कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने की आशंका के बीच ओडिशा में ताजा सर्वेक्षण से खुलासा हुआ है कि 6-10 वर्षीय आयु समूह के 70 फीसद बच्चों में एंटीबॉडी विकसित हुई है, जबकि 11-18 वर्षीय आयु समूह के 74 फीसद बच्चों में एंटीबॉडीज की मौजूदगी का पता चला. 12 जिलों में सीरो सर्वेक्षण ये अनुमान और तुलना करने के लिए किया गया था कि खास आयु के बच्चों में कोरोना की एंटीबॉडीज कितनी है.


ओडिशा के 70 फीसद बच्चों में मिली एंटीबॉडीज 


नतीजे देखकर विशेषज्ञों को लगता है कि बच्चे उतने ज्यादा संवेदनशील नहीं हैं जितनी आशंका जताई जा रही थी. सर्वे को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने 29 अगस्त और 15 सितंबर के बीच किया था. उसमें 12 सौ हेल्थकेयर वर्कर्स समेत 6 हजार लोगों को शामिल किया गया. क्षेत्रीय मेडिकल रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर डॉक्टर संघमित्रा पाटी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "70 फीसद सीरो की मौजूदगी 6-10 वर्षीय आयु समूह में पाई गई जबकि 11-18 वर्षीय आयु समूह के लिए ये 74 फीसद थी.


ज्यादातर बच्चे विशेषकर 6-10 वर्षीय आयु समूह के वायरस का जोखिम नहीं पाया गया क्योंकि उनके घर के अंदर रहने की उम्मीद थी. उनको खतरा परिवार और दोस्तों से रहा होगा. हमारे नतीजे समानर हैं और राष्ट्रीय सीरो सर्वेक्षण के बराबर हैं." सर्वे में शामिल 25.6 फीसद लोगों का टीकाकरण पूरा हो चुका था, 41.4 फीसद का आंशिक टीकाकर हुआ था और 33 फीसद लोगों को वैक्सीन बिल्कुल नहीं लगाई गई थी. 19-44 वर्षीय आयु समूह में सर्वे से 75.68 फीसद की सीरो मौजूदगी का खुलासा हुआ.


ICMR के ताजा सीरो सर्वेक्षण से हुआ खुलासा 


ये आंकड़ा 45-60 वर्षीय आयु समूह (72.65 फीसद) और 60 पार (66.04 फीसद) से अधिक है. आईसीएमआर लोगों के बीच कोरोना की पहुंच और इसके असर का पता लगाने के लिए सीरोलॉजिकल सर्वे कराता है. सीरोलॉजिकल टेस्ट दरअसल एक तरीके का ब्लड टेस्ट है जो व्यक्ति के खून में मौजूद एंटीबॉडी की पहचान करता है. ब्लड में अगर रेड ब्लड सेल निकाल दिया जाए तो जो पीला पदार्थ बचता है उसे सीरम कहते हैं. ब्‍लड सैंपल के जरिए इंसान के शरीर में एंटीबॉडीज का पता लगाया जाता है. एंटीबॉडीज बताती है कि कोई इंसान वायरस का शिकार हुआ है या नहीं. एंटीबॉडीज संक्रमण से लड़ने में मदद करती है.


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