लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अमेरिका की तरफ से भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत टैरिफ बढ़ाने के फैसले को लेकर केंद्र सरकार से कड़े सवाल किए हैं. उनका कहना है कि इस फैसले का सीधा असर भारत के निर्यात और रोजगार पर पड़ सकता है, खासकर उन क्षेत्रों पर जहां बड़ी संख्या में श्रमिक काम करते हैं. राहुल गांधी ने सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या इस टैरिफ वृद्धि के प्रभाव का कोई औपचारिक आकलन किया गया है या नहीं.

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उन्होंने वाणिज्य और उद्योग मंत्री से पूछा कि कपड़ा, चमड़ा और रत्न-आभूषण जैसे श्रम-आधारित उद्योगों पर इस फैसले का क्या प्रभाव पड़ा है. साथ ही यह भी जानना चाहा कि यदि सरकार ने अब तक कोई अध्ययन नहीं किया है तो इतने बड़े व्यापारिक बदलाव के बावजूद ऐसा क्यों नहीं किया गया.

निर्यात और रोजगार पर असर को लेकर उठे सवाल

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राहुल गांधी ने अपने सवालों में यह भी पूछा कि अमेरिकी टैरिफ के कारण भारत के निर्यात मूल्य में कितनी गिरावट आई है और इसका रोजगार पर क्या असर पड़ा है. उन्होंने यह मुद्दा भी उठाया कि यदि भारत प्रतिशोधात्मक टैरिफ लगाता है तो उससे घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए सरकार ने क्या तैयारी की है. उनका तर्क था कि बिना ठोस मूल्यांकन के नीति बनाना जोखिम भरा हो सकता है.

सरकार का पक्ष: निर्यात पर नजर, गिरावट नहीं बढ़त

इन सवालों के जवाब में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री जितिन प्रसाद ने कहा कि सरकार भारत के निर्यात की लगातार निगरानी करती है. उन्होंने लोकसभा को बताया कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर की अवधि के दौरान भारत के कुल माल निर्यात में कोई गिरावट नहीं आई है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-अक्टूबर 2024 में भारत का निर्यात 252.66 अरब डॉलर रहा, जबकि अप्रैल-अक्टूबर 2025 में यह बढ़कर 254.25 अरब डॉलर हो गया. सरकार का कहना है कि ये आंकड़े यह दिखाते हैं कि वैश्विक चुनौतियों और अमेरिकी टैरिफ के बावजूद भारत का निर्यात फिलहाल संतुलित और मजबूत बना हुआ है.

अमेरिकी टैरिफ से निपटने के लिए सरकार की तैयारी

जितिन प्रसाद ने बताया कि सरकार अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए कई स्तरों पर काम कर रही है. निर्यातकों को वित्तीय सहायता, नीतिगत सहयोग और नए बाजारों तक पहुंच देने पर जोर दिया जा रहा है. सरकार का मानना है कि केवल एक बाजार पर निर्भर रहने के बजाय निर्यात को विविध बनाना जरूरी है.

निर्यात प्रोत्साहन मिशन और वित्तीय सहायता

सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन मिशन के तहत आने वाले वर्षों के लिए एक बड़ा वित्तीय प्रावधान किया है. इस योजना का उद्देश्य खासकर छोटे और मध्यम उद्यमों को सस्ती वित्तीय सुविधा देना और उन्हें वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाना है. इसके जरिए ब्रांडिंग, पैकेजिंग, लॉजिस्टिक्स और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुपालन में भी मदद दी जा रही है.

क्रेडिट गारंटी और आरबीआई की राहत

सरकार ने निर्यातकों के लिए क्रेडिट गारंटी की व्यवस्था को भी मजबूत किया है, ताकि उन्हें बिना अतिरिक्त गारंटी के ऋण मिल सके. इसके अलावा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी प्रभावित निर्यातकों को राहत देने के लिए कुछ कदम उठाए हैं, जिनमें ऋण पुनर्भुगतान में छूट और निर्यात क्रेडिट की अवधि बढ़ाना शामिल है.

FTA और नए बाजारों पर फोकस

सरकार का कहना है कि अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए मुक्त व्यापार समझौतों का बेहतर उपयोग किया जा रहा है. भारत पहले से कई देशों के साथ एफटीए और पीटीए कर चुका है और नए समझौतों पर बातचीत जारी है. इससे भारतीय उत्पादों को यूरोप, एशिया और खाड़ी जैसे बाजारों में नई संभावनाएं मिलने की उम्मीद है.

संवाद और निर्यात विविधीकरण की कोशिश

सरकार ने यह भी साफ किया है कि उद्योग जगत, निर्यात परिषदों और राज्य सरकारों के साथ लगातार बातचीत की जा रही है. उद्देश्य यह है कि वैश्विक व्यापार में होने वाले बदलावों का असर भारतीय उद्योग और रोजगार पर कम से कम पड़े. अमेरिकी टैरिफ पर बहस के बीच सरकार और विपक्ष के तर्क यह दिखाते हैं कि यह मुद्दा केवल व्यापार का नहीं, बल्कि रोजगार और आर्थिक स्थिरता से भी जुड़ा हुआ है.

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