नई दिल्ली: आयुध कारखानों में हड़ताल को गैर कानूनी बनाने वाले अध्यादेश पर संघ परिवार नाराज़ है. आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है. संघ ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस अध्यादेश को वापस लेने की मांग की है.


प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में भारतीय मजदूर संघ ने अध्यादेश को अलोकतांत्रिक तरीके से लाया गया बताया है. पत्र में कहा गया है कि सरकार ने मजदूर संगठनों से विचार विमर्श किए बिना अध्यादेश लाने का फैसला कर लिया. बीएमएस का कहना है कि आयुध कारखानों के निगमीकरण का काम काफी विवादित है और इस पर समय-समय पर संगठन की ओर से सरकार को चिंताएं बताई जाती रही हैं. संगठन ने अफसोस जताते हुए कहा है कि उनकी चिंताओं को दूर करने की बजाए कुछ नौकरशाहों के कहने पर सरकार ने अध्यादेश लाने का फैसला कर लिया जो गलत है.


मजदूरों ने फैसले के खिलाफ 26 जुलाई से हड़ताल करने का ऐलान रखा 


पत्र में प्रधानमंत्री से इस मामले में हस्तक्षेप कर मामला सुलझाने की अपील की गई है. प्रधानमंत्री से अध्यादेश पर पुनर्विचार करने और आवश्यक निर्देश जारी करने की मांग की गई है ताकि मजदूरों को लोकतांत्रिक रूप से अपनी बात कहने का जायज अधिकार फिर से वापस मिल सके.


मोदी सरकार ने 16 जून को हुई कैबिनेट की बैठक में देशभर में फैले 41 आयुध कारखानों के निगमीकरण कर 7 निगमों में बांटने का फैसला किया था. इस फैसले को लेकर इन कारखानों से जुड़े मजदूर संगठनों ने एतराज जताते हुए इसका विरोध करने का निर्णय लिया था. मजदूर संगठनों ने फैसले के खिलाफ 26 जुलाई से हड़ताल करने का ऐलान कर रखा है.


सेना से जुड़े किसी भी संस्थान को आवश्यक रक्षा सेवा घोषित कर दिया


इसी बीच मोदी सरकार ने 30 जून को एक अध्यादेश पारित कर दिया जिसमें सेना से जुड़े किसी भी संस्थान को आवश्यक रक्षा सेवा घोषित कर दिया गया. अध्यादेश में इन सेवाओं में हड़ताल को गैर कानूनी घोषित कर इन हड़तालों में शामिल होने वाले लोगों के खिलाफ सज़ा का प्रावधान किया गया है. अध्यादेश में कहा गया है कि इन हड़ताल में शामिल होने वाले लोगों के लिए एक साल और उन्हें उकसाने वाले लोगों के लिए दो साल की सज़ा का प्रावधान किया गया है.


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