नई दिल्लीः हाल ही में आई एक नई रिसर्च में कहा गया है कि इंडो-पैसिफिक महासागर के तेजी से गर्म होने के कारण दुनिया के कुछ हिस्सों में भारी बारिश तो कुछ में अनियमित बारिश के कारणों में से एक है, जबकि उत्तर भारत में मानसून ठीक से ना आने का कारण भी यही है.


पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिरोलॉजी (IITM) के रॉक्सी मैथ्यू कोल्ल के नेतृत्व में ये शोध किया गया. रिसर्च ने बताया कि महासागर के गर्म होने से मैडेन जूलियन ऑसिलेशन (MJO) के रूप में जाना जाने वाला मौसम में उतार-चढ़ाव आने से कई जगहों का मौसम का रूख एकदम बदल गया. यही कारण था कि नवंबर और अप्रैल के महीनों के बीच उत्तरी भारत में बारिश में कमी आई.

उन्होंने कहा कि इंडो-पैसिफिक महासागर के तेजी से गर्म होने के कारण दुनिया भर में बारिश के पैटर्न में बदलाव हो रहा है. एमजेओ के व्यवहार में बदलाव के कारण उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम प्रशांत, अमेजन बेसिन, दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया (इंडोनेशिया, फिलीपींस और पापुआ न्यू गिनी) में बारिश बढ़ गई है।

रिसर्च में कहा गया है कि इसी समय एमजेओ के व्यवहार में परिवर्तन से मध्य प्रशांत के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिम और पूर्वी तट (जैसे कैलिफोर्निया), उत्तर भारत, पूर्वी अफ्रीका और चीन के यांग्त्ज़ी बेसिन में बारिश में गिरावट दर्ज की गई है.

किसने की ये रिसर्च-
ये रिसर्च इंडो-यूएस कॉलेबरेशन के बीच की गई है, जिसमें मिनिस्ट्री ऑफ ईस्टच साइंस (इंडिया) और यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के बीच अमेरिका के नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा सहयोग किया जा रहा है.

कौन है प्रमुख शोधकर्ता-
यह शोध रॉक्सी मैथ्यू कोल्ल के अलावा पाणिनी दासगुप्ता (IITM), माइकल मैकफेडेन, चिदोंग झांग (NOAA), डीयाहुन किम (वाशिंगटन यूनिवर्सिटी) और तमकी सुमैत्सु (टोक्यो यूनिवर्सिटी) के सहयोग से की गई थी.

क्या है मैडेन जूलियन ऑसिलेशन (MJO) -
रिसर्च के अनुसार, एमजेओ बारिश के बादलों के एक बैंड के रूप में जाना जाता है, जो उष्णकटिबंधीय (tropical) पर पूर्व की ओर बढ़ रहा है. MJO ट्रॉपिकल्स साइक्लोन, मानसून और एल नीनो चक्र को नियंत्रित करता है. MJO कभी-कभी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका में गंभीर मौसम की घटनाओं के लिए जिम्मेदार होता है.

एमजेओ उष्णकटिबंधीय महासागरों के ऊपर, मुख्य रूप से इंडो-पैसिफिक गर्म महासागर पर 12,000-20,000 किलोमीटर की दूरी पर यात्रा करता है, जिसमें समुद्र का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म होता है. हाल के दिनों में बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के कारण इंडो-पैसिफिक महासागर तेजी से गर्म हो रहा है.

कोल्ल ने रिसर्च में कहा कि इंडो-पैसिफिक महासागर के और अधिक तेजी से गर्म होने की संभावना है जो भविष्य में वर्षा के वैश्विक पैटर्न में बदलावों को तेज कर सकता है. इसका मतलब है कि इन परिवर्तनों की सही निगरानी करने के लिए हमें अपने महासागर का निरीक्षण करने की आवश्यकता है.

ये खबर रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें.