Ramlala Pran Pratishtha: रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से शंकराचार्यों के इनकार पर बवाल थम नहीं रहा है. उत्तराखंड की ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को अशास्त्रीय बताया है. इस बीच उन्होंने असली हिंदू कौन होते हैं, इसे लेकर खुलकर अपनी बात रखी.


शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने एक साक्षात्कार में कार्यक्रम का विरोध करने वालों को हिंदू विरोधी होने का तमगा दिए जाने पर भी जवाब दिया. शंकराचार्य ने कहा कि उन्होंने एक धारणा तैयार कर रखी है कि हमारे फ्रेम (दायरे) में आ जाओ, तभी आप हिंदू हो, नहीं तो आप हिंदू नहीं हो.


कौन हैं असली हिंदू?
उत्तराखंड की ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य ने न्यूज तक को दिए एक इंटरव्यू में हिंदुओं की परिभाषा बताते हुए कहा, ''ये लोग चाहते हैं कि हिंदू धर्मशास्त्र को मानो चाहे मत मानो, बस हमारी शरण में आ जाओ, हमारा जयकार बोलो, हम आपको बहुत बड़ा हिंदू घोषित कर देंगे.''


उन्होंने कहा, ''वो वाले हिंदू हम नहीं हैं. हम तो धर्मशास्त्र के अनुसार अपने जीवन को चलाते हैं, तब अपने आपको छोटा सा हिंदू कहने की हिम्मत करते हैं.'' एक अन्य साक्षात्कार में अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में ब्राह्मण-दलित के मुद्दे पर भी अपनी खुलकर राय रखी.   


प्राण प्रतिष्ठा में कोई मुद्दा है ब्राह्मण या दलित? 
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा, ''प्राण प्रतिष्ठा में ब्राह्मण या दलित कोई मुद्दा ही नहीं है. जात-पात की बात नहीं है, ये सब ऊंच-नीच राजनीतिक लोगों ने फैला दिया है. ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र और क्षत्रिय सभी भगवान के अंग हैं और सनातन धर्म में सबको साथ रहना अनिवार्य है.''


दरअसल, पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने एक बयान देते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकार्पण करेंगे, गर्भ गृह में मूर्ति का स्पर्श करेंगे तो मैं वहां क्या तालियां बजाकर जयकार करूंगा? मेरे पद की भी मर्यादा है. 


सोमनाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर क्या बोले शंकराचार्य?
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि सोमनाथ मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा करने वालों को ये जानना चाहिए कि वहां प्रतिष्ठा का विषय नहीं है. सोमनाथ में कैसे प्रतिष्ठा हो सकती है, वो ज्योतिर्लिंग है और ज्योतिर्लिंग अनादिकाल से चला आ रहा है.


उन्होंने कहा कि भगवान स्वयं प्रकट हुए थे, वहां जाकर किसी ने प्रतिष्ठा नहीं की थी इसलिए सोमनाथ की बात नहीं की जा सकती, वहां भगवान पहले से विराजमान हैं.


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