नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में आज पहली बार ऐसा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ये बताना पड़ा कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. वरिष्ठ जज चलमेश्मवर ने कहा कि अनियमितताओं को लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के सामने अपनी बात रखी, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद चार सीनियर जजों में जस्टिस चलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगई, जस्टिस मदन भीमाराव लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ थे. प्रेस कॉन्फ्रेेस में कहा जस्टिस चलमेश्वर ने कहा , ''हम चारों इस बात से सहमत हैं कि जब तक इस संस्था को संरक्षित नहीं किया जाता है और इसकी समता को बनाए नहीं रखा जाता है, तब तक लोकतंत्र इस देश या किसी देश में बच नहीं सकता. लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए अच्छा लोकतंत्र के साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष जज का होना जरूरी है. यहां जज प्रतीकात्मक है. दरअसल ये संस्था है.''
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चिट्ठी में क्या है विवाद?
सात पन्नों की चिट्ठी में कई विवादों का जिक्र किया गया है. चिट्ठी में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर मनमाने रवैये का जिक्र किया गया है. चीफ जस्टिस और इन चार वरिष्ठ जजों के बीच अधिकारों को लेकर विवाद है. विवाद यह है कि केस किसके पास जाए, ये तय होने का अधिकार दिया जाना चाहिए. चिट्ठी में गुजरात का सोहराबुद्दीन एनकाउंटर को लेकर भी विवाद का जिक्र है.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में वरिष्ठ जजों ने क्या कहा है?
जस्टिस चलमेश्वर ने कहा है, ‘’न्यायपालिका के इतिहास में यह असाधारण बात है, यह खुशी की बात नहीं है कि हमें प्रेस कान्फ्रेंस करनी पड़ रही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का प्रशासनिक व्यवस्थित नहीं है, पिछले कुछ महीने से जो कुछ बातें हो रही है वो स्वीकार्य नहीं है. हम सर्वोच्च न्यायलय के सीनियर जज हैं, हमें लगा की हमारी जिम्मेदारी है संस्था के लिए, देश के लिए. हमने एक साथ मुख्य न्यायधीश से बात करने की कोशिश की कि कुछ चीजें व्यवस्थित नहीं है और कुछ कदम उठाइए, दुर्भाग्यवश हमारी कोशिश नाकाम रही.’’
उन्होंने कहा, ‘’अच्छे लोकतंत्र का होलमार्क स्वतंत्र न्यायपालिका है, यह राजनीतिक विवाद नहीं है. आज सुबह हम चार जज मुख्य न्यायधीश के घर भी गए थे और उनसे मिले किसी खास अनुरोध से लेकिन दुर्भाग्यवश हम उन्हें समझाने में असफल रहे कि हम सही हैं.’’
उन्होंने आगे कहा, ‘’हमारे पास देश से संवाद करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था कि संस्था का ख्याल रखें और देश का ख्याल रखें. हम नहीं चाहते की 20 साल बाद कोई बुद्धजीवी हम चार जजों को ये ना कहें कि हमने अपनी आत्मा बेच दी, हमनें ये सब लोगों के सामने रख दिया है.’’
पहली बार आई सरकार की प्रतिक्रिया
वहीं, इस विवाद पर केंद्र सरकार ने कहा है कि यह सुप्रीम कोर्ट का आपस का मामला है. इससे सरकार का कोई लेना देना नहीं है. जजों के बीच पैदा हुए विवाद को उन्हें खुद सुलझा लेना चाहिए.