नई दिल्लीः सीबीआई विवाद के बाद अब आरबीआई को लेकर बड़ी खबर आ रही है. केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच टकराव की खबरें सामने आ रही हैं. केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को लेकर वित्त मंत्रालय और आरबीआई के बीच तनाव बढ़ने की रिपोर्ट हैं. आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल वी आचार्य ने शुक्रवार को कहा था कि केंद्रीय बैंक की आजादी की उपेक्षा करना ‘बड़ा घातक’ हो सकता है. माना जा रहा है कि उनकी ये टिप्पणी रिजर्व बैंक के नीतिगत रुख में नरमी लाने और उसकी शक्तियों को कम करने के लिए सरकार के दबाव के विरोध में है. केंद्रीय बैंक आरबीआई की ओर से विरल वी आचार्य के इस बयान को केंद्र सरकार के विरोध के रुप देखा जा रहा है.


आचार्य ने मुंबई में शुक्रवार को एडी श्राफ स्मृति व्याख्यानमाला में कहा था कि आरबीआई बैंकों के बही-खातों को दुरूस्त करने पर जोर दे रहा है, ऐसे में उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बेहतर तरीके से रेगुलेशन के लिये आरबीआई को ज्यादा शक्तियां देने की मांग की. उन्होंने कहा था कि व्यापक स्तर पर वित्तीय और आर्थिक स्थिरता के लिये यह स्वतंत्रता जरूरी है.

आरबीआई गवर्नर का भी डिप्टी गवर्नर को समर्थन
बताया जा रहा है कि आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने भी सरकार पर केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता पर सरकार की लगाम को लेकर कुछ विरोध जताया है और डिप्टी गवर्नर के बयान को भी आरबीआई गवर्नर का समर्थन हासिल है. विरल आचार्य ने ये भी कहा था कि केंद्र सरकार केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करती है

वित्त मंत्री ने साधा आरबीआई पर निशानाः बैंकों के एनपीए के लिए जिम्मेदार ठहराया
आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच बढ़ती तनातनी के ही क्रम में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैंकों में फंसे कर्ज के लिए आरबीआई को जिम्मेदार ठहराया है और केंद्रीय बैंक की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि साल 2008 से 2014 के बीच आरबीआई अंधाधुंध कर्जा देने वाले बैंकों पर लगाम लगाने में नाकाम रहा. इससे बैंकों में फंसे कर्ज (एनपीए) का संकट बढ़ गया. जेटली ने अपने संबोधन में आचार्य के भाषण या उनके मंत्रालय तथा आरबीआई के बीच कथित तनाव के बारे में कुछ नहीं कहा. पूर्व में वित्त मंत्री यह कह चुके हैं कि किसी भी गड़बड़ी के लिये राजनेताओं को गलत तरीके से आरोप झेलना पड़ता है जबकि निगरानीकर्ता आसानी से बच निकलते हैं.

जेटली ने अमेरिका-भारत स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप मंच के द्वारा आयोजित ‘इंडिया लीडरशिप सम्मिट’ में कहा, ‘वैश्विक आर्थिक संकट के बाद 2008 से 2014 के बीच अर्थव्यवस्था को कृत्रिम रूप से आगे बढ़ाने के लिये बैंकों को अपना दरवाजा खोलने और अंधाधुंध तरीके से कर्ज देने को कहा गया. उस दौरान केंद्रीय बैंक की निगाह कहीं और थी और अंधाधुंध तरीके से कर्ज दिये गये.’ वित्त मंत्री ने कहा कि तत्कालीन यूपीए सरकार बैंकों पर कर्ज देने के लिये जोर दे रही थी जिससे एक साल में कर्ज में 31 फीसदी तक इजाफा हुआ जबकि औसत बढ़ोतरी 14 फीसदी थी.

राहुल गांधी ने किया आरबीआई विवाद को लेकर किया केंद्र सरकार पर हमला
इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी आरबीआई के मामले को लेकर केंद्र सरकार और पीएम मोदी पर हमला कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि देश की सभी संस्थाओं में हस्तक्षेप और दुरुपयोग करके सरकार ने इनकी विश्वसनीयता को खत्म किया है. शिक्षण संस्थाओं में विचार व्यक्त करने तक की आजादी नहीं है.

आरबीआई की स्वायतता पर बड़ा हमला हो रहा है. देश में आर्थिक स्थिरता के लिए आरबीआई की मुख्य भूमिका है. देश के वित्तमंत्री का निशाना आरबीआई पर लगा है. देश का पेमेंट रेगुलेटर आरबीआई है इसको सरकार छीन नहीं सकती. सरकार कोई नई संस्था को रेगुलेटर नहीं बना सकती है.

राहुल गांधी ने कल कहा था कि आखिरकार आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल केंद्रीय बैंक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बचा रहे हैं और ये देश कभी भी अहम संस्थानों को बीजेपी-आरएसएस के कब्जे में नहीं जाने देगा. राहुल गांधी ने ये भी कहा कि देर आए दुरुस्त आए, ये अच्छा है कि आरबीआई गवर्नर आखिरकार पटेल आरबीआई को मिस्टर 56 से बचा रहे हैं.

सीताराम येचुरी ने भी जाहिर की आरबीआई-केंद्र सरकार विवाद पर चिंता
माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने केन्द्र सरकार के भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के साथ जारी विवाद को देश की अर्थव्यवस्था के लिये विनाशकारी बताया है.

येचुरी ने विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं के साथ केन्द्र के टकराव के पीछे सरकार के हठवादी रवैये को मुख्य वजह बताया. येचुरी ने सरकार पर सिर्फ अपनी मनमानी करने को आरोप लगाते हुये मंगलवार को ट्वीट कर कहा ‘‘किसी की नहीं सुनी. सिर्फ़ जुमला कसना और लोगों से झूठे वायदे करना मोदी सरकार का उद्देश्य है. आरबीआई के पूर्व गवर्नर की राय के ख़िलाफ़ नोटबंदी लागू कर के अर्थव्यवस्था तहस-नहस कर दी. आरबीआई के साथ सरकार का विवाद विनाश की ओर ले जाने वाला है.

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