो इसपर कहती हैं, मेरी कोशिश है कि आगे से सभी को मौका मिले.

जब उनसे यह पूछा कि क्या वो अपने नाना, मम्मी या फिर पापा की तरह आगे राज्य या केंद्र में मंत्री बनना चाहेंगी? इस पर शहनाज़ कहती हैं, मैं अपना काम करती जाऊंगी और आगे मुझे लगा कि गांव वालों को मेरी जरुरत हैं तो आगे जहां से मेरी मम्मी विधानसभा चुनाव लड़ती थी वहां से विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहुंगी. फिर आगे बढ़कर राज्य या देश का मंत्री बनना चाहुंगी.


शहनाज़ बताती है कि उनके घर में बेटियों को आगे बढ़ाना का प्रचलन रहा है क्योंकि उनके घर के बड़े-बुजुर्ग का मानना है. जब तक घर में ही कोई बदलाव नहीं होगा तो हम समाज में कैसे सुधार कर पाएंगे.

शहनाज़ की मां मेयु समुदाय की ऐसी पहली महिला थी जिनको गांव के लोग सरपंच बनाना चाहते थे. फिर उनकी मां ने साल 2008 में चुनाव लड़ा और कामां गांव की पहली महिला प्रधान बनी. उनके पिता यानी कि शाहनाज के नाना मो. तैय्यब जी की इच्छा थी कि उनकी बेटी जाहिदा खान चुनाव लड़े और विधायक बनकर मेवात समुदाय का प्रतिनिधत्व करें. इससे पहले वो साल 2000 से 2005 के बीच कामां, भरतपुर से प्रधान भी रहीं. शहनाज़ के पिता जलीस खान भी साल 2010 से 2015 तक कावां, भरतपुर से प्रधान रहें.

शहनाज़ को जानने के लिए उनके परनाना चौधरी मो. यासिन खान को जानना बेहद जरुरी हो जाता है जो एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे और साथ ही वह आज़ादी से पहले पंजाब विधान सभा के सदस्य रहें. उन्होंने देश के विभाजन के बाद साल 1947 में कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी. एक समय ऐसा भी आया जब वह साल 1957 में पंजाब के फिरोजपुर के झिरका से निर्वरोध चुनाव जीते.

आज़ादी के बाद पूरे मेयू समुदाय सांप्रदायिक दंगों में दहक रहा था और उन्होंने ये निर्णय कर लिया था कि वो भारत छोड़कर पाकिस्तान चले जाएंगे. यह सब अंग्रेजी सेना और संप्रदाय विशेष द्वारा बनी सेना के द्वारा उन्हें नुकसान पहुंचाया जा रहा था और हरियाणा के गुड़गाव में उनके घरों को आग के हवाले किया जा रहा था. फिर मो. यासिन महात्मा गांधी के पास दिल्ली पहुंचे और आप बीती बताई तब गांधी जी 19 दिसंबर 1947 को घसहरे गांव पहुंचे और लोगों को समझाया. उन्होंने कहा आप लोग देश में बने रहे आपको आपका सम्मान और हक वापिस मिलेगा.

19 फरवरी 1970 को मो.यासिन खान का निधन हो गया. फिर मो.यासिन के बेटे और शहनाज के नाना मो. तैय्यब हुसैन साल 1962 में 26 साल की उम्र में सबसे युवा विधायक बने. बता दें कि मो. यासीन के जीते जी उनके बेटे मो. तैय्यब विधायक बन गए थे. देश के ऐसे पहले व्यक्ति बने जिन्होंने पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से बतौर कबीना मंत्री पद ग्रहण किया. साथ ही गुड़गाव से साल 1971 और फरीदाबाद से साल 1984 में सांसद भी रहें. शाहनाज के नाना और पर नाना ने मिलकर गांव के कई स्कूल, कॉलेज और कई तरह की मूलभूत चीजों को पूरा करवाया.

शहनाज़ के पर नाना मो. यासीन जी का सपना था कि वो फिरोजपुर की झिल्पा विधानसभा से उनके बेटे मो. तैय्यब हुसैन लड़े और आगे की बागडोर संभाले. फिर कुछ सालों बाद शाहनाज के दादा हनीफ खान कांवा विधानसभा सीट से लड़ाने के लिए शाहनाज के नाना को राजस्थान ले आए. जहां से मो. तैय्यब कई सालों तक विधायक और राज्य में मंत्री रहे.