भले ही राबड़ी देवी और लालू यादव अपने 19 साल पुराने बंगले को खाली करने को राजी न हों, भले ही वो राबड़ी देवी के लिए आवंटित हार्डिंग रोड वाले नए बंगले में शिफ्ट होने को राजी न हों, लेकिन इतना तो तय है कि उन्हें न सिर्फ 10 सर्कुलर रोड वाला पुराना बंगला खाली करना पड़ेगा बल्कि कुछ ही दिनों के अंदर उन्हें नए बंगले 39 हार्डिंग रोड को भी खाली करना पड़ेगा और इसकी वजह न तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और न ही एनडीए सरकार है, बल्कि इसकी असली वजह उनके बेटे तेजस्वी यादव हैं, जिनके दो फैसलों ने उनके माता-पिता का बेघर होना तय कर दिया है.
सबसे पहले बात करते हैं कि आखिर जिस 10 सर्कुलर रोड वाले बंगले में लालू-राबड़ी पिछले 19 साल से रह रहे हैं और जहां लालू यादव की सेहत को देखते हुए लिफ्ट तक की व्यवस्था की गई है, उसे उन्हें क्यों खाली करना पड़ रहा है और क्यों उन्हें जो नोटिस मिला है, उसके जिम्मेदार सिर्फ तेजस्वी यादव हैं. तो इसके पीछे की कहानी ये है कि जब राबड़ी देवी की जगह पर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तो पटना के मुख्यमंत्री आवास एक अणे मार्ग को राबड़ी देवी को खाली करना पड़ा. उस बंगले में बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रहने लगे. उसी दौरान नीतीश कुमार ने फैसला किया कि बिहार के जो भी पूर्व मुख्यमंत्री हैं, उन्हें सरकारी बंगला अलॉट होगा. इसके लिए सरकारी कायदे-कानून में बदलाव भी किए गए थे और फिर राबड़ी देवी को 10 सर्कुलर रोड वाला बंगला अलॉट हुआ था.
नीतीश कुमार ने 2015 में बदला पाला, बढ़ गई लालू परिवार की मुश्किलें
16 जनवरी, 2006 से बतौर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी 10 सर्कुलर रोड में रहने लगीं और तब से वो वहीं रह रही हैं, लेकिन साल 2015 में जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी और तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने तो कहानी बदल गई. हुआ ये कि तेजस्वी यादव को बतौर डिप्टी सीएम 5 देशरत्न मार्ग पर बंगला आवंटित हुआ. जब तक महागठबंधन की सरकार रही, कोई दिक्कत नहीं हुई, लेकिन जैसे ही नीतीश कुमार ने पाला बदला और बीजेपी के साथ जाकर एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री बन गए, दिक्कत शुरू हो गई. क्योंकि तब बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव नहीं बल्कि सुशील कुमार मोदी बन गए. ऐसे में तेजस्वी यादव को बंगला खाली करने का नोटिस मिल गया, क्योंकि वो बंगला बिहार के उपमुख्यमंत्री के लिए आवंटित था और उपमुख्यमंत्री अब तेजस्वी नहीं सुशील मोदी थे, जिन्हें 5 देशरत्न मार्ग पर शिफ्ट होना था.
नीतीश कुमार ने पलटा फैसला, पटना हाई कोर्ट ने भी तेजस्वी को दिया आदेश
तब तेजस्वी ने बंगला खाली करने के बजाय अदालत का रास्ता चुना. पटना हाई कोर्ट में केस किया और कहा कि बिहार के जो पूर्व मुख्यमंत्री हैं और जो लोग ऊंचे पदों पर हैं या रहे हैं, उनके घर को लेकर साफ-साफ नियम-कानून होने ही चाहिए. तब ये मुकदमा पटना हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एपी शाही और जस्टिस अंजना मिश्रा की बेंच में पहुंचा. सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने तेजस्वी यादव को 5 देशरत्न मार्ग का बंगला खाली करने का आदेश दिया और साथ ही साथ नीतीश कुमार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए जो बंगलों की व्यवस्था की थी, उसे भी खारिज कर दिया और कहा कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगला देना और दूसरी सुविधाएं देना असंवैधानिक है. फरवरी, 2019 में आए इस फैसले के करीब साढ़े छह साल बाद भी राबड़ी देवी से बंगला खाली नहीं करवाया गया, क्योंकि तब सियासी परिस्थितियां अलग थीं, जिनमें नीतीश कभी तेजस्वी के साथ तो कभी तेजस्वी के खिलाफ रहे, लेकिन अब जब 2025 में एनडीए के पास इतना विशाल बहुमत है, बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में है और फैसले लेने के अख्तियार भी बीजेपी के पास भरपूर मात्रा में हैं तो राबड़ी देवी को अब बंगला खाली करने का नोटिस मिल गया है.
