नई दिल्ली: कोलकाता के शांति निकेतन स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय से गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर के पदक चोरी का मामला फिर से गरमा गया है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस चोरी को लेकर केंद्र सरकार को निशाने पर रखते हुए बयान दिया, जिससे बंगाल की राजनीति एक बार फिर इस मामले को लेकर गरमा गई.


कोलकाता से चोरी हुए गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर नोबेल प्राइज चोरी मामले में सीबीआई की जांच टीम को कॉलेज के ही एक कर्मचारी पर शक था लेकिन सबूत ना मिलने के कारण मामला बंद कर दिया गया था. सीबीआई ने इस मामले में गहन जांच करने के लिए दो बार अपने जांच अधिकारियों का भी ट्रांसफर किया था. फिलहाल कोलकाता पुलिस इस चोरी में विदेशी हाथ का शक कर रही है. जबकि सीबीआई सूत्रों का कहना है कि यदि कोई सबूत मिला है तो सीबीआई को दे.


गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर की पदक चोरी की ये घटना 25 मार्च 2004 को विश्वभारती विश्वविद्यालय में हुई थी और उस समय भी इस चोरी को लेकर राजनीति गरमा गई थी. जिसके चलते इस मामले की जांच तत्कालीन प. बंगाल सरकार ने सीबीआई को सौंप दी थी. सीबीआई के एक आला अधिकारी के मुताबिक, सीबीआई टीम इस मामले में अनेक हफ्तों तक विश्वविद्यालय परिसर मे कैंप डाल कर जांच करती रही थी.


सीबीआई सूत्रों के मुताबिक, इस मामले में सीबीआई ने गहन जांच के लिए दो बार अपने जांच अधिकारी का भी ट्रांसफर किया था. सीबीआई को इस मामले में विश्वविद्यालय के ही एक कर्मचारी पर शक था. उस कर्मचारी से अनेक बार पूछताछ भी की गई थी लेकिन कोई पुख्ता सबूत ना मिलने के कारण मामले में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई थी. सीबीआई सूत्रों के मुताबिक, इस मामले को पहले साल 2007 में बंद किया गया था और फिर इसकी जांच साल 2008 में शुरू की गई थी लेकिन सबूत ना मिलने पर फिर इसे साल 2009 में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई थी.


साल 2016 मे प. बंगाल की मुख्यमंत्री ने इस मामले में आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार के नेतृत्व में एक एसआईटी का गठन किया था. प. बंगाल पुलिस का दावा था कि एक मामले की जांच के दौरान एक गायक को गिरफ्तार भी किया गया था और तब जांच से पता चला था कि इस मामले में एक बांग्लादेशी समेत दो यूरोपियन का हाथ शामिल है. प. बंगाल पुलिस ने इस मामले की जांच फाइल फिर से वापस कोलकाता पुलिस को देने को कहा था लेकिन सीबीआई के दिग्गज पुराने अधिकारियों का इस मामले में कुछ और ही कहना है.


सीबीआई में एसएसपी पद से सेवानिवृत्त हुए एन एस खड़ायत के मुताबिक, राज्य सरकार की सहमति के बाद यह केस सीबीआई के पास आया था और अब यदि राज्य सरकार को कुछ नए तथ्य हाथ लगे हैं तो उन्हें सीबीआई को सौंप देना चाहिए. साथ ही यदि ऐसे किसी केस में जिसमें सीबीआई क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल कर देती है तो कोर्ट की आज्ञा से ही उस मामले में फिर से जांच शुरू हो सकती है.


सीबीआई सूत्रों के मुताबिक, विश्वविद्यालय के जिस कर्मचारी पर सीबीआई को जांच के दौरान शक हुआ था उसके बारे में पता चला था कि उसने जिस परिसर में पदक रखा हुआ था उस परिसर का दरवाजा खोलते ही कहा था कि सर्वनाश हो गया और तब तक यह पता भी नही था कि पदक चोरी हुआ है. लेकिन जांच के दौरान पुख्ता तथ्य ना मिलने पर कार्रवाई नहीं की जा सकी.


सीबीआई और कोलकाता पुलिस दोनो के इस मामले में अपने अपने दावे हैं लेकिन इन दावों के उलट एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि कोई भी जांच एजेंसी अभी तक चोरी हुए सामान को वापस नहीं ला सकी है और यही बात दोनों की कार्यक्षमता पर बड़ा सवालिया निशान लगाती हैं.


28 दिसंबर को 100वीं किसान रेल को हरी झंडी दिखाएंगे पीएम मोदी, महाराष्ट्र-पश्चिम बंगाल के बीच चलेगी ट्रेन