नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि असम की समस्या देश के बाकी हिस्सों से अलग है क्योंकि नागरिकता के लिए पूर्व में कटऑफ तारीख 24 मार्च 1971 थी जिसे संशोधित नागरिकता कानून के तहत बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दिया गया है. कोर्ट इसके साथ ही सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के संबंध में असम और त्रिपुरा से संबंधित मुद्दों की अलग से सुनवाई करने के लिए भी राजी हो गई.
असम और त्रिपुरा से संबंधित याचिकाओं को अलग-अलग किया जा सकता है- SC
चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा, ‘‘ असम और त्रिपुरा से संबंधित याचिकाओं को अलग अलग लिया जा सकता है. उत्तर प्रदेश से संबंधित मामलों को भी अलग से देखा जा सकता है जो बिना नियम तय किए सीएए को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.’’ पीठ ने कहा,‘‘असम की समस्या बाकी देश से अलग है क्योंकि नागरिकता के लिए पूर्व में कटऑफ तारीख 24 मार्च 1971 थी जिसे संशोधित नागरिकता कानून के तहत बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दिया गया है.
बिना केंद्र का पक्ष सुने बगैर सीएए के क्रियान्वयन पर रोक नहीं
इसके साथ ही आज कोर्ट ने साफ किया कि केन्द्र का पक्ष सुने बगैर सीएए के क्रियान्वयन पर रोक नहीं लगाई जाएगी. कोर्ट ने कहा कि इस कानून की वैधता के बारे में पांच सदस्यीय संविधान पीठ फैसला करेगी. पीठ ने इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली तमाम याचिकाओं पर जवाब देने के लिये केन्द्र को चार सप्ताह का वक्त देने के साथ ही सभी हाई कोर्ट को इस मामले पर फैसला होने तक सीएए को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करने से रोक दिया. पीठ ने कहा, ‘‘हम अंतरिम राहत के मुद्दे पर केन्द्र को सुने बगैर कोई एक पक्षीय आदेश नहीं दे रहे हैं.’’
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप का पुरजोर अनुरोध किया. इन वरिष्ठ वकीलों ने कोर्ट में लंबित इस मामले में फैसला होने तक नागरिकता संशोधन कानून के क्रियान्वयन और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) कार्यक्रम की प्रक्रिया कुछ समय तक स्थगित करने का आदेश देने का भी अनुरोध किया.
केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाकर्ताओं के इस अनुरोध का पुरजोर विरोध किया. पीठ ने इस विरोध का संज्ञान लेते हुये टिप्पणी की, ‘‘सरकार के अनुसार यह राहत कानून पर रोक लगाने जैसी ही है.’’
पीठ ने कहा, ‘‘हम सभी के दिमाग में यह मामला सर्वोपरि है. हम पांच न्यायाधीशों की पीठ गठित करेंगे और फिर मामला सूचीबद्ध करेंगे. उन सभी याचिकाओं पर नोटिस जारी किया जाये जिनमें ऐसा नहीं हुआ था. अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल जवाब दाखिल करने के लिये चार सप्ताह का वक्त चाहते हैं.’’
पीठ ने कहा कि सीएए को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई के तरीके के बारे में निर्णय करने के लिये न्यायालय कुछ याचिकाओं को चैंबर में सुनेगा और इसके बाद चार सप्ताह बाद रोजाना सुनवाई के लिये पांच सदस्यीय पीठ गठित होगी.
कपिल सिब्बल ने कहा- इस मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया जाये
कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया जाये और एनपीआर कार्यक्रम कुछ महीने के लिए स्थगित कर दिया जाए. उन्होंने सीएए के क्रियान्वयन को भी स्थगित रखने का अनुरोध पीठ से किया. इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम भी सोचते हैं कि इस मामले की संविधान पीठ द्वारा सुनवाई की जानी चाहिए.’’
वेणुगोपाल ने कहा कि इस मामले में 18 दिसंबर की सुनवाई के बाद न्यायालय ने 60 मामलों में केन्द्र को नोटिस जारी किये थे लेकिन इसके बाद 83 नयी याचिकाएं दायर की गयी हैं और इनमें से अधिकांश की प्रतियां उन्हें नहीं दी गयी हैं. अटार्नी जनरल ने कहा, ‘‘हमें इन याचिकाओं पर जवाब दाखिल करना है और जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिये छह सप्ताह का समय दिया जाना चाहिए.’’
बांग्लादेश से असम और त्रिपुरा आने वाले 40 लाख बंगाली हिन्दुओं को नागरिकता संशोधन कानून के तहत नागरिकता प्रदान करने की प्रक्रिया को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि यह कानून विचित्र स्थिति पैदा करेगा और पहले से ही इन राज्यों में जबर्दस्त आन्दोलन चल रहा है. उन्होंने कहा कि इस कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगायी जाये क्योंकि यह 1985 के असम समझौते का भी उल्लंघन करता है जिसमें नागरिकता प्रदान करने की तारीख 24 मार्च 1971 निर्धारित की गयी थी.
अटार्नी जनरल ने इसमें हस्तक्षेप किया और न्यायालय से अनुरोध किया कि असम से संबंधित याचिकाओं पर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं से अलग सुनवाई करनी चाहिए. उन्होंने न्यायालय को भरोसा दिलाया कि असम राष्ट्रीय नागरिक पंजी की कवायद भारत के महापंजीयक द्वारा राष्ट्रीय सूची प्रकाशित किये जाने तक पूरी नहीं होगी. पीठ ने कहा कि त्रिपुरा और असम से संबंधित याचिकाएं और नियम तैयार हुये बगैर ही सीएए को लागू कर रहे यूपी से संबंधित मामले पर अलग से विचार किया जा सकता है.
नागरिकता कानून 10 जनवरी से देशभर में लागू
नागरिकता संशोधन कानून में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर, 2014 तक देश में आये हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के सदस्यों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद से पारित नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को 12 दिसंबर को अपनी संस्तुति प्रदान की थी. राष्ट्रपति की संस्तुति के साथ ही यह कानून बन गया था और यह 10 जनवरी को जारी अधिसूचना के बाद देश में लागू हो गया है.
सुप्रीम कोर्ट किस-किस ने दायर की याचिका
सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुये सुप्रीम कोर्ट में अनेक याचिकाएं दायर की गयी हैं. याचिका दायर करने वालों में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, कांग्रेस के सांसद जयराम रमेश, तृणमूल की सांसद महुआ मोइत्रा, आरजेडी के नेता मनोज झा, एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी, आसू, पीस पार्टी, वकील मनोहर लाल शर्मा और कानून के अनेक छात्र शामिल हैं. केरल की सीपीएम के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने भी संविधान के अनुच्छेद 131 का इस्तेमाल करते हुए संशोधित नागरिकता कानून, 2019 को चुनौती दी है. आईयूएमएल ने अपनी याचिका में कहा है कि सीएए समता के अधिकार का उल्लंघन करता है और इसका मकसद धर्म के आधार पर एक वर्ग को अलग रखते हुये अन्य गैरकानूनी शरणार्णियों को नागरिकता प्रदान करना है.