Same Sex Marriage Hearing: देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों एक ऐतिहासिक मामले की सुनवाई चल रही है. जिसमें सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने को लेकर हो रही बहस को सुन रही है. इसी दौरान देश के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, दरअसल देश में शादी और विवाह को लेकर कानून बनाने का अधिकार संसद को है लेकिन हम यह देखना चाह रहे हैं, आखिर देश की सर्वोच्च अदालत कितनी दूरी तय कर सकती है. 


मंगलवार (25 अप्रैल) को इस मामले में संसद की दलीलों को सुनते हुए चंद्रचूड़ ने कहा, इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि याचिका में कही गई बातों पर कानून बनाने का अधिकार देश की संसद के पास ही है. यह समवर्ती सूची 5 के अंतर्गत आता है और यह विशेष रूप से तलाक और विवाह के मामलों को कवर करता है. 


हालांकि यहां पर सवाल यह है, इस मामले में ऐसे कौन से बिंदु हैं जहां पर यह अदालत हस्तक्षेप कर सकती है. उन्होंने कहा, इस याचिका को सुनते हुए सवाल इस बात का भी है, आखिर देश की अदालत इस मामले में कितना आगे जाकर फैसला ले सकती है. 


...तो सरकार पलट देगी कानून
सीजेआई ने अदालत की सीमाओं के संबंध में एक उदाहरण देते हुए कहा, विशाखा बनाम राजस्थान राज्य के एक मामले में जब अदालत ने कार्यस्थलों पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की घटनाओं से निपटने के लिए कानून की कमियों को दूर करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे तो सरकार ने एक कानून लाकर उस फैसले को बाहर का रास्ता दिखा दिया था. 


'सरकार अदालत से नहीं कह सकती...'
समलैंगिक विवाह को लेकर याचिकाकर्ताओं की तरफ से अपनी दलीलें पेश करते हुए वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा, सरकार अदालत में आकर यह नहीं कह सकती कि यह संसद का मामला है. उन्होंने कहा, जब किसी समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो उनको संविधान में दिए गए अनुच्छेद 32 के तहत संवैधानिक न्यायालय की तरफ रुख करने का अधिकार है. 


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