S-400 Missile System: AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी के सवाल पर रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट ने अपने जवाब में कहा कि "सरकार रक्षा उपकरणों की खरीद को प्रभावित करने वाले सभी घटनाक्रमों से अवगत है." उन्होनें कहा कि सरकार, सशस्त्र बलों को सुरक्षा चुनौतियों के पूरे स्पेक्ट्रम का सामना करने के साथ-साथ संभावित खतरों, ऑपरेशनल और टेक्निकल पहलुओं के आधार पर संप्रभुता के साथ निर्णय लेती है."
 
रक्षा राज्यमंत्री ने कहा कि एस-400 मिसाइल सिस्टम के लिए 5 अक्टूबर 2018 को रूस से करार किया गया था और डिलीवरी कॉन्ट्रेक्ट की टाइमलाइन के अनुसार हो रही है. रक्षा राज्यमंत्री ने कहा कि एस-400 मिसाइल एक बड़े क्षेत्र में निरंतर और प्रभावी वायु रक्षा प्रणाली प्रदान करने के लिए अपनी परिचालन क्षमता के मामले में एक शक्तिशाली प्रणाली है.  इस प्रणाली के शामिल होने से देश की वायु रक्षा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी.


डील को लेकर शुरुआत में था संशय


भारत ने अक्टूबर 2016 में रूस के साथ इंटर-गर्वमेंटल करार किया था जिसके तहत भारतीय वायुसेना को एस- 400 ट्रायम्फ मिसाइल की कुल पांच यूनिट (रेजीमेंट या फ्लाइट या स्कॉवड्रन) मिलनी हैं. हालांकि, असल सौदे पर करार 5 अक्टूबर 2018 में ही हुआ था. भारत और रूस की एस-400 मिसाइल डील को लेकर शुरुआत में संशय जताया जा रहा था. क्योंकि अमेरिका ने रूस के साथ किसी भी देश के हथियारों के सौदों को लेकर प्रतिबंध लगा रखा है.


इसके लिए अमेरिका की संसद ने काटसा (CAATSA) यानि काउंटिंरिंग अमेरिका एडवर्सरी थ्रू सेंक्शन्स कानून पारित कर रखा है. हालांकि काटसा के बावजूद भारत और रूस ने एस-400 मिसाइल को लेकर करार किया था और अमेरिका ने इसके लिए अपरोक्ष रूप से सहमति भी दे दी है क्योंकि काटसा कानून भारत और रूस के बीच हुए करार के बाद अमेरिकी संसद में पारित हुआ था.


भारत की ओर से आधारिक घोषणा नहीं की गई


आपको बता दें कि रूस के राष्ट्रपति व्लीदिमीर पुतिन की अगले हफ्ते होने वाली भारत यात्रा से पहले ही एस-400 मिसाइल की डिलीवरी शुरू हो गई है. हालांकि, भारत ने इस डिलीवरी की आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन रूस की सरकारी मीडिया ने हाल ही में एस-400 मिसाइल सिस्टम बनाने वाली कंपनी के डायरेक्टर के हवाले से ये जानकारी सार्वजनिक की थी.
 
हाल ही में भारतीय वायु‌सेना के प्रमुख, एयर चीफ मार्शल वी आर चौधरी ने भी बताया था कि इस साल के अंत तक एस-400 मिसाइल सिस्टम भारत को रूस से मिलनी शुरू हो जाएगी. अगले हफ्ते यानि 6 दिसम्बर को रूस के राष्ट्रपति पुतिन अपने आधिकारिक दौरे पर भारत आ रहे हैं. इस दौरान वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दोनों देशों के संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिए सालाना बैठक करेंगे. इस दौरान दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्री पहली 'टू प्लस टू' बैठक में हिस्सा लेंगे.
 
करीब 39 हजार करोड़ रूपये के इस सौदे से भारत को दुनिया की सबसे ताकतवर मिसाइल प्रणाली मिलने जा रही है. एस-400 मिसाइल लंबी दूरी (लांग-रेंज) तक हवाई सुरक्षा करने में कारगर साबित है.  इस मिसाइल सिस्टम की रेंज करीब 400 किलोमीटर है. यानि अगर दुश्मन की मिसाइल किसी विमान या संस्थान पर हमला करने की कोशिश करेगी तो ये मिसाइल सिस्टम वक्त रहते ही उसे नेस्तानबूत करने में सक्षम साबित होगी.


ये एंटी-बैलिस्टक मिसाइल है यानि आवाज की गति से भी तेज रफ्तार से ये हमला बोल सकती है. हर फ्लाइट (रेजीमेंट या स्कॉवड्रन) में आठ लॉन्चर हैं और हरेक लॉन्चर में चार मिसाइल-ट्यूब हैं. ये मिसाइल सिस्टम एक साथ मल्टी-टारगेट निशाना लगा सकती है. यानि एक साथ दुश्मन के लड़ाकू विमान,  हेलीकॉप्टर, यूएवी और क्रूज मिसाइल को निशाना बना सकती हैं, वो भी अलग-अलग रेंज में (40, 120, 250 और 400 किलोमीटर तक).
 
गौरतलब है कि चीन ने भी इस मिसाइल सिस्टम की खूबी को देखते हुए रूस से एस-400 प्रणाली को खरीदा था और पिछले साल पूर्वी लद्दाख में भारत से हुए तनाव के दौरान एलएसी पर तैनात भी किया था.


सरकार ने दी रक्षा मंत्रालय को डिफेंस साइबर एजेंसी बनाने की अनुमति


देश के सशस्त्र बलों से साइबर पोस्चर को बढ़ाने के लिए वर्ष 2018 में सरकार (रक्षा मंत्रालय) ने डिफेंस साइबर एजेंसी को बनाने की अनुमति दी थी. इसके अलावा थलसेना, वायुसेना और नौसेना में अलग अलग साइबर-ग्रुप बनाने को भी मंजूरी दी गई थी. डिफेंस साइबर एजेंसी और अलग अलग ग्रुप बनाने का उद्देश्य सूचना और संचार प्रौद्योगिकी परिसंपत्तियों की सुरक्षा और विशिष्ट चार्टर के साथ स्थापित किया गया है. साथ ही और दुश्मन के साइबर वॉरफेयर के प्रयासों को रोकना है.


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