राबड़ी देवी के सरकारी बंगले में रहने पर असमंजस
भले ही आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल कह रहे हैं कि बंगला खाली नहीं होगा, लेकिन हाई कोर्ट का जो आदेश है, उसे देखते हुए लगभग तय है कि बंगला तो खाली करना ही पड़ेगा और राबड़ी देवी को मय परिवार 39 हार्डिंग रोड शिफ्ट होना पड़ेगा, लेकिन वहां शिफ्ट होने के कुछ ही दिनों के बाद ही राबड़ी देवी को वो बंगला भी खाली ही करना पड़ेगा और इसकी भी वजह तेजस्वी यादव ही हैं. क्योंकि राबड़ी देवी को जो 39 हार्डिंग रोड का बंगला मिल रहा है, वो उन्हें विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मिल रहा है, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी की जैसी हार हुई है, उससे राबड़ी देवी के विधानपरिषद में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर भी संकट मंडरा रहा है.
बिहार विधान परिषद में नेता विपक्ष के लिए सदस्यों का क्या है गणित?
दरअसल, बिहार विधान परिषद में कुल 75 सदस्य होते हैं. इनमें से 27 सदस्य बिहार विधानसभा के सदस्य चुनते हैं, 26 सदस्य स्थानीय निकाय से होते हैं. 12 सदस्यों को राज्यपाल मनोनित करते हैं और 6 सदस्य शिक्षक कोटे से और 6 सदस्य स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से चुने जाते हैं. विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष होने के लिए उस पार्टी के कम से कम 9 विधान परिषद सदस्य होने चाहिए. आरजेडी के पास फिलहाल 14 विधान परिषद सदस्य हैं. विधानसभा सदस्यों की ओर से निर्वाचित कुल 8 लोग हैं, जिसमें राबड़ी देवी, अब्दुल बारी सिद्दीकी, सैयद फैसल अली, डॉ. उर्मिला ठाकुर, मोहम्मद फारुक, अशोक कुमार पांडेय, मुन्नी देवी और मोहम्मद सोहैब, सुनील कुमार सिंह का कार्यकाल खत्म हो चुका है.
वहीं, स्थानीय निकाय से कुमार नागेंद्र, विनोद कुमार जायसवाल, कार्तिक कुमार, अजय कुमार सिंह, अजय कुमार सिंह और सौरभ कुमार, कुल 6 लोग हैं. लिहाजा राबड़ी देवी नेता प्रतिपक्ष हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी के पास 75 विधायक थे, तो विधानसभा सदस्यों की ओर से निर्वाचन में 9 सीटें मिल गईं. इस बार आरजेडी की कुल सीटें ही 25 हैं, ऐसे में वो शायद ही विधान परिषद की कोई एक भी सीट अकेले दम पर जीत पाएं.
2026 से 2028 तक RJD के कई विधान परिषद सदस्यों का कार्यकाल होगा खत्म
तिस पर तुर्रा ये कि अगले साल 2026 में विधान परिषद के एक सदस्य मोहम्मद फारुक का कार्यकाल खत्म हो रहा है और 28 जून, 2026 को वो एमएलसी नहीं रह पाएंगे. तो संख्या बल 14 से घटकर 13 हो जाएगा. 2028 में कुल 9 विधान परिषद सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो रहा है. इनमें से स्थानीय निकाय वाले ही 6 लोग हैं, जिनमें सौरभ कुमार, अजय सिंह, कार्तिक कुमार, अजय सिंह, विनोद कुमार जायसवाल और कुमार नागेंद्र का कार्यकाल 7 अप्रैल, 2028 को ही खत्म हो रहा है.
इसी के साथ विधान परिषद में आरजेडी का संख्या बल घटकर 7 हो जाएगी. बाकी 21 जुलाई, 2028 को भी मोहम्मद सोहैब, मुन्नी देवी और अशोक पांडेय का कार्यकाल खत्म हो रहा है. हालांकि, राबड़ी देवी का कार्यकाल 6 मई, 2030 तक है, लेकिन तब तक वो सिर्फ विधान परिषद सदस्य ही रह पाएंगी, विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष नहीं. ऐसे में विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का पद छिनने के साथ ही राबड़ी देवी से बंगला भी छिन जाएगा और तेजस्वी यादव कुछ नहीं कर पाएंगे, क्योंकि उन्हें बतौर विधानसभा नेता प्रतिपक्ष 1 पोलो रोड का बंगला मिला हुआ है.